सत्ता, 16 जनवरी 2008 : 27 दिसंबर की शाम 6 बजे के आस-पास ! भोपाल का राजभवन ! श्री बलराम जाखड़ और मैंने ज्यों ही चाय के प्याले अपने मुह से लगाए, उनके एडीसी ने हड़बड़ाते हुए बताया कि बेनज़ीर भुट्टो की हत्या हो गई ! मैं अवाक रह गया ! मेरी ऑंखें डबडबा गईं| बलरामजी को पता था कि बेनज़ीर से मेरी कितनी गहरी दोस्ती थी | फरवरी 1999 में जब 40 सांसदों का एक प्रतिनिधि मंडल इस्लामाबाद गया था तो श्री बलराम जाखड़ और श्री के. आर. मल्कानी के अनुरोध पर मैं भी उसमें शामिल हो गया था| उस प्रतिनिधि मंडल में शायद मैं ही अकेला गैर-सांसद था और शायद ऐसा व्यक्ति था, जो पाकिस्तानी नेताओं को निजी तौर पर जानता था| ‘जंग’ अखबार और ‘साफमा’ द्वारा आयोजित सम्मेलन में बेनज़ीर ने जैसे ही अपना भाषण खत्म किया, वह मंच से उतरकर सीधे मेरे पास आई और बोलीं, ‘आप कमाल करते हैं, परसों आपका ई-मेल मिला और आपने बताया नहीं कि आप आ रहे हैं| मुझे अभी स्टेज पर जाने के पहले सीनेटर इकबाल ने बताया कि आप भी आए हुए हैं और पीछे बैठे हुए हैं|’ होटल इस्लामाबाद के हॉल में बेनज़ीर और मैं खड़े-खड़े बात कर रहे थे, इतने में ही मल्कानीजी, बलरामजी, सिब्बल, विजय गोयल आदि बेनज़ीर से मिलने आ पहुंचे| बेनज़ीर ने इन लोगों को कोई खास तवज्जोह नहीं दी| मुझे अटपटा-सा लगा| मैंने बात रोककर अपने सांसदों का बेनज़ीर से परिचय करवाया| बेनज़ीर ने अपनी सचिव मिस नाहिद खान से कहा, ‘तुम वैदिक साहब को मेरे स्यूट में ले चलो, मै इन इंडियन एमपीज़ को निपटा के आती हूं’ यह नाहिद वही महिला हैं, जिनके हाथों में बेनजीर ने दम तोड़ा है| चार-पॉंच मिनिट में ही बेनज़ीर स्यूट में आ गई| आते से ही उन्होंने पूछा कि ये लंबे से ‘इम्प्रेसिव’ एम पी कौन हैं? मैंने उन्हें श्री बलराम जाखड़ के बारे में थोड़े विस्तार से बताया और यह भी कहा कि उनके गॉंव से पाकिस्तान की सीमा दिखाई पड़ती है| बेनज़ीर ने कहा कि मैं उनसे शायद भारत में भी मिली हूं| इतने में ही एक भारतीय पत्र्कार अचानक अंदर आ गए| कैमरा उनके हाथ में था | वे मेरे परिचित थे| मैने उनका परिचय करवाया| उन्होंने बेनजीर को कहा कि ‘आप तो बार्बी डॉल लगती हैं| मैं तो सिर्फ आपके दर्शन के लिए पाकिस्तान आया हूं| मुझे और किसी चीज़ से कोई मतलब नहीं है| क्या कुछ फोटो ले सकता हूं?’ बेनज़ीर ने नाहिद और मुझसे तीन बार कहा कि ‘देखो, इंडिया में भी ऐसे लोग हैं, जो सिर्फ मुझसे मिलने पाकिस्तान आते हैं|’ बेनज़ीर की इस सादगी पर मैं हतप्रभ था| बाद में सुनील डांग और मैं इस बात पर काफी हॅंसते रहे| डांग ने बेनज़ीर और मेरे कई चित्र् लिए| श्री सुनील डांग आजकल भाषाई समाचार-पत्र् मालिक संघ के अध्यक्ष हैं|
इस्लामाबाद और लाहौर की यह यात्र प्रधानमंत्र्ी अटल बिहारी वाजपेयी की प्रसिद्घ बस-यात्र के एक-डेढ़ सप्ताह पहले हुई थी| मियॉ नवाज़ शरीफ प्रधानमंत्री थे और बेनज़ीर भुट्टो विपक्ष की नेता थीं| मियॉं नवाज़ लगभग तीन-चौथाई बहुमत से चुनाव जीते थे| उन्होंने न्यायपालिका और खबरपालिका, दोनों से मुठभेड़ का माहौल बना रखा था| वे बेनज़ीर भुट्टो के पीछे हाथ धोकर पड़े थे| प्रधानमंत्री की तौर पर बेनज़ीर ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी| मियॉं नवाज़ के बुजुर्ग वालिद को गिरफ्तार कर लिया था| उनके अस्पताल, कारखानों और जायदादों से उन्हें बेदखल करने का पूरा इंतजाम किया था| प्रधानमंत्र्ी नवाज़ शरीफ बेनज़ीर को गिरफ्तार करना चाहते थे और बेनज़ीर अपनी पीपल्स पार्टी की तरफ से जगह-जगह जुलूस और धरने आयोजित करवा रही थीं| इसी महौल में हम होटल इस्लामाबाद में मिले थे| बेनजीर भुट्टो को पता था कि नवाज़ शरीफ से मेरा काफी अच्छा परिचय है| बेनज़ीर को यह पता कैसे चला? 