नया इंडिया, 14 नवंबर 2013 : देश में बढ़ते हुए बलात्कारों से त्राण पाने का सबसे बड़ा शरण-स्थल सर्वोच्च न्यायालय है लेकिन यह क्या हुआ? सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश, जो अभी-अभी सेवा-निवृत्त हुए हैं, खुद आरोपों के घेरे में आ गए। उन पर लगभग बलात्कार का आरोप उनके किसी प्रतिद्वंदी ने नहीं लगाया है। न ही किसी नेता ने उन्हें बदनाम करने की कोशिश की है। और न ही किसी मुकदमा हारे हुए वकील ने उनसे बदला निकालने की कोशिश की है। उनके विरुद्ध बलात्कार के प्रयत्न का आरोप एक युवती ने लगाया है, जो अपनी वकालत की उपाधि लेने के पहले उनके साथ प्रशिक्षु की तरह काम कर रही थी।
कोलकाता के एक प्रसिद्ध विधि-संस्थान की इस स्नातक के साथ यह घटना पिछले साल दिसंबर में उस समय घटी, जब पूरे देश में अनामिका (दामिनी) के साथ हुए नृशंस बलात्कार की घटना से सनसनी फैली हुई थी। उस युवती के साथ इस जज ने दिल्ली के एक होटल के कमरे में जोर-जबरदस्ती की। जज की उम्र उस लड़की के पितामह के बराबर थी। किसी तरह से वह लड़की बच निकली लेकिन उसके जिगर पर इस खंजर के गहरे निशान खुद गए। अब लगभग 11 माह बाद वह मुंह खोलने को मजबूर हो गई। उसने अपने ‘ब्लाग’ में लिखा कि उस घटना ने उसे हिलाकर रख दिया था लेकिन उसकी अपनी कायरता थी कि वह उसे अपने सीने में दबाये रखी। वह सोचती रही कि इतने प्रतिष्ठित और इतने बुजुर्ग व्यक्ति की इज्जत वह धूल में क्यों मिलाए? अब उसने अपने ब्लाग में इसलिए लिख दिया कि उसकी तरह कई अन्य युवतियां भी इस तरह पीड़ित होती होंगी। कम से कम उनको कुछ हिम्मत मिलेगी।
इस युवती के ब्लाग का विवरण जैसे ही दिल्ली के एक अखबार में छपा, तहलका मच गया लेकिन कोई उम्मीद नहीं कर रहा था कि यह मामला तूल पकड़ेगा, क्योंकि हमारा देश तो जातिवाद से ग्रस्त है। जज लोग जज के खिलाफ क्या करेंगे? लेकिन धन्य है, हमारा सर्वोच्च न्यायालय कि उसने इस मामले की जांच करने के लिए या पीड़ित छात्रा को न्याय दिलवाने के लिए तीन जजों की एक बेंच बना दी है। न्यायालय ने यह बेंच एटार्नी जनरल जी.ई. वाहनवती की एक याचिका पर बिठाई है। उम्मीद है कि इससे बूढ़े और खूसट जज को कठोर सजा मिलेगी, जो सारे देश के लिए एक मिसाल बनेगी। इधर एक जज का यह मामला सामने आया है और दूसरी ओर सीबीआई के निदेशक ने मूर्ख अमेरिकियों की एक अत्यंत आपत्तिजनक उक्ति को बड़ी बेशर्मी से दोहरा दिया है। उन्होंने कहा है कि ‘यदि आप बलात्कार का मुकाबला न कर सकें तो उसका मजा लीजिए।’ इससे अधिक शर्मनाक बयान क्या हो सकता है?
अगर देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर कोई मर्द बैठा हो तो उसे चाहिए कि इस आदमी को तत्काल कान पकड़कर बाहर निकाले। सिन्हा ने जो कहा और उस खूसट जज ने जो किया, वह हमारे औसत सत्ताधीशों का स्वभाव बन गया है। उन्हें न तो भगवान का डर है, न कर्मफल भुगतने का भय है। और कानून? कानून तो उनका गुलाम है। वह दिन दूर नहीं, जब अदालतें नहीं, देश के नौजवान इन दुष्टों के सिर पर अपने डंडे बजाएंगे।
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