नया इंडिया, 03 अप्रैल 2014 : पाकिस्तान में आजकल कुछ चमत्कार सा हो रहा है। जरनल परवेज़ मुशर्रफ को अदालत ने देश द्रोह का अपराधी पाया है। इस अपराध के लिए उन्हें या तो फांसी होगी या आजीवन कारावास होगा। पाकिस्तान में अय्यूब, याह्या और ज़िया जैसे फौजी तानाशाह हुए। लेकिन आज तक किसी अदालत की हिम्मत नहीं हुई कि उनके जीते जी या मरने के बाद भी उन पर वह उंगली उठाए लेकिन मुशर्रफ के गद्दी में रहते हुए ही पाकिस्तान की अदालत ने काफी सख्त तेवर दिखा दिए थे। दोनों के बीच तलवारें भी खिंच गई थी। पाकिस्तान की अदालतें वहां के राजनेताओं की ही तरह काफी मरियल रही हैं। उन्होंने (जस्टिस मुनीर) फौजी तख्ता पलट को सही ठहराने के लिए ‘मजबूरी का सिद्धांत’ घड़ लिया था।
अब मुशर्रफ प्रार्थना कर रहे हैं कि उनकी 95 वर्षीय मां बीमार हैं। उन्हें देखने के लिए वे दुबई जाना चाहते हैं। सरकार ने उन पर विदेश यात्रा का प्रतिबंध लगा रखा है। उसे शक है कि वे कहीं फरार न हो जाएँ। मुशर्रफ डरपोक आदमी नहीं हैं। वे फरार नहीं हुए। अदालत में 16 बार उपस्थित हुए, हालांकि बीमारी का बहाना बनाकर वे आजकल अस्पताल में हैं। उन्हें उम्मीद थी और लोग भी यह सोचते थे कि फौज के डर के मारे मियां नवाज़ की सरकार उन पर मुकदमा नहीं चलाएगी लेकिन नवाज़ शरीफ और अदालत ने जो तेवर अपनाए हैं, वे पाकिस्तान में लोकतंत्र की बढ़ती हुई मजबूती का सबूत हैं। मुशर्रफ को सजा मिले या नहीं, यह प्रक्रिया अगले फौजी तानाशाह की हड्डियों में कंपकंपी दौड़ा देगी।
यह भी संभव है कि मियां नवाज, मुशर्रफ की विदेश –यात्रा पर प्रतिबंध उठा लें और उनकी मां की बीमारी के बहाने उन्हें भागने दें। यह कृपा को लौटाना होगा। यदि मुशर्रफ चाहते तो 1999 में तख्ता-पलट के वक्त नवाज़ शरीफ को लटका देते लेकिन उन्होंने उन्हें सउदी अरब जाने दिया। यदि मुशर्रफ इसी रास्ते से राहत पा जाएँ तो भी मैं यह कहूंगा कि मुशर्रफ तो छूट गए लेकिन पाकिस्तानी अदालत ने भावी फौजी तानाशाह को फांसी पर लटका दिया है। दूसरे शब्दों में मुशर्रफ का मुकदमा पाकिस्तान के इतिहास को एक नए मोड़ की तरफ ले जा रहा है। पड़ोसी देशों को इस घटना का स्वागत करना होगा।
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