नया इंडिया, 11 अगस्त 2013 : देश के लगभग 40 विदेश नीति विशेषज्ञों का विरोध कैसे किया जाए? उन्हें गलत कैसे बताया जाए? इन विशेषज्ञों में भारत के पूर्व विदेश सचिव, राजदूत, सुरक्षा सलाहकार, गुप्तचर-प्रमुख, सेनापति और प्रोफेसर आदि हैं। इनमें से ज्यादातर अपने व्यक्तिगत मित्र है। सभी प्रामाणिक और सम्मानीय महानुभाव हैं। इनके साथ पिछले 40-45 साल मैंने कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है और विदेश नीति के बारे में सोचा-विचारा है।इन सबकी राय है कि सितंबर में होने वाली मनमोहन-नवाज़ वार्ता को रद्द किया जाए, क्योंकि इस वार्ता को होने देने का अर्थ है-पाकिस्तान का तुष्टिकरण!
जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को अपनी विदेश नीति का अंग बनाए रखता है और सिर्फ जबानी जमा-खर्च करता रहता है, तब तक उससे कोई बात न की जाए। हमारे देश के चालीस समझदार लोगों का बयान यदि पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए जारी किया गया है तो इसे बहुत ही सामयिक और उचित कहा जाएगा। इस दृष्टि से यह इतना उपयोगी है कि भारत सरकार भी मन ही मन खुश हो रही होगी। कोई आश्चर्य नहीं कि यह उसी के इशारे पर दिया गया हो। इस बयान का असर नवाज़ शरीफ सरकार पर जरुर होगा, क्योंकि द्विपक्षीय वार्ता की पहल उसी ने की है और उसे ही इसकी जरुरत भारत से ज्यादा है।लेकिन दबाव बनाने के लिए तेवर दिखाना एक बात है और उसे वास्तव में करके दिखाना बिल्कुल दूसरी बात। दिखाने के दांत खाने के दांत नहीं हो सकते।
यदि इस बयान को सरकार अपनी नीति बनाएगी तो वह काफी भूल करेगी। इसके कई कारण हैं। पहला, तो यही कि इस बयान पर दस्तखत करने वालों को दस्तखत करते समय तक शायद यह पता ही नहीं चला कि हमारी फौज ने लिखित में दावा किया था कि हमारे जवानों की हत्या पाकिस्तान के आतंकवादियों ने की थी (फौज ने नहीं)। हमारी फौज की 21 बिहार रेजिमेंट ने पुंछ के थाने में 6 अगस्त को जो एफआईआर (213/2013) लिखवाई है, उसी के आधार पर रक्षामंत्री ने अपना पहला बयान दिया था। उसमें पाकिस्तानी आतंकवादियों को हत्या का दोषी बताया गया था। अब विरोधी दलों को चुप करने के लिए रक्षामंत्री ने पाकिस्तानी फौज का नाम ले दिया है। इस संदेहास्पद स्थिति पर इन विशेषज्ञों ने ध्यान दिया होता तो वे इतना उग्र बयान जारी नहीं करते।
दूसरा, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने सारी घटना पर दुख प्रगट किया है और बातचीत जारी रखने पर जोर दिया है। इसकी उपेक्षा करना भी ठीक नहीं। तीसरा, बातचीत के अलावा रास्ता क्या है? हां, हम भी पाकिस्तान के कुछ जवानों को मार डालें लेकिन फिर भी बातचीत तो करनी ही पड़ेगी। बंदूकों के शोर में से तो कोई हल नहीं निकल सकता। वह तो बातचीत में से ही निकलेगा। चौथा, बातचीत रद्द करने की बजाय हमें नवाज शरीफ सरकार से दो-टूक बात और ज्यादा बात करनी चाहिए। आतंकवाद के शत्रु के विरुद्ध सांझा मोर्चा बनाना चाहिए और मियां नवाज़ पर जोर डालना चाहिए कि वे हाफिज़ सईद जैसे उग्रवादियों की बोलती बंद करें, सीमांत पर होनेवाली हत्याओं को दृढ़तापूर्वक रोंके और दोनों देशों के बीच संबंधों को सहज बनाने के लिए ठोस कदम उठाएं।
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