Nav Bharat Times, 11 Feb 2003: जनरल परवेज़ मुशर्रफ की मास्को-यात्रा पर भारतीय अखबारों में ज्यादा शोर नहीं मचा, इसका मतलब यह नहीं कि वह ध्यान देने लायक नहीं है| ज्यादा शोर न मचे, इसका ध्यान रूस और पाकिस्तान, दोनों ने पहले से ही रखा हुआ था| राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन ने मुशर्रफ के मास्को पहुँचने के पहले और चले जाने के बाद, दोनों बार भारतीय प्रधानमंत्री को फोन किए| उधर मुशर्रफ ने मास्को में ही कई बार कहा कि यह यात्रा किसी तीसरे देश के विरुद्घ नहीं है| यही बात पूतिन ने संयुक्त वक्तव्य में भी दोहरा दी| जो कुछ रूस और पाकिस्तान के अखबारों में छपा है, उसके आधार पर माना जा रहा है कि इस यात्रा के दौरान भारत-विरोधी कुछ भी नहीं हुआ है|
लेकिन क्या यह मानना ठीक है ? इसमें शक नहीं कि भारत के विरुद्घ कोई सैनिक या कूटनीतिक साजिश नहीं हुई है लेकिन रूस और पाकिस्तान ने मिलकर भारत सरकार को कम से कम दो चपत अवश्य लगा दी हैं| एक तो यह कि कश्मीर पर सम्वाद शुरू करना जरूरी बताया गया है जो कि भारत सरकार की वर्तमान-नीति का स्पष्ट विरोध है| दूसरा, रूस ने पाकिस्तान को आतंकवाद-विरोधी राष्ट्र की मान्यता दे दी है, जबकि भारत उसे आतंकवादी राष्ट्र कहलवाना चाहता है| याने मुशर्रफ की शीरींजुबानी कारगर हो गई है और भारत की गुहार को ताक पर रख दिया गया है| भारत को सिर्फ इतना ही फायदा हुआ कि कश्मीर-वार्ता में दोनों पक्षों ने ‘शिमला समझौते’ और ‘लाहौर घोषणा’ को आधार बनाने की बात कही है| पाकिस्तान ने संयुक्तराष्ट्र संघ के प्रस्तावों को आधार बनाने का आग्रह नहीं किया| मज़े की बात है कि ‘सीमा-पार आतंकवाद’ शब्द न तो संयुक्त वक्तव्य में दिखाई पड़ रहा है और न ही रूसी नेताओं के भाषणों में| ऐसा लगता है कि मुशर्रफ की मास्को-यात्रा के दौरान इस अपि्रय शब्द को दरी के नीचे दबा दिया गया है| याद कीजिए कि यह वही शब्द है, जिस पर दिसंबर में भारत आने के पहले पूतिन बार-बार जोर दे रहे थे और इतना ही नहीं, उन्होंने पाकिस्तानी परमाणु बम की असुरक्षा और उसामा बिन लादेन के बारे में भी ऐसी बातें कह दी थीं, जिनसे पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय भड़क उठा था| क्या वजह है कि आतंकवाद के इस मुद्दे पर अब रूस की जुबान लड़खड़ा रही है ? रूस, पाकिस्तान की तरफ नरम पड़ता हुआ क्यों दिखाई दे रहा है ?
