R Sahara, 25 May 2003 : अपने प्रधानमंत्रीजी जब भाषण देते हैं तो श्रोताओं को खूब हंसाते हैं| किसी भी वक्ता का यह असाधारण गुण होता है| श्रोताओं को हंसाने में उन्हें विशेष रस आता है| लखनऊ में उन्होंने अंग्रेजी को हटाने पर ऐसा जोर दिया कि अखबारों के पाठक भी हंस-हंसकर लोट-पोट हो रहे हैं| उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा कि यह अटलजी का भाषण है| मुंह अटलजी का और जुबान लोहियाजी की ! जब से अटलजी प्रधानमंत्री बने हैं, वे बड़े उत्साह-पूर्वक अंग्रेजी में लिखे भाषण पढ़ते हैं और बच्चों को कहते हैं कि तुम अपने विषय अपनी मातृभाषा मं पढ़ो| जब प्रधानमंत्री अंग्रेजी की गुलामी को मजबूर हैं तो बेचारे बच्चे क्या करें? बच्चे वही करेंगे जो बडे करते हैं| बच्चों के माता-पिता जानते हैं कि भारत की राजभाषा अंग्रेजी है, हिंदी नही| हिंदी को राजभाषा कहना शुद्घ ढोंग है| वे ढोंग में क्यों फंसें? वे यथार्थवादी हैं| इसीलिए वे अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाते हैं| उन्हें पता है कि विदेशी माध्यम का बोझा कमरतोड़ होता है, मौलिक चिन्तन के लिए घातक होता है और बच्चों की अपनी परम्परा से विमुख करता है लेकिन कोई अकेले माता-पिता क्या कर सकते है? गुलामी की इतनी ताकतवर व्यवस्था को वे कैसे टक्कर दे सकते हैं? टक्कर देने का यह काम नेताओं को, सरकारों को, प्रधानमंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को करना चाहिए लेकिन जो चिराग रोशनी के लिए जलाए गए थे, वे ही अंधेरा फैला रहे हैं| अनेक मुख्यमंत्रियों ने ही यह फैसला किया है कि उनके प्रदेशों के बच्चों को पहली कक्षा से ही विदेशी माध्यम से पढ़ाया जाए| ऐसा शर्मनाक फैसला उन्होंने क्यों किया? इसलिए किया कि उनके बच्चे जब प्रधानमंत्रीजी के केंद्र में पहुंचें तो लूले-लंगड़ों की तरह न चलें| याने विदेशी माध्यम के फैलाव का मूल कारण प्रदेश नहीं, केंद्र है| केंद्र की नौकरियों में, न्यायालयों में, दफ्तरों में, विश्वविद्यालयों में, शोध-संस्थानों में सर्वत्र अंग्रेजी का बोलबाला है| जो लोग संविधान-भक्ति की शपथ लेते हैं, उनमें से एक भी व्यक्ति मुझे आज तक नहीं मिला, जो संविधान की भावना का पालन करता हो| राजभाषा नियमों का उल्लंघन कौन नहीं करता? राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उप-प्रधानमंत्री, राज्यपाल सभी कर रहे हैं| इस देश का दुर्भाग्य है कि न तो संसद, न जनता और न अखबार, कोई ऐसा नहीं है, जो अपने नेताओं के कान खींचे| राजभाषा नियमों का उल्लंघन करनेवालों को जब तक सज़ा नहीं मिलेगी, इस देश में अंग्रेजी शोषण का, ढोंग का, रुतबे का, गैर-बराबरी का हथियार बनी रहेगी|
केंद्रीय हिंदी समिति की बैठक के एक दिन पहले गुरुवार को उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने भारतीय भाषा सम्मेलन के प्रतिनिधियों से घंटा भर बात की| अब से नौ माह पहले इसी प्रतिनिधि मंडल ने 14 सितंबर (हिंदी दिवस) को भी उनसे घंटा भर बात की थी| आडवाणीजी से मिलकर सारे प्रतिनिधि बेहद संतुष्ट थे| सबको लगा कि बस केंद्र सरकार में अब हिंदी आ ही गई| गृहमंत्रीजी ने गृह-सचिव कमल पांडे और कुछ दूसरे अफसरों को हमारे साथ बिठाया और उसी समय कुछ निर्देश दिए| लेकिन आज तक पत्ता भी नहीं खड़का| इस बार भी राजभाषा-नियमों और सरकारी गच्चावली के जानकारों