1997 में जब नवाज़ को प्रचंड विजय मिली तो उस चुनाव अभियान के दौरान में 10 दिन लाहौर में ही था| मैं रोज ही नवाज, बेनज़ीर और इमरान खान की सभाओं में जाता था| जिस दिन चुनाव परिणाम आए, मैं पूरी रात नवाज शरीफ के मॉडल टॉउन वाले घर में ही रहा| लगभग रात भर मियॉ साहब मैं और एक छोटी-सी मेज़ पर बैठे चुनाव-परिणामों की गिनती लिखते रहे| इस बीच अनेक बड़े-बड़े उद्योगपति, फौजी और नेतागण अंदर आते और उन्हें बधाई देते| कुछ चुने हुए लोगों से वे मेरा जोरदार परिचय भी कराते| बाद में मालूम पड़ा कि उनमें से ही एक प्रसिद्घ उद्योगपति ने बेनज़ीर को मेरे बारे में बताया था| इसके अलावा पाकिस्तान के लगभग सभी अखबारों में मुखपृष्ट पर वह फोटो भी छपा था, जिसमें मियॉं नवाज़ जीत की खुशी में मुझे मिठाई खिला रहे थे| दूसरे दिन मियॉं साहब के रायविंड स्थित फार्म हाउस में पाकिस्तानी पत्र्कारों की जो बड़ी पार्टी हुई थी, उसमें बेनज़ीर भुट्टो के कई नजदीकी पत्र्कार भी शामिल थे| उन्होंने भी मुझसे शिकायत की थी कि इस मियॉं से आपकी इतनी दोस्ती क्यों है?
मियॉं नवाज़ के साथ रहनेवाली यह दोस्ती ही बेनज़ीर के साथ मेरी घनिष्टता का मूल कारण बनी| बेनज़ीर और मैं, जब होटल इस्लामाबाद के स्यूट में मिले तो बेनज़ीर ने पहला सवाल तो यह किया कि मेरा भाषण कैसा रहा? भारत के हिसाब से वह अच्छा था लेकिन सीटीबीटी (समग्र परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि) के समर्थन की बात मेरे समझ में नहीं आई| जब मैं बेनज़ीर को सीटीबीटी के प्रावधान विस्तार से समझाने लगा तो उन्होंने अचानक विषयान्तर किया और मुझसे बोलीं कि ‘आप मेरी कुछ मदद करेंगे? नवाज़ से आपका कैसा है? उससे आप मिलेंगे या नहीं? मैंने कहा, ‘जरूर मिलूंगा|’ अभी वे शायद इस्लामाबाद में नहीं हैं| परसों लाहौर में भेंट होगी| यह बात कुछ आगे बढ़ती, उसके पहले ही नाहिद अंदर आ गईं और बोलीं कि ‘प्लेन का टाइम हो गया है| लेट हो गए हैं| लाहौर में प्रोग्राम है|’ बेनज़ीर ने कहा कि ‘अच्छा, कल लाहौर में लंच साथ ही क्यों न करें?’ मैंने बताया कि हम लोग लाहौर बस से जाऍंगे| मैं लंच की जगह कैसे पहुंचूंगा? उन्होंने कहा, आप परवाह नहीं करें| मेरे आदमी बस का ट्रेक रखेंगे और मेरे लाहौर के सीनेटर जहांगीर बदर शहर की सीमा पर आपको खड़े मिलेंगे| वे बस रोक लेंगे| आप उतरकर उनकी बड़ी कार में बैठ जाऍ| भारतीय सांसदों की बस लाहौर पहुंची लेकिन लगभग साढ़े तीन बजे! सीनेटर बदर मुझे खड़े मिले| उन्होंने बताया कि ‘बीबी (बेनज़ीर भुट्टो) ने तीन बजे तक आपका इंतजार किया| अब वे एक मुजाहिरे में चली गई हैं| वे आपसे कल मिलेंगी| सीनेटर ने मुझे लंच कराया और मेरे होटल में मुझे छोड़ दिया|
