नया इंडिया, 23 मार्च: मुंबई में कुछ माह पहले बलात्कार के दो संगीन मामले हुए थे। उनमें से शक्ति मिल्स के उजड़े हुए परिसर में हुए बलात्कार के चार अपराधियों को आजीवन कैद की सजा हुई है। सबसे पहले तो महिला जज शालिनी फनसालकर-जोशी को बधाई दी जानी चाहिए, जिन्होंने इस मामले को जल्दी-जल्दी निपटाया और दूसरी बात यह कि उन नर-पशुओं को उन्होंने बच निकलने का मौका नहीं दिया। उनके वकीलों ने उन्हें बचाने और सजा घटाने के लिए तरह-तरह के तर्क दिए लेकिन जज ने उनकी एक भी नहीं सुनी और अपना फैसला सुना दिया। यह फैसला बहुत देर से नहीं आया। प्रायः ऐसे मामलों में अदालती कार्रवाई लंबे समय तक चलती रहती है। वह इतनी लंबी खिंच जाती है कि उसका फैसला आते-आते तक लोग उस मुद्दे को ही भूल जाते हैं। अपराधियों को सजा तो मिल जाती है लेकिन समाज को शिक्षा नहीं मिलती। शक्ति मिल्स में हुए इस बलात्कार की याद अभी ताजा है। इस वक्त इस फैसले के आने का अर्थ है कि चोट तब हुई है, जबकि लोहा गरम था। इससे संभावित बलात्कारियों के मन में दहशत पैदा होगी।
इतने सही फैसले के बावजूद मेरे मन में कई सवाल अब भी उठ रहे हैं। पहला तो यही कि इतने नृशंस अपराधियों को भी वकील मिल जाते हैं, जो अदालत में उन्हें निर्दोष सिद्ध करने की हिमाकत करते हैं। क्या ऐसे वकीलों को कोई सामाजिक प्रताड़ना नहीं मिलनी चाहिए? क्या उन्हें शर्मशार नहीं किया जाना चाहिए?
दूसरा सवाल यह है कि इन बलात्कारियों को आजीवन जेल में रखना भी क्या सजा है? वे जेल में रहेंगे और मौज करेंगे। सरकारी पैसा खाएंगे, मुफ्त इलाज़ करवाएंगे और एक दिन दुनिया से विदा हो जाएंगे। उनके जेल जाते ही समाज उन्हें भूल जाएगा, उनके अपराध को भी भूल जाएगा और पीड़िता जीवन भर सिसकती रहेगी। यदि ऐसे जघन्य अपराधियों को मृत्युदंड दिया जाए और उसका जीवंत दृश्य चैनलों पर दिखाया जाए और उसे हर साल दोहराया जाए तो मुझे लगता है कि वह समाज-सुधार का एक औजार बन सकता है। आजकल बहुत-से लोग मृत्युदंड का ही विरोध करते हैं। वे उसे अमानवीय घोषित करते हैं लेकिन वे यह क्यों भूल जाते हैं कि जिसके साथ बलात्कार होता है, वह पीड़िता तो रोज़ ही मरती रहती है। उसे हजारों बार मृत्युदंड भुगतना पड़ता है। यदि देश में बलात्कार की घटनाओं पर सचमुच काबू करना है तो हमारी संसद को थोड़ी सख्ती और बढ़ानी होगी।
Leave a Reply