नया इंडिया, 14 दिसंबर 2013 : भारत में भ्रष्टाचार लगभग शिष्टाचार बन गया है। आप किसी को भी कुछ पैसे दीजिए और उससे कोई भी काम करा लीजिए। वह काम करते समय व्यक्ति यह नहीं सोचता है कि अमुख काम उचित है या नहीं, शुभ है या नहीं, कानूनी है या नहीं, नैतिक है या नहीं? इस मामले में हमारे नेतागण सबसे आगे हैं। स्टिंग आपरेशन करने वाली वेबसाइट ‘कोबरापोस्ट’ ने अभी-अभी इस तरह का एक भांडाफोड़ किया है। उसने 11 सांसदों को रिश्वत लेते हुए या मांगते हुए दिखाया है। इनमें से दो-दो सांसद भाजपा, कांग्रेस और अन्नाद्रमुक के है और तीन जनता दल (यू) के है और एक बसपा का है। याने केंद्र और प्रदेश के ये सभी प्रमुख दल है। इन दलों को भारत की जनता ने सरकारें चलाने का दायित्व भी सौंपा है। जनता के भरोसे को इन सभी दलों ने तोड़ दिया है।
ये ही क्यों, अन्य दलों के नेताओं के पास भी अकूत धन जमा हो गया है। बेहिसाब संपत्ति के मुकदमों में कई प्रांतीय नेता फंसे हुए हैं। कुछ जेल की हवा खा चुके हैं, कुछ खाने वाले हैं और कुछ ले-देकर बरी भी हो गए हैं। अभी चुनावों में जिन नेताओं ने अपनी संपत्ति के ब्यौरे भरे थे, उनमें से ज्यादातर की संपत्ति पिछले पांच साल में दुगुनी-तिगुनी हो गई। कहां से लाए वे ये करोड़ों रुपए? व्यापार वे करते नहीं, कुछ कमाते नहीं। फिर यह इजाफा कैसा होता है? शुद्ध रिश्वत से! रिश्वत का बोलबाला तो संसद में भी सरे-आम देखा गया। सांसदों ने नोटों की गड्डियां लहरा दीं। इसके पहले हुए एक स्टिंग आपरेशन में कई सांसदों को अपनी सदस्यता से हाथ धोना पड़ा।
‘कोबरा पोस्ट’ के मामले से पता चलता है कि विभिन्न सांसदों ने एक आस्ट्रेलियाई कंपनी की वकालत करने के लिए पांच हजार से पचास लाख रुपए तक की रिश्वत मांगी। यह रिश्वत सिर्फ पत्र लिखने के लिए थी। सांसदों ने उस कंपनी के प्रतिनिधि को पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली और सोनिया गांधी से मिलवाने का भी वादा किया। अर्थात, राजनीति जनसेवा कम, धन्ना-सेठों की दलाली ज्यादा बन गई है। जिस देश के प्रधानमंत्री, मंत्री और सेना के उच्चाधिकारी दलाली और रिश्वत खाते हों, उस देश के बेचारे सांसद क्या करेंगे? वे अपने ‘बड़ों’ का अनुकरण ही करेंगे। राजनीति आजकल ऐसा धंधा बन गया है कि ‘हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा आए।’ सत्ता से पत्ता बनाइए और पत्ता से सत्ता पाइए! सत्ता और पत्ता के इस खेल में कौन सा दल पारंगत नहीं है? कोयले की खदान में सब काले ही काले हैं। यहां तक कि ‘आम आदमी पार्टी’, जिसे हम अभी तक बेदाग ही मानते हैं, एक स्टिंग आपरेशन में हिल गई थी। उसके उम्मीदवादों ने चाहे पैसे न खाए हों लेकिन पैसे खाने के बारे में उनका रवैया भी वही था, जो अन्य दलों के नेताओं का होता है। सारे कुएं में ही भांग पड़ी हुई है। किस-किस को रोएं और किस-किस के लिए अपना माथा कूटें?
Leave a Reply