दैनिक भास्कर, 18 अप्रैल 2008 : प्रियंका और नलिनी की भेंट में बहुत-से लोग राजनीति पढ़ रहे हैं| यह उनका दोष नहीं है| राजनीति की फितरत ही कुछ ऐसी है| अपने प्रतिस्पर्धी तो क्या, अपने किसी पि्रय साथी का यदि थोड़ा-सा भी उत्कर्ष हो जाए, उसकी लोकपि्रयता बढ़ जाए या मीडिया में उसे प्रचार मिल जाए तो अच्छे-अच्छे भी जल-भुनकर राख हो जाते हैं| पि्रयंका ने अपने पिता की हत्यारी नलिनी से मिलकर जिस आध्यात्मिक उदात्तता का परिचय दिया है, वह असाधारण है| इस असाधारण मार्मिक घटना में अनेक गहरे अर्थ छिपे हैं, उन्हें ओझल करके सारे प्रसंग का राजनीतिकरण कर देना उचित नहीं जान पड़ता| राजीव और सोनिया की संतान होने के कारण पि्रयंका या राहुल के कि्रया-कलापों की चौराहों पर चर्चा तो होगी ही लेकिन यह मानने का कोई कारण दिखाई नहीं पड़ता कि पि्रयंका वेल्लोर जेल इसलिए गई थी कि सोनिया परिवार उसका राजनीतिक लाभ उठाना चाहता था| यदि यही मन्शा होती तो पि्रयंका की भेंट पूर्णत: गुप्त क्यों होती? 19 मार्च के जेल के रिकार्ड में भेंट का जिक्र तक नहीं है, हालांकि यह जेल नियमावली का उल्लंघन है| सारा प्रसंग लगभग एक माह बाद इसलिए प्रकाश में आया कि किसी वकील ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी| नलिनी के वकील और जेल अधिकारी जानकारी के मुख्य-स्त्रेत हैं, न कि सोनिया परिवार या कॉंग्रेस पार्टी ! इस पर भी यदि दोनों को कोई फायदा मिलता है तो मिले| इसमें बुरा क्या है? गलत क्या है? क्षमा और उदारता का प्रदर्शन यदि सिर्फ नाटक है तो यह नकली नाटक असली जीवन से कहीं अच्छा है| ऐसा नाटक सभी लोग करके क्यों नहीं दिखाते? यदि दिखाऍं तो यह धरा-धाम स्वर्ग लोक न बन जाए|
वास्तव में पहले सोनिया गांधी द्वारा नलिनी को मृत्युदंड से बचाना और अब पि्रयंका का उससे मिलना भारतीय जनता को बड़ा अजूबा लगता है| इस्लामी देशों में तो कोई इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता, क्योंकि हमारी संस्कृति करूणा से अधिक कर्मफल पर टिकी हुई है और इस्लाम में भी जैसे को तैसा भुगताने का संदेश है| यह ईसाइयत ही है, जहॉं क्षमा सर्वोपरि सदगुण है| ईसा मसीह ने अपने हत्यारों को क्षमा करके अपने जीवन को ही संसार का सर्वोत्तम उदाहरण बना दिया था| यही उदाहरण अब से सवा सौ साल पहले महर्षि दयानंद ने प्रस्तुत किया| उन्होंने अपने हत्यारे जगन्नाथ को क्षमा ही नहीं किया, मरने के कुछ घंटे पहले उसे 500 रू. कल्दार देकर नेपाल भगा दिया ताकि उसे पुलिस पकड़ न सके| ये ही वे घटनाऍं है, जो ईसा को ईसा और दयानंद को दयानंद बनाती हैं| सुकरात, नेल्सन मंडेला और पोप के जीवन में भी ऐसे प्रसंग आए हैं और वे करूणा की इस कसौटी पर खरे उतरे हैं| पोप ने तो उनकी हत्या की कोशिश करनेवाले तुर्की जवान से खुद जेल जाकर भेंट की थी और दुनिया को ईसा का जीवंत संदेश दिया था कि पाप से घृणा करो, पापी से नहीं| पता नहीं, उस पापी का कितना हृदय-परिवर्तन हुआ लेकिन नलिनी के कथन पर विश्वास किया जाए तो माना जाएगा कि पि्रयंका से मिलना उसके जीवन का अद्वितीय अनुभव रहा| अब नलिनी का मन पलटा