नया इंडिया, 26 मई 2014: यहां मैं मनमोहन सिंह और इंदर गुजराल जैसे प्रधानमंत्रियों की बात नहीं कर रहा हूं, जिनका कोई जनाधार नहीं था। उन्हें परवाह भी नहीं थी कि उनकी कुर्सी चली जाए या रह जाए लेकिन इस देश के ऐसे प्रधानमंत्री भी जनता से कट गए, जिन्होंने 40-40 या 50-50 साल जनता के बीच गुजारे हैं। इंदिरा गांधी के अलावा मुझे किसी प्रधानमंत्री का ध्यान नहीं आता, जिसने नियमित जन-दरबार लगाया हो या जिसने अक्सर पत्रकार परिषद की हो। राजीव गांधी ने अपनी माताजी की नकल करने की थोड़ी बहुत कोशिश की थी लेकिन वे जल्द ही थक गए।
राजीव गांधी के जन-दरबार में शुरू-शुरू में भीड़ जरूर लगा करती थी लेकिन न तो मिलने वालों को कई ठोस फायदा होता था और न ही प्रधानमंत्री को मौलिक सुझाव मिलते थे। अक्सर लोग प्रधानमंत्री से वे काम करवाना चाहते थे, जो किसी महापौर या सरपंच से करवाए जाने चाहिए। धक्केबाजी में हुई दो-तीन मिनिट की भेंट में विचारों का आदान-प्रदान भी नहीं हो सकता था। कुछ ही दिनों में राजीव जी को भी ऐसे दरबारों को निरर्थकता का पता चल गया। नरेंद्र मोदी को चाहिए कि वे हफ्ते में एक दिन ऐसा जन-दरबार जरुर लगाएं लेकिन उसमें आने वालों की पहचान और उनके मुद्दों के बारे में मोटी-मोटी जानकारी पहले से रखी जानी चाहिए।
जहां तक पत्रकार-परिषद का सवाल है, राजीव गांधी की पत्रकार परिषद के लिए अंदरुनी तैयारी बहुत हुआ करती थी लेकिन उसके बावजूद वे क्या का क्या बोल जाते थे। उनको पट्टी पढ़ाने वाले अपना माथा कूटते रह जाते थे। जाहिर है कि यह हाल नरसिंहरावजी और अटलजी का नहीं होता था लेकिन वे भी पत्रकार परिषद से घबराते थे। नरेंद्र मोदी का भी घबराना स्वाभाविक है लेकिन मेरी राय है कि यदि वे सफल प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं तो उन्हें महीने में एक बार पत्रकार परिषद जरूर बुलानी चाहिए। उनमें इतना आत्म-विश्वास है कि वे पत्रकारों के हमलों को बखूबी झेल सकते है।
मोदी अब प्रधानमंत्री बन रहे है तो जाहिर है कि उद्योगपति और नौकरशाह उनके चारों तरफ घेरा डालेंगे। लेकिन देश के बुद्धिजीवा, विद्धान और समाज सुधारक लोगों से उनका कट जाना उनके लिए बहुत नुकसानदेह होगा। मुझे कई प्रधानमंत्रियों ने यह कहा है कि दिन भर में उन्हें घंटे-दो घंटे का समय भी देश के लिए सोचने को नहीं मिलता। उनका ज्यादातर समय नेताओं की तिकड़में झेलने, नौकरशाहों के दांव-पेंचों को समझने और दिखावटी समारोहों में खर्च हो जाता है। मोदी भी इससे बच नहीं सकते लेकिन अगर उनको बेहतर नीति-निर्माता बनना है तो हर रोज स्वाध्याय के लिए कुछ समय निकालना होगा, जैसे वे योगासन के लिए निकालते हैं। इसके अलावा विभिन्न मामलों के विशेषज्ञों से विचार-विमर्श भी निहायत जरूरी है। मोदी को खुद उन तक पहुंचना होगा। किसी भी प्रधानमंत्री के मुकबले नरेंद्र मोदी प्रतिदिन ज्यादा काम कर सकते हैं, क्योंकि वे गृहस्थ नहीं हैं। ब्रह्मचारी हैं। वेदों में कहा भी गया है, ब्रह्मचर्य के तप से राजा राष्ट्र की रक्षा और सेवा करता है।
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