नया इंडिया, 30 अक्टूबर 2013: चुनाव के दौरान नेतागण क्या-क्या खटकरम नहीं करते? जनता से झूठे वादे करने से लेकर अपने विरोधियों को ब्लेकमेल करने के किस्से तो आए दिन हम सुनते ही रहते हैं लेकिन रायपुर में अब एक नई खबर पढ़ी। खबर यह है कि यहां के कई राजनीतिक दल मतदाताओं तक शराब पहुंचाने के लिए नए-नए तरीकों का आविष्कार कर रहे हैं। उन्होंने तरह-तरह के पेयों की हजारों खाली बोतलें खरीदकर जमा कर ली हैं। इन बोतलों में वे शराब भरकर चुनाव के दिनों में बांटेंगे। ये बोतलें अक्सर रात के अंधेरे में बांटी जाती हैं। लेकिन अब शराब की ये बोतलें अगर सरे-आम दिन के उजाले में भी बंटेंगी तो साधारणतया किसी को पता नहीं चलेगा कि उनमें शराब है। यह जादू कैसा होगा? जैसे रंग की बोतल होगी, उसमें शराब भी उसी रंग की भरने की कोशिश की जाएगी। शराब भरनेवालों ने बताया कि जैसी व्हिस्की पीले रंग की होती है तो उसे मिरिंडा, फेंटा आदि की बोतलों में और काले व कत्थई रंग की शराब या रम को कोक, पेप्सी, थम्सअप आदि की बोतलें में भरा जाएगा।
इसी तरह सफेद रंग या रंगविहीन शराबों को स्प्राइट या सेवनअप की बोतलों में भरा जाएगा। कुछ शराबें टिन के डिब्बों में भरकर भी बांटी जाएंगी। कोई आश्चर्य नहीं कि शहरों की गंदी बस्तियों और आदिवासियों के बीच बंटनेवाली ये लाखों बोतलें ही कुछ उम्मीदवारों की भाग्य-निर्णायक बन जाएं। शहरों के नौजवान वोटों को खींचने के लिए हमारे राजनीतिक दल इस बोतलवाले पैंतरे को आगे बढ़ाने की बात भी सोच रहे हैं। वे टाॅफियों और चूरण के बहाने मेरिजुआना और अफीम भी नौजवानों के बीच बंटवाने की बात सोच रहे हैं। हम यह न भूलें कि हमारे चुनाव लोकतंत्र के मूलाधार हैं लेकिन भ्रष्टाचार की जड़ भी ये ही हैं। चुनाव शुद्ध हों, इसकी कोशिश हमारा चुनाव आयोग करता है। शराब की नदियां न बहें, इसलिए चुनाव आयोग ने झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्रों में बाकायदा एक आबकारी आयुक्त किया है ताकि वह इस बात पर निगरानी रख कि चुनाव के दौरान औसत से ज्यादा शराब पैदा की जाए या बेची जाए तो वह उस पर कार्रवाई करे। इसी प्रकार मतदान के 36 घंटे पहले शराब की बिक्री बंद करवाने का भी प्रावधान है लेकिन आबकारी विभाग को शराब की अनदेखी करने के लिए नेताओं ने नया चोर दरवाज़ा दे दिया है। अब आबकारी अफसर नेताओं के दबाव में आकर कह सकेंगे कि वे तो ‘साफ्ट ड्रिंक्स’ की बोतलें हैं। हम उन्हें क्यों पकड़ें? यदि नहीं तो वे अभी से इन खाली बोतलों के जखीरों को क्यों नहीं पकड़ते और हमारे चुनावी यज्ञ को दूषित करनेवाले तत्वों के खिलाफ कठोर कार्रवाई क्यों नहीं करते? अखबारों की रपट के मुताबिक सभी प्रमुख दल शराब बांटने पर तुले हुए हैं, इससे अधिक दुर्भाग्य क्या हो सकता है। ऐसे में आप अपने आप समझ सकते हैं कि सरकारी अफसर कठोर कार्रवाई करने की बजाय बगलें क्यों झांकते हैं।
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