नया इंडिया, 26 अक्टूबर 2013 : हमारा कोयला मंत्रालय किस तरह कालिख में डूबा हुआ है, इसके कुछ प्रमाण पूर्व कोयला-सचिव पीसी पारख के पत्र से उजागर हुए हैं। पारख ने यह पत्र केबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी के पत्र के जवाब में लिखा था। चतुर्वेदी ने 2005 में पारख को एक पांच पृष्ठ का ‘कारण बताओ’ नोटिस भेजा था। उस समय पारख कोयला-सचिव थे और उनके मंत्री थे-शिबू सोरेन और राज्य मंत्री थे-दसरी नारायण राव! पारख पर आरोप था कि वे मंत्रियों का आज्ञा पालन नहीं करते और उनका अनादर करते हैं। पारख ने चतुर्वेदी के पांच पृष्ठों के पत्र का जवाब आठ पृष्ठों में दिया और सारे मंत्रालय की पोल खोलकर रख दी। पारख ने कहा कि जिसे आप ‘कोल माफिया’ याने गुंडों का गिरोह बोलते हैं, वह और कहीं नहीं, कोयला मंत्रालय के अंदर ही दनदना रहा है। उन्होंने बताया कि कोयला खदानों का मनमाना वितरण करने के षडयंत्र में मंत्री, नौकरशाह, कंपनियां और उनके दलाल सभी शामिल होते हैं। पारख ने एक वरिष्ठ अफसर को रिश्वतखोरी करते हुए पकड़ा लेकिन सोरेन और राव के हस्तक्षेप के कारण सीबीआई उस पर मुकदमा नहीं चला सकी।
इसी प्रकार ‘कोल इंडिया’ के एक वरिष्ठ अफसर को वाजपेयी-सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोप में मुअत्तिल कर दिया था। उसे सोरेन ने फिर से उसके पद पर प्रतिष्ठित कर दिया। सोरेन ने एक निर्भीक और ईमानदार अफसर शशि कुमार को हटाने के लिए जमीन-आसमान एक कर दिया। पारख ने मंत्रियों की धांधली के ये ठोस उदाहरण पेश करते हुए अपने पत्र में यह भी लिखा कि कोयला-खदानों के वितरण की प्रक्रिया ही अपने आप में दूषित है। उन्होंने ‘अंधा बांटे रेवड़ी, अपने-अपने को देय’, सिद्धांत का विरोध किया और खदानों की खुली नीलामी का प्रस्ताव रखा था। उन्होंने यह भी कहा कि उनके मंत्री अपनी खाल बचाने के लिए मौखिक आदेश देते हैं ताकि पकड़े जाने पर सारा दोष अफसरों के मत्थे मढ़ दिया जाए। पारख ने लिखा कि उन्होंने मंत्रियों के लिखित आदेश की कभी अवहेलना नहीं की। लेकिन उनका यह दोष जरुर है कि उन्होंने मंत्रियों के गैर-कानूनी मौखिक आदेशों पर ध्यान नहीं दिया। पारख ने यह भी स्वीकार किया कि उन्होंने मंत्रियों के आग्रह के बावजूद उन्हें स्क्रीनिंग कमेटी की कार्रवाई को देखने नहीं दिया, क्योंकि उन्हें शक था कि मंत्री लोगों को उससे बेईमानी करने का अवसर मिलेगा। पारख का यह जवाबी पत्र इतना जबर्दस्त था कि उसने सबकी बोलती बंद कर दी। यह वही पारख हैं, जिनके घर सीबीआई ने छापा मारा है और जिन पर ‘हिन्डाल्को’ के साथ पक्षपात करने का आरोप है। पारख ने कहा है कि अगर वे दोषी हैं तो प्रधानमंत्री भी उतने ही दोषी हैं, क्योंकि कोयला मंत्री के नाते उनके दस्तखत से ही कुमारमंगलम बिड़ला को ओडिसा की खदानें मिली हैं। पारख ने इतना सख्त रवैया शायद इसीलिए अपनाया है कि वे एक स्वच्छ और निर्भीक व्यक्ति हैं। उनका पत्र सिर्फ कोयला मंत्रालय ही नहीं, पूरी भारत सरकार की कार्यपद्धति की पोल खोल देता है। पारख-जैसे नौकरशाहों का आचरण स्वतंत्र भारत के नौकरशाहों के लिए अनुकरणीय है। जो नौकरी में रहते हुए मंत्रियों से नहीं डरा, उसे अब सरकार कैसे डरा सकती है?
Leave a Reply