नया इंडिया, 16 अक्टूबर 2013: केंद्र सरकार के आधे से ज्यादा मंत्रियों ने अभी तक अपनी निजी संपत्ति का ब्यौरा प्रधानमंत्री को नहीं सौंपा है। यह खबर ऐसी है कि इस पर कोई खास ध्यान नहीं देंगा। इस खबर को लेकर न देश में, न अखबारों में और न ही संसद में कोई हंगामा खड़ा होगा। मंत्रियों ने अपनी संपत्ति का हिसाब अपने नेता या प्रधानमंत्री से ही छुपाकर रखा हुआ है, यह इतना बड़ा मुद्दा नहीं है कि कोई जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर दे या रामलीला मैदान में अनशन पर बैठ जाए। लेकिन मैं समझता हूं कि यह इतना बड़ा मुद्दा है कि इस पर वे सब प्रतिक्रियाएं होनी चाहिए, जो मैंने ऊपर गिनाई हैं। आप पूछ सकते हैं कि कोई 40-50 लोगों की निजी संपत्ति का हिसाब सार्वजनिक हो जाने से क्या देश में ईमानदारी की लहर उठने लगेगी? जी हां, जिन लोगों की संपत्तियों का हिसाब यहां मांगा जा रहा है, वे मामूली लोग नहीं हैं। वे जनता के प्रतिनिधि है। मंत्री हैं।
उनके हाथ में अरबों-खरबों का बजट होता है। यदि उनकी ईमानदारी पर ही लोगों को शक हो तो देश में कौन ईमानदार रह सकता है? मंत्रियों का आचरण शक से परे होना चाहिए। जब उनके नेता प्रधानमंत्री ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक कर दिया है तो उन्हें अपना ब्यौरा सार्वजनिक करने में क्या आपत्ति होनी चाहिए? वे अपने नेता को ही अनुकरण के लायक नहीं समझते, तो भला उससे डरेगा कौन? इस सरकार को चलते हुए अब लगभग 10 साल पूरे होने आ रहे हैं लेकिन क्या वजह है कि आधे मंत्रियों ने अपना ब्यौरा छिपा रखा है। यह उनकी व्यस्तता या आलस्य के कारण नहीं है, क्योंकि हर साल वे आयकर विभाग में अपना ब्यौरा भरते ही हैं। इसके अलावा चुनावी उम्मीदवार के तौर पर भी वे अपना ब्यौरा भरते हैं। क्या उन्हें डर है कि प्र.मं. कार्यालय को वे अपना ब्यौरा सौपेंगे तो उनकी जांच शुरु हो जाएगी? यह डर तो उन्हें होना ही नहीं चाहिए।
यदि भारत में कोई इतना सच्चा और ईमानदार प्रधानमंत्री हो तो मंत्रिगण भ्रष्टाचार कर ही नहीं पाएंगे। जो प्र. मं. अपने मंत्रियों को ब्यौरा छिपाने पर फटकार भी नहीं सकता, उसकी यह हिम्मत कैसे पड़ सकती है कि वह उनकी अवैध और बेनामी संपत्तियों के लिए उनको दंडित करे। उनको मिली छूट इस बात का प्रमाण है कि वर्तमान प्रधानमंत्री के लिए अर्थ-शुचिता का कोई खास महत्व नहीं है। इस लापरवाही के कारण सारी सरकार बदनाम होती हो तो हो जाए, कांग्रेस की लुटिया डूबती हो तो डूब जाए। प्रधानमंत्री को तो खुद से मतलब है। खुद की कुर्सी से मतलब है। बस, वह सुरक्षित रहनी चाहिए। बाकी उनकी बला से। यदि प्रधानमंत्री कर्तव्यपरायण हो तो सभी मंत्रियों को अपना ब्यौरा तत्काल जमा करने का आदेश देंगे। जो ब्यौरा न दे, उस मंत्री के खिलाफ कुछ न कुछ कार्रवाई करेंगे। और जब सारे ब्यौरे इकट्ठे हो जाए तो उनकी घड़ी करके, उन्हें अलमारियों में धूल खाने के लिए छोड़ नहीं देंगे। यदि इसीलिए उन्हें इकट्ठा करवाया जा रहा है तो यह नाटक निरर्थक है। उन ब्यौरों को तुरंत सार्वजनिक करवाया जाना चाहिए। यदि किसी प्रधानमंत्री में इतना दम हो तो उसकी सरकार सचमुच स्वच्छ होगी। उसकी भ्रष्टता कम से कम होगी और भ्रष्ट नेता ऐसी सरकार के मंत्रिपद को दूर से ही नमस्कार कर देंगे। डा. मनमोहन सिंह की सरकार से ऐसी आशा करना तो पत्थर को निचोड़कर उसमें से पानी निकालने जैसा काम है। आशा की जानी चाहिए कि अगली सरकार तो अपनी पारी का शुभारंभ किसी मामूली दिखने वाले लेकिन महत्वपूर्ण काम से करेगी।
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