को लेकर हम गृहमंत्रीजी से मिले| उन्होंने तत्काल दिल्ली के उप-राज्यपाल विजय कपूर को फोन मिलाया और पूछा कि दिल्ली राजभाषा विधेयक पर अभी तक दस्तखत क्यों नहीं हुए| प्रतिनिधि प्रभावित हुए| हमारे साथियों ने जब उन्हें सरकारी गच्चावली से परिचित करवाया तो वे बहुत प्रभावित हुए| उनको प्रभावित हुआदेख प्रतिनिधि भी प्रभावित हुए| उन्होंने हमारे सुझावों को लागू करने की व्यावहारिक कठिनाइयों का जि़क्र किया तो हमने उनके प्रति सहानुभूति जताई लेकिन उन्हें एक विकल्प भी सुझाया| वह यह कि वे स्वयं और प्रधानमंत्रीजी यह संकल्प करें कि वे दोनों अपना कोई भी औपचारिक और सार्वजनिक भाषण अंग्रेजी में नहीं देंगे| कम से कम उन विदेशी अतिथियों के सामने नहीं देंगे जो अपनी राष्ट्रभाषा का प्रयोग करते हैं| इस पर उप-प्रधानमंत्रीजी अचकचा गए| उनसे निवेदन किया गया कि आप जिंदगी भर ‘हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्थान’ की राजनीति करते रहे| इसमें ‘हिन्दी’ सबसे पहले है लेकिन इस ‘राष्ट्रवादी सरकार’ के दौर में हिन्दी तो कहीं अंत में भी नहीं दिखाई पड़ रही है|
इस हफ्ते उज्जैन जाना हुआ, सेवाधाम आश्रम की वार्षिक बैठक में| अब से 14 साल पहले इस संस्था की स्थापना हुई थी| डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन इसके आजीवन अध्यक्ष थे| अब मुझे बना दिया गया है| यह बड़ी विलक्षण संस्था है| यह आश्रम उज्जैन से 15 कि.मी. दूर अम्बोदिया नामक गॉंव में है| इसमें फिलहाल 140 लोग रहते हैं, जिनमें अत्यंत वृद्घ, विकलांग, अनाथ बच्चे और घोषित पागल लोग भी रहते हैं| इन सबके भोजन-छादन, चिकित्सा-सेवा, जीवन-रक्षा और अंतिम संस्कार सभी की जिम्मेदारी सुधीर भाई पर है| उन्होंने अपनी 14 बीघा जमीन दान की और यह आश्रम बनाया| इस आश्रम में हिन्दू, मुसलमान, ईसाई तथा सभी जातियों के स्त्री-पुरुष और बच्चे रहते हैं| आश्रम का आधार अनंत करुणा है तो कठोर अनुशासन भी ! सरकारी मदद नगण्य है| जन-सहयोग मूल सम्बल है| ईसाई मिश्नरी भी इस आश्रम को देखने आते हैं| मदर तेरेसा से भी अधिक देदीप्यमान आकृति इस प्रांगण से उभरती हुई दिखाई पड़ रही है|
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के नतीजे चौंकानेवाले हैं| इतने चौंकाने वाले कि उनकी शिकायत अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों ने भी की है| इन स्कूलों की प्राचार्याओं ने कहा है कि उनके अत्यंत प्रतिभाशाली छात्र भी अंग्रेजी के कारण मात खा गए हैं| एक प्राचार्या का कहना है कि उनके 40 छात्र ऐसे हैं, जिन्हें सब विषयों में लगभग 95 प्रतिशत अंक मिले हैं लेकिन अंग्रेजी में मुश्किल से 60 प्रतिशत ! अंग्रेजी के कारण इन छात्रों का भविष्य चौपट हो गया है| इसी प्रकार वैकल्पिक विषय के तौर पर हिंदी में 93.6 प्रतिशत बच्चे उत्तीर्ण हुए हैं जबकि अंग्रेजी में केवल 35.9 प्रतिशत ! ये आंकड़े किसी हिंदी अखबार ने नहीं, ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने प्रकाशित किए हैं| बोर्ड जरा यह भी बताए कि वह कौनसा विषय है, जिसमें सबसे ज्यादा बच्चे अनुत्तीर्ण होते हैं? वह अंग्रेजी ही है| सबसे ज्यादा समय जिस विषय पर नष्ट होता है, वही विषय भारत के छात्रों को नष्ट कर रहा है लेकिन हमारे नेता कुंभकर्ण की नींद सो रहे हैं|
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