नया इंडिया, 15 अक्टूबर 2013 : अमेरिकी कंपनी वालमार्ट अब भारत सरकार की फालमार्ट बनती दिखाई दे रही है। फालमार्ट याने वह बाजार जहां हर चीज गिर रही हो। सरकार और कांग्रेस की इज्जत के गिरने का तो सवाल ही नहीं उठता। वह कहां गिरेगी, कितनी गिरेगी। वह तो पैंदे में बैठ चुकी है लेकिन अभी भी प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह की प्रतिष्ठा व्यक्तिगत स्तर पर बची हुई है। उनके बारे में लोकमत यह है कि वे बस कुर्सी पर विराजमान है। वे न तो कुछ अच्छा करते हैं और न बुरा करते हैं। लेकिन सूचना का जो अधिकार उनकी सरकार ने जनता को दिया है, वे खुद अब उसके जाल में फंसते नजर आ रहा है।
सूचना के अधिकार संबंधी एक प्रत्र में प्रधानमंत्री कार्यालय से पूछा गया है कि वह बताए कि वालमार्ट नामक बहुराष्ट्रीय कंपनी के कितने दलाल (लॉबिइस्ट) प्रधानमंत्री से कब-कब मिले हैं और उनसे उनकी क्या-क्या बातें हुई हैं? ध्यान रहे वालमार्ट नामक यह कंपनी आजकल काफी विवादास्पद हो गई है। अमेरिका की यह कंपनी अनेक राष्ट्रों में खुदरा व्यापार करती है। इसका कुल बजट अनेक राष्ट्रों के बजट से भी बड़ा है। आजकल अमेरिका के सांसद हाथ धोकर इस कंपनी के पीछे पड़ गए हैं। उनका आरोप है कि इस कंपनी ने अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए अमेरिकी कानून का बड़ी बेशर्मी से उल्लधंन किया है। कई देशों के नेताओं और व्यापारियों को रिश्वतें दी हैं और उनसे अनेक गैर-कानूनी और अनैतिक काम करवाएं हैं।
अकेले भारत में सिर्फ एक साल में उसने 33 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। यह सर्च गोपनीय था लेकिन अमेरिकी सरकार ने उसे सप्रमाण पकड़ लिया है। वालमार्ट के अधिकारियों का कहना है कि यह पैसा उन्होंने लॉबिग पर खर्च किया है यानी उन लोगों को दिया है जिन्होंने भारत में उनकी मदद की है। अमेरिका में लॉबी करना वैध है, जैसे कि भारत में भी दलाली वैध है लेकिन लॉबीइंग के नाम पर विदेशी नेताओं और अफसरों को नगद रिश्वतें दी जाती हैं, विदेशों की सैर करवाई जाती है, उनके लिए शराब और वैश्यावृति का प्रबंध किया जाता है, उनके बच्चों की विदेशी पढ़ाई की फीस चुकाई जाती है। अमेरिकी सरकार वालमार्ट के ऐसे ही कारनामों से पर्दा उठाने पर तुली हुई है। भारत के कई नामी-गिरामी वालमार्ट की फिसलपट्टी पर फिसले हें। उनके नाम धीरे-धीरे अमेरिकी सरकार प्रगट कर देगी। लेकिन यदि उसमें हमारे प्रधानमंत्री का नाम भी आता है तो वह निश्चय ही सोच में पड़ जाएगी। इसलिए जो प्रश्नावली किसी भारतीय ने प्रधानमंत्री कार्यालय में भेजी है, उसने देश के इस सबसे ऊंचे कार्यालय के पसीने छुड़ा दिए है।
कार्यालय की जुबान हकला रही है। उसने जवाब लिख भेजा है कि सूचना के अधिकार की धारा 8 के अनुसार इस मामले में उसे जवाब नहीं देने की छूट है और कार्यालय के अधिकारियों ने कहा है कि वालमार्ट के दलालों से उनकी बातचीत का ब्यौरा वे नहीं दे सकते क्योंकि कोई ब्यौरा रखा ही नहीं गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने इन महापंडितों से कोई यह पूछे कि आपका यह जवाब भारत की जनता के कानों में पड़ेगा तो वह आपके बारे में क्या सोचेगी? एक ईमानदार और सीधे-साधे प्रधानमंत्री को भी आप शक के घेरे में डाल देंगे। प्रधानमंत्री से वालमार्ट के दलालों की भेंट का ब्यौरा यदि वे उजागर करेंगे तो प्रधानमंत्री की इज्जत में बढ़ोतरी ही होगी। क्योंकि उनमें घपले करने की हिम्मत ही नहीं है। घपले करने के लिए किसी भी आदमी में बड़े दम-गुर्दे की जरूरत होती है। सरकार ने वालमार्ट की करतूतों की जांच एक सेवा-निवृत न्यायाधीश से करवाई है। उस जांच से पता नहीं कौन-कौन फंसेंगे लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय के अफसरों को पता होना चाहिए कि इस नाजुक मामले पर न्यायाधीश की रपट और उनके जवाब से आवाज़ दबने वाली नहीं है। अभी भारत में संसद और खबरपालिका ये दो सेवाएं जिंदा है और ये दोनों दनदना रही है। इनकी तोपे गड़गड़ाएंगी तो सारा भारत गूंजने लगेगा।
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