खाए तो भी क्या फर्क पड़ता है? राजीव तो लौटनेवाले नहीं हैं लेकिन वे सैकड़ों हजारों लोग जो हत्यारों और उनके लक्ष्य के प्रति सहानुभूति रखते रहे हैं, क्या उनके हृदय पर इस घटना का कोई असर नहीं पड़ेगा? जरूर पड़ेगा| उनके घावों को इससे अधिक ठंडक देनेवाला मरहम और कौनसा होगा? आस्ट्रेलियन ईसाई पादरी ग्राहम स्टेन्स की पत्नी ग्लेडीज ने जब अपने पति और बच्चों के हत्यारों को माफ़ किया तो सारे संसार में सहानुभूति की कैसी लहर उठी थी? यह ठीक है कि सोनिया और पि्रयंका स्वयं प्रतिहत नहीं हैं लेकिन वे हुतात्मा के निकटतम संबंधी तो हैं ही| उनकी करूणा भी कम वरेण्य नहीं है|
हो सकता है कि वे अपनी इस करूणा को सर्वथा व्यक्तिगत बनाकर ही रखना चाहते हों, जैसा कि राहुल ने कहा है| लोग उसकी चाहे जो व्याख्या करें, क्या यह सत्य नहीं कि क्षमादान देकर सोनिया और पि्रयंका ने अपने मन को हल्का कर लिया है? पहले तो उन्होंने राजीवजी को खोया और अब जीवन भर वे प्रतिशोध की अग्नि में जलती रहें| क्यों जलती रहें? उन्होंने अपना मन भी शांत किया और नलिनी का भी ! प्रतिशोध (बदल) को अपनी जीवन-पद्घति का अभिन्न अंग माननेवाले पठानों का क्या हाल है, यह आप अफगानिस्तान में और पाकिस्तान के सरहदी सूबे में जाकर देख सकते हैं| सैकड़ों परिवार और दर्जनों कबीले पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक-दूसरे से दुश्मनी पालते रहते हैं और अपने तथा समाज के जीवन को कसाईखाने में बदल लेते हैं|
क्षमादान अगर हमारी जीवन-पद्घति में ऊॅचा आसन पा जाए तो दुनिया को कितनी समस्याऍं आसानी से हल हो जाऍं| कितना तनाव अपने आप घट जाए| पाकिस्तान के अंसार बर्नी जब पाकिस्तानी जेल में वर्षो से सड़ रहे भारतीय कैदियों को छुड़ाने के लिए कमर कसते हैं तो भारत में कैसा भाव फैलता है| क्षमा को धर्म का मूल किस मजहब में नहीं कहा है लेकिन इसकी परवाह कौन करता है? ईसाई राष्ट्र क्या ईसा का अनुगमन करते है? क्या बुद्घ की करूणा का कोई स्थान हमारे राष्ट्र जीवन में है? यहूदी अगर नाजि़यों को, चीनी अगर जापानियों को, अमेरिकी काले अगर गोरों को, भारतीय शूद्र अगर सवर्णों को उनकी भूलों के लिए सच्चे दिल से क्षमा कर दें तो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति का नक्शा ही बदल जाए ! इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि दुनिया से अदालतें और जेले खत्म कर दी जाऍं| वे खत्म कभी नहीं होगी|
सजा देकर समाज को सुधारने का जो चलन है, वह चलता रहेगा लेकिन क्षमा देकर समाज को बदलने की कोशिश भी कम जादुई नहीं है| सजा बड़ी है या क्षमा, एकाएक यह बताना आसान नहीं है लेकिन कई मामले ऐसे होते हैं, इतने मार्मिक और इतने गहरे कि उनमें सजा कम और क्षमा ज्यादा काम करती है| सजा में अपराधी तो निश्चय ही खत्म हो जाता है लेकिन अपराध खत्म होता है कि नहीं, यह संशय बना रहता है| क्षमा में चाहे अपराधी बच जाए लेकिन अपराध नहीं बच सकता| क्या क्षमा को हम ऐसा उपकरण नहीं बना सकते जो व्यक्ति और समाज के मन को निर्मल कर सके|
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