असली बात यह है कि रूस ‘अपने’आतंकवाद पर ध्यान केंदि्रत कर रहा है, भारत के आतंकवाद पर नहीं| रूस का आतंकवाद कौनसा है ? उसका पाकिस्तान से क्या संबंध है ? चेचन्या में चल रहा इस्लामी आतंकवाद हमारे कश्मीरी आतंकवाद से कहीं अधिक गंभीर है| रूस के इस पश्चिमी इलाके में रूसी फौजें इस्लामी छापामारों के विरुद्घ बाकायदा युद्घ लड़ती हैं| इन आतंकवादियों ने लगभग छह माह पहले मास्को के एक थिएटर पर कब्जा भी कर लिया था, जिसे खत्म करने में सैकड़ों लोग मारे गए थे| इसी चेचन्याई आतंकवाद के विरुद्घ लौह-पुरुष के रूप में पूतिन ने काफी नाम कमाया है| पूतिन को यह शक है कि चेचन्या के मुस्लिम आतंकवादियों और अल क़ायदा में गहरा संबंध है और यह गुप्त संबंध पाकिस्तान की धरती पर फल-फूल रहा है| पाकिस्तानी परमाणु बमों को चुराकर ये आतंकवादी रूस और मध्य एशियाई राष्ट्रों में धमाका भी कर सकते हैं| इस मामले में पूतिन इतने चिंतित थे कि अब से तीन साल पहले वे पाकिस्तान ही नहीं, तालिबान से भी बात करने की जुगत भिड़ा रहे थे| अगस्त 2000 में पाकिस्तान की गुप्तचर सेवा के मुखिया जनरल महमूद अहमद मास्को गए थे और उन्होंने रूसी गृह मंत्रालय को आश्वस्त किया था कि वे चेचन्या के आतंकवादियों को पकड़ने में रूस की मदद करेंगे| वास्तव में इसी वर्ष फरवरी माह में पाकिस्तान सरकार ने रूस के अनुरोध पर चेचन्या के पूर्व राष्ट्रपति सलीमखान यांदरबिएव को पाकिस्तान से निकाल बाहर किया था और कुछ अन्य संदेहास्पद ठिकानों की जानकारी भी रूसियों को दे दी थी| अहमद की मास्को-यात्रा इतनी सफल रही कि अगले माह न्यूयॉर्क में खुद पूतिन ने आगे होकर जनरल मुर्शरफ से हाथ मिलाया और दोनों थोड़ी देर के लिए मिले भी| अपनी पहली भारत-यात्रा के पहले पूतिन ने अपने विशेष दूत सर्गेई यास्त्रझेंबस्की को इस्लामाबाद भेजा था| रूसी विशेष दूत ने पाकिस्तानियों को यह अच्छी तरह समझा दिया था कि यदि वे रूस के साथ अच्छे संबंध बनाना चाहते हैं तो उन्हें चेचन्याई आतंकवाद के विरुद्घ रूस की सहायता करनी पड़ेगी|
रूस और पाकिस्तान के बीच यह खिचड़ी उस समय पक रही थी, जब अफगानिस्तान में अहमद शाह मसूद पिट रहा था और तालिबान का सितारा बुलंद हो रहा था| तालिबान के आगे अमेरिका भी थका-थका-सा लग रहा था| रूस यह समझ गया था कि पाकिस्तान को पटाए बिना तालिबान से कुछ भी रियायत प्राप्त करना असंभव है और पाकिस्तान यह मान रहा था कि अगर रूसी खिड़की खुलेगी तो उसे दमघोटू अन्तरराष्ट्रीय अकेलेपन से कुछ राहत मिलेगी| पाकिस्तान यह भी नहीं भूला था कि मध्य एशिया के मुस्लिम राष्ट्र आज़ाद तो हो गए हैं लेकिन अब भी वे रूस के प्रभाव से मुक्त नहीं हुए हैं| यदि रूस से रिश्ते सुधरें तो उसका लाभ उसे सीधे मध्य एशिया में भी मिलेगा| अब उसे रूसी भालू से वैसा डर नहीं है, जैसा कि कभी बि्रटिश शेर को हुआ करता था| अब वह खुद कराची और ग्वादर के बन्दरगाह रूस, चीन