दूसरे दिन सुबह बेनज़ीर से लाहौर में भेट हुई| यह भेंट लगभग दो घंटे चली| इसके पहले उनसे कई बार व्यक्तिगत मिलना हुआ, फोन पर बातें हुई और ई-मेलिंग भी होती रही लेकिन लाहौर की इस भेंट ने औपचारिकता को मित्र्ता में बदल दिया| दो बार जब वे प्रधानमंत्र्ी रहीं, उनसे फोन पर बात हुई लेकिन वे किसी न किसी बहाने मुझसे नहीं मिलीं| यह वह दौर था, जब वे भारत के विरूद्घ जबर्दस्त अभियान चलाए हुए थी| कश्मीर और तालिबान को उन्होंने ही शिखर पर पहुंचाया था| मेरी और उनकी मुलाकात हो जाए, ऐसी कोशिश एक बार राष्ट्रपति फारूक लघारी ने की थी और एक बार पाकिस्तानी विदेश मंत्रलय में सर्वोच्च पद पर रहे एक अन्य कूटनीतिक मित्र् ने| उस समय राष्ट्रपति लघारी और बेनज़ीर के संबंध काफी अच्छे थे| दोनों बार प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो ने फोन पर मुझसे बात की और मैंने उनसे जो-जो सुविधाऍं मॉंगी, उन्होंने दे दीं| जैसे पेशावर में अफगान मुजाहिद नेताओं से मिलने की अनुमति, उनके गृहमंत्री जनरल नसीरूल्लाह बाबर से भेंट, पाक-अधिकृत कश्मीर में प्रवास आदि| शायद बेनज़ीर के इशारे पर ही मेरे लिए सुरक्षा का विशेष इंतजाम भी किया गया और उनके कई निजी मित्र् भी मुझसे मिलते रहे| जो लोग बेनज़ीर को बचपन से जानते थे, वे मुझे अब कहते हैं कि बेनज़ीर जब सत्ता में रहती है तो कुछ और होती है| इसीलिए प्रधानमंत्री रहते हुए वह आपसे नहीं मिली लेकिन इसका कारण मुझे उस समय उनका घनघोर भारत-विरोधी होना ही लगता है| इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि लाहौर में अक्सर मैं डॉ. मुबशर हसन के घर ही ठहरता हूं | डॉ. मुबशर, भुट्टो साहब के वित्तमंत्री थे और पीपल्स पार्टी की स्थापना उनके गुलबर्ग वाले बंगले में ही हुई थी| डॉं. मुबशर और बेनज़ीर के बीच बराबर तनाव बना रहता था, क्योंकि मुबशर साहब बेनज़ीर की भाभी घिनवा की पार्टी के नेता थे| बाद के वर्षो में बेनज़ीर ने मुबशर साहब के बारे में एक बार जब कुछ कठोर बात कही तो मुझे उसका प्रतिवाद भी करना पड़ा| मुबशर साहब बेनजीर की आलोचना जरूर करते थे लेकिन वैसे ही जैसे कोई चाचा भतीजी की कर सकता है| बेनज़ीर की मौत पर वे अभी एक हफ्ते तक लाड़काना रहकर आये है|
खैर फरवरी ’99 में हुई लाहौर की इस लंबी भेंट में बेनज़ीर से अनेक मुद्दों पर खुलकर बात हुई| बेनज़ीर ने अपने ऑक्सफोर्ड के दिन याद किए और मैंने कोलंबिया युनिवर्सिटी के ! वातावरण इतना सहज और आत्मीय था कि अनेक आत्मकथात्मक प्रसंग भी छिड़े| बेनज़ीर ने अपनी रोज़मर्रा की निजी जिदंगी की तकलीफों के बारे में तफसील से बताया और एक बार तो उनकी ऑंखों में ऑंसू भी आ गए| मैंने पहली बार देखा कि यह वह बेनज़ीर नहीं है, जो प्रधानमंत्री रही है, जो जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल जगमोहन को ‘जाग मोहन, भाग मोहन’ कहकर दहाड़ती थी, जिसकी अकड़बाजी के कि़स्से सारे पाकिस्तान में मशहूर थे, जिसने नवाज़ शरीफ को खत्म करने के लिए कमर कस रखी थी| उस दिन बेनज़ीर में मुझे एक भावुक, सीधी-सच्ची और सहज युवा-स्त्री के दर्शन हुए| बेनज़ीर ने बताया कि आसिफ जेल में है और तीनों बच्चे छोटे हैं| नवाज़ मुझे गिरफ्तार करने पर आमादा है| मैं गिरफ्तार होने से नहीं डरती लेकिन आसिफ का, बच्चों का, मेरी पार्टी का क्या होगा? बेनज़ीर लगातार बोले जा रही थीं और मैं सुन रहा था| थोड़ी देर में उन्होंने मुझसे कहा कि आपको मैंने इस्लामाबाद में कुछ कहा था| क्या आप नवाज़ से मेरे बारे में बात करेंगे? मैंने कहा, जरूर कर सकता हूं लेकिन उनके मन में आपके बारे में इतनी कड़ुवाहट है कि कहीं मुझसे भी वे नाराज़ न हो जाऍं| इस पर बेनज़ीर ने कहा कि ‘आप मुझे बहन बोलते हैं तो क्या बहन और बहनोई के खातिर इतना खतरा भी मोल नहीं लेंगे?’
