नया इंडिया, 12 मार्च 2014 : हमारे सांसद और विधायक ऐसे कानून तो खुशी-खुशी बना डालते हैं, जिनसे उन्हें फायदे मिलते हों। उनके वेतन, भत्ते, सुविधाएं, चुनाव-क्षेत्र-राशियों के बारे में उनके मतभेद कभी होते ही नहीं। इस तरह के कानून झटपट पास होते हैं और सर्वसम्मति से होते हैं लेकिन सारा देश आश्चर्य करता है कि वे ऐसे कानून खुद क्यों पास नहीं करते, जिनसे भ्रष्ट और अपराधी जन-प्रतिनिधियों को उचित सजा मिले और जल्दी मिले? उनका काम अब सर्वोच्च न्यायालय कर रहा है।
उसका निर्णय है कि किसी भी सांसद या विधायक पर चलनेवाले मुकदमे का फैसला ज्यादा से ज्यादा एक साल में आ जाना चाहिए और यदि उसे उसके अपराध के लिए दो साल से ज्यादा की सजा हो तो विधानसभा और संसद से उसकी सदस्यता भी समाप्त हो जानी चाहिए।यदि गवाहों की संख्या बहुत ज्यादा हो या और कोई कारण हो, जिसकी वजह से मुकदमा एक साल में नहीं निपटे तो बाकायदा उसकी रपट उच्च न्यायालय के पास भेजना अनिवार्य होगा। यह निर्णय अब अपराधी सांसदों के लिए काफी दुखदायी सिद्ध होगा।
कई गंभीर अपराधी लोग सांसद इसीलिए बनना चाहते हैं कि वे इस पद को कवच की तरह इस्तेमाल करते हैं। सांसद बन जाने पर वे पुलिस को धमकाते हैं। उन पर मुकदमा चलानेवाले लोग पहले से डरे होते हैं। मुकदमा यदि चल ही पड़े तो वे उसे द्रौपदी के चीर की तरह खिंचवाते चले जाते हैं। वह इतना लंबा खिंच जाता है कि उनके सांसद रहते तो क्या, उनके जीते-जी तक कोई फैसला ही नहीं आता। इसका उल्टा भी होता है। कई सज्जनों पर झूठे मुकदमे थोप दिए जाते हैं और उन्हें अनंत काल तक उनके विरोधी बदनाम करते रहते हैं। इस अदालती फैसले से इन दोनों तरह की बिमारियों का इलाज़ काफी हद तक होने की संभावना है, हालांकि उस एक साल की अवधि में भी नेता लोग अपने दांव-पेंच भिड़ाने से कब बाज आनेवाले हैं। फिर भी अब उनका बच निकलना जरा मुश्किल हो जाएगा।
इस समय हमारे 543 सांसदों में से 162 पर और 4032 विधायकों में से 1258 पर मुकदमे चल रहे हैं। याने हमारे लगभग 30 प्रतिशत जन-प्रतिनिधि कठघरे में हैं। वे लगभग सभी पार्टियों की शोभा बढ़ा रहे हैं। अभी तक तो वे दोनों नावों में सवार रहते थे। जेल भी काटते रहते थे और सांसद भी बने रहते थे। रिंद के रिंद रहे और हाथ से जन्नत भी न गई लेकिन अब ज्यों ही रिंदगी (शराबखोरी) पकड़ी गई कि नीचे से जन्नत खिसक जाएगी।
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