नया इंडिया, 20 अगस्त 2014: भारत की राजनीति में नेता लोग एक दूसरे पर इतने तीखे और भद्दे प्रहार करते हैं कि टीवी देखने वालों और अखबार पढ़ने वाले करोड़ों लोगों का मज़ा किरकिरा हो जाता है। लोग सोचते हैं कि नेता वह है, जो आगे-आगे चले और लोग जिसके पीछे-पीछे चलें। संस्कृत में कहा भी गया है कि ‘नयति इति नेता’ याने जो लोगों को रास्ता दिखाए, उनका नयन करे, वह नेता है लेकिन आजकल नेतागण अपने भाषणों और बयानों में तो छूट ले ही लेते हैं, वे संसद में भी एक-दूसरे की टोपी उछालने से बाज नहीं आते।
लेकिन बिहार के हमारे नेताओं ने एक-दूसरे पर इतने मजेदार हमले करते हैं कि उनसे बदमज़गी पैदा होने की बजाय सारा महौल हास्य-व्यंग्य से भर उठता है। लालू प्रसाद यादव ने अपने पुराने साथी रामविलास पासवान पर व्यंग्य किया है। उन्हें नटवरलाल या चितचोर कहने की बजाय इस बार महान ‘मौसम वैज्ञानिक’ बताया है। लालू का कहना है कि राजनीति की हवा किस दिशा में बह रही है, यह पहचानने के सबसे बड़े पंडित रामविलास हैं। वे इस मामले में पूसा इंस्टीट्यूट और ‘इसरो’ के वैज्ञानिकों को भी मात कर देते हैं। जो भी पार्टी सरकार बनाती दिखती है, वे उसी की दुम पकड़कर लटक लेते हैं।
इस पर पासवान के बेटे की प्रतिक्रिया थी कि ‘लालू अंकल’ आजकल एक ‘रिटायर्ड कॉमेडियन’ हैं। अच्छा हुआ कि उसने लालू को जोकर नहीं कहा। लालू ने जवाबी हमला भी बड़ी नरमी से किया। उन्होंने कहा कि ‘अब यह चूजा सिखाएगा, मुर्गी को कि तू चूं-चूं ऐसे कर।’ इस पर पासवान ने कहा कि लालू तो ‘मियाद बाहर दवा’ (एक्सपायर्ड मेडिसिन) है और जिस नीतीश को आजकल वे गले लगा रहे हैं, वह ‘रणछोड़दास’ है।
किसी भाजपा नेता ने तो लगभग कविता कर दी। लालू और नीतीश के गल-मिलव्वल पर उसने कह दिया कि यह गठबंधन नहीं, लठबंधन है। बल्कि इसे राजनीतिक ठगी बताते हुए उसने कह दिया कि यह ठगबंधन है। ऐसे शब्द कभी-कभी लाखों लोगों के कंठहार बन जाते हैं और चुनाव के नतीजों को भी प्रभावित कर देते हैं। इस ‘गठबंधन’ को एक कांग्रेसी नेता ने राम-लक्ष्मण की जोड़ी बता दिया है। नीतीश ने इस गठबंधन की उपमा उस दवाई से दी है, जो सांप्रदायिकता के जहर का इलाज है।
कुल मिलाकर इस बिहारी नोंक-झोंक में आपत्तिजनक कुछ नहीं है। अपने देश की रुखी-सूखी और आजकल चल रही उपदेशझाड़ू राजनीति में बिहारी नेताओं का यह वाग्विनोद कुछ न कुछ तो रस घोल ही रहा है।
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