हम लोग इन बातों में मशगूल थे और नवाबजादा नसरूल्लाह खान अचानक कमरे में आ गए| उनके आने की सूचना किसी ने नहीं दी थी| वे सर्वदलीय मोर्चे के अध्यक्ष तो थे ही, काफी बुजुर्ग भी थे| ऐसे लग रहे थे, जैसे फोटो में हैदराबाद के निजाम लगते हैं| बहुत ही शाइस्ता| एक-दम दुबले-पुतले ! शेरवानी, पाजामा, टोपी ! बेनज़ीर ने उनकी तरफ ठीक से देखा भी नहीं| मैं उन्हें इसलिए पहचान गया कि पाकिस्तानी अखबारों में उनके फोटो देखा करता था| बेनजीर उठकर खड़ी भी नहीं हुई| मैं उठा तो उन्होंने कहा, नहीं, नहीं, आप बैठे रहिए| एक-दो मिनिट में ही बेनज़ीर ने उन्हें चलता कर दिया| हम लोग दुबारा बातें करने लगे| जुल्फिकार अली भुट्टो और उनके पूर्वजों के बारे में बातें छिड़ गईं| मैंने बताया कि भुट्टो साहब के बाबा और उनके पिता की भी हत्या हुई थी| और भुट्टो साहब की मॉं याने बेनजीर की दादी राजस्थानी थीं और हिंदू थीं| बेनज़ीर को इस पर काफी आश्चर्य हुआ| उनकी दादी के बारे में स्टेनली वोल्पर्ट ने जो लिखा था, वह उन्होंने देखा नहीं था| वे मुझसे उसी तरह के अनेक सवाल पूछती रहीं| अफगानिस्तान, तालिबान और कश्मीर पर भी चर्चा हुई| मुझे लगा कि मैं किसी अहंकारी नेता से नहीं बल्कि एक जिज्ञासु और मेधावी युवती से बात कर रहा हूं| वे भारतीय नेताओं, खास तौर से राजीव गॉंधी और ‘नरसिम्हाराव’ के बारे में बात करती रहीं| आखिरकर उन्होंने सीटीबीटी (कॉम्पि्रहेन्सिव टेस्ट बेन ट्रीटी) का मुद्दा उठाया| वे अपने इस्लामाबाद-भाषण में उसकी जबर्दस्त वकालत कर चुकी थीं | मुझे पता था कि जब हम मिलेंगे तो वे उस पर जरूर बात करेंगी| मैं उस संधि का मूलपाठ अपने साथ ले गया था| मैंने उसके कई प्रावधान उन्हें पढ़कर सुनाए और उन्हें बताया कि वह कितनी भेदभावपूर्ण और अनुचित संघि है| बेनज़ीर ने कहा कि हमारा नवाज्ा और आपके ‘वाजपायी’ इस पर दस्तखत करने ही वाले हैं| मैंने कहा मियॉ साहब का मुझे कुछ पता नहीं लेकिन हमारे प्रधानमंत्री चाहे जो कहें, इस पर वे दस्तखत नहीं करेंगे| उनकी पार्टी, संसद और विपक्ष उन्हें दस्तखत नहीं करने देंगे| यह बात चल ही रही थी कि किसी ने आकर बताया कि कुछ लोग मिलने आ गए हैं| इस पर मैंने बेनज़ीर से इज़ाजत मॉंगी तो वे बोली नहीं, नहीं, आप बैठिए | आप ही के लोग हैं| मैं क्या देखता हू कि मणिशंकर अय्यर, एतजाज अहसन, बलराम जाखड़ और के.आर. मल्कानी पधारे हुए हैं| उनके अंदर आते ही बेनज़ीर ने गर्मजोशी से सबका स्वागत किया लेकिन एतजाज अहसन पर टूट पड़ी| एतजाज उनके विधि मंत्री रह चुके थे और अब उनके राजनीतिक सलाहकार थे| ये वही एतजाज अहसन हैं, जिन्हें आजकल अन्तरराष्ट्रीय प्रसिद्घि मिली हुई है| एतजाज ने पाकिस्तान के प्रधान न्यायाधीश इफ्तिखार खान चौधरी के संघर्ष का नेतृत्व किया है| बेनज़ीर ने एतजाज अहसन को लगभग आड़े हाथों लेते हुए पूछा कि ‘ये क्या बात है, एतजाज, आप तो कह रहे थे कि यह ‘ट्रीटी’ ठीक-ठाक है| ये देखिए, यह वैदिक साहब क्या