और मध्य एशिया के लिए खोलना चाहता है| मुशर्रफ पूतिन को भारत-पाक मामलों में उसी तरह खींचना चाहते हैं, जैसे कि अयूब ने कोसिगिन को खींचकर ताशकंद समझौता करवाया था| मुशर्रफ ने मास्को में बार-बार यह कहा है कि उन्होंने पूतिन से मध्यस्थता करने का अनुरोध नहीं किया है, क्योंकि भारत किसी की मध्यस्थता नहीं चाहता लेकिन पूतिन से बढि़या मध्यस्थ और कौन हो सकता है| अर्थात्र मुशर्रफ ने अपनी मास्को-यात्रा को भारत के विरुद्घ इस्तेमाल करने की भरसक कोशिश की है|
पाकिस्तान का गणित यह है कि यदि चेचन्या पर रूस को खुश किया जा सके और बदले में उसे ‘सीमा-पार आतंकवाद’ पर नरम किया जा सके तो यह सौदा क्या बुरा है ? इस सौदे में मुशर्रफ सफल हुए हैं| अपनी सफलता का वे जमकर प्रचार कर रहे हैं| वे कह सकते हैं कि जिन चोटियों पर लियाकत अली, अयूब, भुट्टो और जि़या नहीं चढ़ पाए, उन पर वे झंडा गाड़ आए हैं लेकिन वास्तव में इसका श्रेय मुशर्रफ को उतना नहीं है, जितना कि आज की बदली हुई दुनिया को है| जब विश्व की महत्तम शक्ति अमेरिका ने पाकिस्तान को आतंकवाद-विरोधी विश्व-अभियान में अपना सहयोगी बना लिया है तो रूस की क्या हैसियत है कि वह उसे भारत की तरह आतंकवादी राष्ट्र कहे ? भारत की खातिर वह पाकिस्तान से दुश्मनी क्यों मोल ले ? शीत युद्घ के वे दिन गए, जब खुश्चौफ और बुल्गानिन कश्मीर पर पाकिस्तान को लताड़ते थे और पख्तूनिस्तान को आज़ाद करवाने की धमकी देते थे| अब तो इतना ही काफी है कि कश्मीर पर रूस वहीं खड़ा रहे, जहाँ तक अमेरिका आ गया है| यह कम बड़ा संयोग नहीं है कि आज कश्मीर पर अमेरिका और रूस की राय लगभग एक-जैसी हो गई है| क्या भारत इससे कुछ सबक लेगा ?
यदि भारत-अमेरिका संबंध नए धरातल ढूंढ सकते हैं तो रूस-पाक संबंध भी सहज क्यों नहीं हो सकते हैं ? दस करोड़ रू. पर ठिठका हुआ पाक-रूस व्यापार अब दस गुना बढ़ा चाहता है| रूस के मिग-17 नामक 16 हेलिप्कॉटरों का सौदा जुलाई 2001 में हुआ ही था| लगभग 30 साल पहले रूस ने कराची में जो स्टील-मिल बनाई थी, अब उसकी क्षमता बढ़ाने पर भी रूस कटिबद्घ हो गया है| पाकिस्तान को रूस न केवल हथियारों की सप्लाय बढ़ाना चाहता है बल्कि मध्य एशियाई तेल और गैस की पाइप-लाइन के दंगल में भी पटकनी नहीं खाना चाहता | रूस और पाकिस्तान, दोनों को अपने-अपने हितों की चिन्ता है और वे उन्हें साधने में जुटे हुए हैं लेकिन भारत है कि उसकी सुई असम्वाद और अकर्म पर अटक गई है| वह न तो पाकिस्तान से संवाद खोल रहा है और न ही अपनी सैन्य-शक्ति का प्रयोग कर रहा है| उल्टे कूटनीतिज्ञों के परस्पर निष्कासन ने तनाव में वृद्घि कर दी है| डर यह है कि अफगानिस्तान में फायदों की जो भी फसल उगनेवाली है, उसे अमेरिका, रूस तथा पाकिस्तान काट ले जाएँगे और अपने आपको इस क्षेत्र की महाशक्ति घोषित करनेवाला भारत टापता रह जाएगा|
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