नया इंडिया, 07 अक्टूबर 2013 : पोप फ्रांसिस ने आज एक बड़ी अदभुत बात कह दी। उन्होंने केथोलिक ईसाई भिक्षुणियों (नन्स) को कह दिया कि आप लोग जरा अपनी आध्यात्मिकता घटाएं। पोप को तो सारे ईसाई समाज का आध्यात्मिक अवतार माना जाता है। उन्होंने कैसे कह दिया कि आध्यात्मिकता को घटाइए? पोप ने भिक्षुणियों के उदास चेहरों और नीरस जीवन को देखते हुए यह टिप्पणी की है। पोप की इस टिप्पणी पर बहुत से धर्मध्वजी नाराज़ हो जाएंगे। जो लोग पोप या ईसाईयत के विरोधी होंगे, उन्हें अब एक मौका मिल जाएगा, पोप पर आक्रमण करने का।
यह असंभव नहीं कि पोप उन लोगों की गलतफहमी दूर करने के लिए या तो कोई सफाई पेश करें या नेताओं की तरह कलापूर्ण लीपा-पोती करें। सच्चाई तो यह है कि पोप अपने इस आकस्मिक कथन को, चाहें तो केथोलिक जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन का नया मंत्र बना सकते हैं। वे चाहें तो ईसाइयत के दर्शन में एक नया अध्याय जोड़ सकते हैं। उन्हें अपनी टिप्पणी की विस्तृत व्याख्या करनी चाहिए। ईसाइयत में ब्रह्मचर्य की विशेष महत्ता है। स्वयं ईसामसीह नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे। वे जीवन भर अविवाहित रहे। ईसाई धर्म में यौन-संसर्ग के प्रति घोर अरूचि का एक आयाम यह भी है कि ईसा मसीह का जन्म एक कुमारी (मरियम) के गर्भ से माना गया। ईसाई पादरी और ननें यदि अविवाहित रहें तो ईसाई समाज में उनका दर्जा काफी ऊंचा और पवित्र माना जाता है।
लेकिन इस कारण विकृतियों की भी भरमार हो जाती है। रोम की पोपशाही पिछले कुछ वर्षों से अपने पादरियों और ननों के खिलाफ काफी सख्ती से पेश आ रही है। उसका नतीजा यह आ रहा है कि उनका जीवन बिलकुल नीरस हो गया है। पूरा पुरोहित समुदाय तनावग्रस्त और परेशान रहता है। यों भी वेटिकन की वर्जनाओं का पहले भी उल्लंघन होता रहता था। अब से 45 साल पहले की बात है। मैं अपने दो सहपाठियों एडवर्ड डिमेलो और थोमस के निमंत्रण पर वेटिकन में एक हफ्ते रहा।
उनके अन्य यूरोपीय पादरी साथियों ने उनके सामने मुझसे पूछा कि _’‘ क्या आप डिनर के बाद हमारे साथ ‘ब्ल्यू फिल्म’ देखने चलेंगे?_’’, मैंने कहा यह ब्ल्यू फिल्म’ क्या होती है? डिमेलो और थोमस ने कहा ‘अश्लील फिल्म’ को ‘ब्ल्यू फिल्म’ कहते हैं। तात्पर्य यह कि पोप की राजधानी में भी पोप की नाक के नीचे अवांछित कार्य होते रहते हैं। कुछ पोप खुद भी आसाराम की तरह पाए गए हैं। यूरोप की ‘पेपेसी’ के इतिहास में उनका वर्णन जोरों से हुआ है। इन सब तथ्यों को देखते हुए मेरा सुझाव यह है कि पोप को चाहिए कि वे लोगों पर आजीवन ब्रह्मचर्य को थोपने की कोशिश न करें। गृहस्थ होने की प्रशंसा करें और सारे पादरियों और ननों को गृहस्थी का आनंद लेने की अनुमति दें। ब्रह्मचर्य अपने आप में अति उत्तम है लेकिन वह 25 साल की आयु तक ही हो तो व्यावहारिक रह सकता है। अन्यथा या तो गुप्त दुराचार का मार्ग खुलेगा या जैसा कि सिगमंड फ्रायड ने कहा है, वह घोर हताशा का कारण बनेगा। धर्म-ध्वजियों के लिए ये दोनों बातें श्रेयस्कर नहीं हैं। उन्हें अपनी आध्यात्मिकता घटाने की जरूरत नहीं है। गृहस्थ बनकर वे अपनी आध्यात्मिकता को नए आयाम दे सकते हैं। उसे बढ़ा सकते हैं। बढ़ी हुई आध्यात्मिकता तो खिले हुए कमल और सुगंधमय गुलाब की तरह होती है। –
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