कह रहे हैं? मुझसे तो गलती हो गई| अब तो अखबार में भी आ गया है’| बेनज़ीर ने यह बोलकर मणिशंकर अय्रयर की तरफ देखा| अय्यर ने कहा कि सीटीबीटी का मेरी पार्टी समर्थन नहीं करती| हम सारे संसार में एक-जैसा निरस्त्रीकरण चाहते हैं, जैसा कि राजीव गांधी प्लान था| बेनज़ीर ने मेरी तरफ देखते हुए कहा, ‘अब इसमें से बाहर निकलने का रास्ता खोजना पड़ेगा|’ बेनज़ीर का यह रवैया मुझे बहुत ही पसंद आया| मुझे लगा कि कोई नेता अगर इतनी जल्दी अपनी गल्ती सुधारने के लिए तैयार हो सकता है तो वह काफी आगे तक जा सकता है| मुझे एक अन्य जरूरी मुलाकात पर जाना था| सो मैंने रूख्सत ले ली|
दूसरे दिन सुबह गवर्नर हाउस में प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ से मुलाकात हुई| नवाज़ शरीफ ने उस सम्मेलन का बहिष्कार किया था, जिसमें भाग लेने हम सब गए थे| उन्होंने इसीलिए हम भारतीयों को लाहौर के राज्यपाल निवास में बुलाया था| मैं लगभग आधा घंटा देर से पहुंचा, क्योंकि नवा-ए-वक्त के मालिक और प्रधान संपादक अब्दुल मजीद निज़ामी से हुई मुलाकात ज़रा ज्यादा लंबी खिंच गई| सूचना मंत्री मुशाहिद हुसैन (आजकल सत्तारूढ़ दल के महामंत्री) भीड़ चीरते हुए मेरे पास आए और बोले मियॉं साहब आपको खोज रहे हैं| आप कहॉं छिपे थे? खैर, मुशाहिद मुझे मियॉं नवाज़ के पास ले गए| मियॉं साहब से मैंने सुषमा स्वराज, बलरामजी, विजय गोयल आदि का परिचय करवाया| उन्होंने कहा, यहॉं तो बहुत भीड़ है| आप ऐसा करें कि हवाई अड्डे पहुंचे| वहॉं वी.आई.पी. लाउंज में बैठे ओर खाना खाऍं| मैं डेढ़ घंटे में वहॉं पहुंचता हूं| फिर अलग से बात हो जाएगी| प्रधानमंत्री के ए.डी.सी. मेजर खावर मुझे हवाई अड्डे ले गए| खाना हुआ| जैसे ही मियॉं नवाज़ पहुंचे, उन्होंने मुझसे कहा कि उन्होंने केबिनेट की बैठक अभी बुलाई है| हम इस्लामाबाद अभी जा रहे हैं| हमें सीटीबीटी पर फैसला करना है| बीबी ने उसका समर्थन किया है| आपकी सरकार दस्तखत करनेवाली है| आपकी क्या राय है? मैंने कहा, ‘यह आपके लिए काफी नुकसानदेह होगी| आप इसे टाल जाइए|’ उन्होंने लगभग आधा घंटा इसी मुद्दे पर बात की और मुझसे कहा कि मेजर खावर को आपके पास छोड़े जा रहा हूं| उन्हें आप उर्दू में आपकी सारी दलीलें नोट करवा दें| ये अगले जहाज से इस नोट को इस्लामाबाद ले आयेंगे| जब मियॉं साहब और मैं उनके जहाज की तरफ बढ़ने लगे तो मैंने उनको बेनज़ीर की बात कही| वे बोले, अच्छा तो वे अब आपका सहारा ले रही हैं| काफी-कुछ बड़बड़ाते रहे| तब मैंने उनको वह बात याद दिलाई, जो दो-साल पहले उनके फार्म हाउस पर उनके पिताजी, भाई शाहबाज़ और उनके साथ एकांत में हुई थी| मैंने उन्हें इंदिराजी के साथ चौधरी चरणसिंह के बर्ताव की भी याद दिलाई| मियां साहब ने कहा कि अच्छा, मैं उन्हें गिरफ्तार नहीं करूंगा लेकिन मोहतरमा से कहिए कि वे यहॉं से कहीं चली जाऍं| बेनज़ीर ने पाकिस्तान से आत्म-निर्वासन ले लिया| हम लोगों की दोस्ती पक्की हो गई|
अब हम लोगों के बीच ई-मेल और टेलिफोन पर सम्वाद बढ़ गया| इस संवाद को अधिक आत्मीय और विश्वस्त बनाने में बेनज़ीर के लंदन में उच्चायुक्त रहे श्री वाजिद शमसुल हसन ने काफी मदद की| वे कराची में पत्र्कार थे और उनसे 1983 में मेरी गहरी दोस्ती हो गई थी| उन्होंने ही मुझे कराची के मंदिर दिखाए थे और वे ही मुझे कराची में लगभग सभी बड़े नेताओं से मिलाने ले जाते थे| उनके बड़े भाई खालिद हसन नेशनल बैंक के डिप्टी चेयरमैन थे| दोनों हसन बंधुओं के पिता क़ायदे-आजम जिन्ना के लंबे अर्से तक सचिव रहे थे| वाजिद और बेनज़ीर में सरकारी संबंधों के साथ-साथ गहरी दोस्ती भी थी| बेनज़ीर अब लंदन और दुबई में रहने लगी थीं| संयोग की बात है कि मेरे बेटे सुपर्ण को दुबई में नौकरी मिल गई| वह कुछ वर्षो तक वहीं रहा| मैं और मेरी पत्नी जब भी यूरोप और अमेरिका जाते तो दुबई में ही रूकते ही| वहॉं सुपर्ण के अलावा हम किसी को जानते थे तो बस बेनज़ीर को ही जानते थे| उनको भी बहुत अच्छा लगा कि हम लोग दुबई आते रहेंगे| यों तो बाद में दुबई में सैकड़ों नए परिचित मिल गए और दर्जनों पूर्व परिचित मित्रें से भी संपर्क हो गया लेकिन राजनीतिक दृष्टि से हमारे दो ही मित्र् थे – एक तो शेख नाह्रयान मुबारक (शिक्षा मंत्री और बादशाह के भाई) और दूसरे बेनज़ीर और उनके बच्चे ! शेख नाहयान अपने देश के सर्वाधिक लोकपि्रय नेताओं में से हैं| एक बार फोन पर उन्होंने नवाज़ शरीफ से भी मेरी बात भी करवाई| मियॉं नवाज़ उन दिनों रियाद में निर्वासन भुगत रहे थे और बेनज़ीर दुबई में| दोनों शेख नाह्रयान से संपर्क बनाये रखते थे| जनरल मुशर्रफ का भी उनसे सीधा संपर्क था|
बेनज़ीर अपने तीनों बच्चों के साथ जुमैरा के एक बंगले में रहती थीं| हम लोग जब भी वहॉं जाते तो वे बड़ी गर्मजोशी से हमारा स्वागत करतीं| इस बात का पूरा ध्यान रखती थीं कि खाने में कोई सामिष चीज़ न आ जाए| कई व्यजंन वे खुद बनाती थीं| इसरार करके खिलाती थीं और खुद भी सब चीजें बड़े मजे से खाती थीं| अपना वजन घटाने की बात वे हर बार करती थीं| वे अक्सर कहती थीं कि इस छोटे-से बंगले में आपको ‘रिसीव’ करना मुझे अच्छा नहीं लगता, लेकिन क्या करें, मजबूरी है| उन्हें अपने बच्चों की बहुत चिंता रहती थी| वह कहा करती थीं कि लंदन और दुबई के चक्कर में बच्चों की बड़ी उपेक्षा होती है| वे जब भी हम लोगों से मिलने आतीं, प्राय: बच्चों को साथ लातीं| एक बार लंच के लिए आई तो अपनी मौसेरी बहन लालेह और उनके दो बच्चों को भी साथ लाई| फोन करके मुझसे पहले पूछा कि उन्हें लाऊं कि नहीं लाऊं? यह लंच मैने उज्जैन के अपने अनुजवत गंगाधर जसवानी के घर रखा| गंगाधरजी और सुपर्ण के घर आमने-सामने ही थे| खाना खाने के बाद जब वे बातों में मशगूल हो गईं तो बड़े लड़के बिलावल ने पूछा कि ‘क्या मैं इन सब बच्चों को लेकर पिक्चर चला जाऊं’? बेनज़ीर ने पर्स से कुछ ‘डिरहाम’ गिनकर बिलावल को दिए और कहा कि पिक्चर देखकर सीधे घर पहुचना|’ बिलावल ने नोट गिने और पूछा ‘बस इतने?’ बेनज़ीर ने कहा, ‘हॉं बस इतने ही ! फिजूलखर्ची नहीं करना|’ बेनजीर भूल गईं कि हम लोग पास में ही बैठे थे| हम लोगों के साथ काफी बेफिक्र और अनौपचारिक हो जाती थीं| वे वेदवतीजी से अक्सर कहा करती थीं कि आपके हाथ का खाना बड़ा लजीज़ होता है और खाने के बाद मुझे तो नींद आने लगती है| खाने के बहाने अक्सर चार-पॉंच घंटे हम लोग साथ बिताते| एक बार उन्होंने यह भी कहा कि आपके पास आकर काफी सुकून मिलता हैं| कभी-कभी बेनज़ीर फोन करतीं और कहतीं कि चलिए कॉफी पीने चलें| मैंने ‘स्टारबक कॉफी’ का नाम पहली बार उनके मुॅह से ही सुना| एक दिन मैंने फोन किया तो बोलीं, आप ‘स्टारबक’ आ जाइए| वहीं कॉफी पिऍंगे और घूमेंगे| मैंने पूछा कि यह ‘स्टारबक’ क्या है और कहॉं है तो थोड़ा हॅंसी और फिर बोलीं, ‘अच्छा, मैं आती हूं| मैं आपको अपने साथ ले चलती हूं|’ दुबई के स्टारबक केफे में बेनज़ीर, उनकी खालाज़ाद बहन लालेह और मैंने पहली बार जब संगत जमाई तो पाया कि बेनज़ीर एक कान से थोड़ा ऊंचा सुनती हैं| उन्होंने मुझ यह नहीं कहा कि आप थोड़ा जोर से बोलें बल्कि वे साइड पलटकर मेरे दूसरी तरफ बैठ गईं| मैं समझ गया| पता नहीं, क्यों, स्वास्थ्य संबंधी बातें चल पड़ीं| मुझसे कहने लगीं, मैं भी आपकी तरह वेजीटेरियन बनना चाहती हूं| कोशिश करती हूॅ लेकिन फिसल जाती हू| वे अक्सर मुझसे कहती थीं, भाई साहब, माशाअल्ला आपकी सेहत बहुत खूब है| आप क्या-क्या करते हैं? वे चाहती थीं कि योगासन करें, प्राणायाम करें, कुछ आयुर्वेदिक औषधियॉं लें| एक-दो बार ऐसा हुआ कि काफी हाउस जाते समय हमने कार रास्ते में छोड़ दी और पैदल चल पड़े| दस-बीस कदम ही चले होंगे कि बेनजीरजी कहतीं कि ‘जरा धीरे ! यू वॉक वेरी फास्ट ! दो-तीन साल पहले उनको ब्लड-प्रेशर की शिकायत भी रहने लगी थी| अनिद्रा भी ! मैंने उन्हें सोते समय मंदिर संगीत सुनने के लिए फालुन गॉंग के चीनी कैसेट भी भिजवाए थे| उस समय वे लंदन में थीं| वे सिनेमा के गाने बड़े शौक से सुनती थीं लेकिन पिछले कुछ वर्षो में उन्होंने भारतीय शास्त्र्ीय संगीत में भी रूचि दिखाई थी| मैंने उन्हें कुमार गंधर्व के कैसेट भी भिजवाए थे| वे कभी-कभी भारतीय फिल्मों के बारे में भी बात करती थीं| एकाध बार उनको बड़ा आश्चर्य हुआ कि भारत के कई बड़े हीरो-हिरोइनों के मैं नाम तक नहीं जानता|
जब उन्हें शुद्घ राजनीतिक बात करनी होती थी तो हम लोग अकेले ही मिला करते थे| एक बार बेनजीर ने मेरी पत्नी डॉ. वेदवती और मेरे साथ गए एक मित्र् से प्रार्थना की कि वे कृपया टीवी देखें| अन्यथा न मानें| वे और मैं अलग बैठकर बात करेंगे| ऐसी बैठकों में चर्चा का विषय यही होता था कि पाकिस्तान में लोकतंत्र् आएगा या नहीं? भारत सरकार मुशर्रफ को इतना सिर क्यों चढ़ा रही है? एक बार मेरे सुझाव पर उन्होंने नवाज शरीफ से फोन पर बात भी की| मैंने उन्हें मियॉ साहब का वहीं मोबाइल नंबर दे दिया, जो मुझे शेख नाह्रयान ने दिया था| वे शायद रियाद जाकर नवाज़ शरीफ से मिलीं भी| जब दोनों में कोई ठोस समझौता नहीं हुआ तो साझे दोस्तों के जरिए जनरल मुशर्रफ को भी मैंने संदेश पहुंचवाए| बेनज़ीर ने अपने ई मेलों में मुझे उधर से आए संकेतों की स्वीकृति भी दी| तीन-चार साल पहले बेनज़ीर पाकिस्तान जाने के लिए लगभग तैयार हो गईं| संयोगवश मैं उन्हीं दिनों दुबई पहुंच गया| इस मुद्दे पर जमकर विचार-विमर्श हुआ| बेनज़ीर ने मुझसे पूछा कि ‘मेरी जगह आप होते तो क्या करते?’ मैंने कहा, ‘जैसे मेरा स्वभाव है, मैं तो एक सेकेन्ड भी नहीं सोचता| कूद पड़ता| मुशर्रफ क्या करेंगे? ज्यादा से ज्यादा यही कि गिरफ्तार कर लेंगे|’ लेकिन असली सवाल यह है कि इन बच्चों का क्या होगा? आसिफजी पहले से जेल में है और फिर पाकिस्तान पाकिस्तान है| वह भारत नहीं है, लोकतंत्र् नहीं है| एक बार आप जेल में गए तो गए| कहीं कोई सुनवाई नहीं है| दुबई में बैठकर पार्टी किसी तरह चल तो रही है लेकिन जेल से वह कैसे चलेगी? और फिर जैसे भुट्टो साहब को फौजी हुकूमत ने फॉंसी पर लटका दिया, वह आपके साथ कुछ भी कर सकती है|’ तो क्या करें, बेनज़ीर ने फिर पूछा| ‘क्या यही पड़े रहे? मैंने कहा, नहीं| मुझे तो यही सूझता है कि नवाज शरीफ और दूसरे नेताओं से मिलकर आप संयुक्त मोर्चा बनाऍं और अमेरिका की तरफ से जनरल साहब पर दबाव भी डलवाऍं| उनकी चाबी अमेरिका के हाथों में है| यूरोपीय देशों में भी दौरा किया जाना चाहिए|’ बेनज़ीर से बात करते वक्त मुझे अब यह नहीं लगता था कि मैं किसी विदेशी नेता से बात कर रहा हूं| जैसे भारतीय नेताओं से बात होती है, वैसे ही बेनजीर से भी होती थी| वे सिर्फ सलाह-मशिवरा ही नहीं करती थीं, भरोसा भी करती थीं| जब हमारी संसद पर आतंकवादी हमला हुआ तो मैंने फोन पर पूछा कि आपने निंदा की या नहीं तो बेनजीर ने कहा कि आप कुछ ड्राफ्ट भेजिए| मैंने भेजा| उन्होंने तुरंत उसे अपने ढंग से जारी कर दिया| ई-मेल का जवाब देने में बेनज़ीर लाजवाब थीं| कई बार तो दो-चार मिनिट में ही जवाब आ जाता था| यदि वे यात्र कर रही हों या बीमार हों तो दुबई से उनके सचिव नसीम का या लंदन से बशीर रियाज़ साहब का जवाब आ जाता था| 27 दिसंबर को हादसे के बाद मैंने मेरे सचिव से पूछा कि क्या बेनज़ीरजी के कुछ ई-मेल कंप्यूटर में से निकाले जा सकते हैं? उसने 15-20 ई-मेल निकाल दिए| पिछले आठ-दस वर्षो के सारे ई-मेल अगर हम बचा पाते तो उनके आधार पर काफी रोचक कथा लिखी जा सकती थी| अब बिलावल से पूछूंगा कि अगर बेनजीर जी के कंप्यूटर पर वे ‘सेव’ हों तो उन्हें एक साथ भिजवाऍं|
बेनज़ीर के बचे हुए ई-मेलों को अभी एक साथ देखा तो उनका कुछ अलग ही अर्थ समझ में आया| पाकिस्तान के अनेक नेताओं ने मुझे कई बार कहा कि बेनजीर का बर्ताव बड़ा रूखा होता है लेकिन मेरा अनुभव यह है कि वह अपने संबंधों की काफी परवाह करती थीं| पिछले 6-7 वर्षो में वे जब भी दिल्ली आई, उन्होंने मुझे पहले खबर की| दिल्ली पहुचते ही वह खुद फोन करती थीं| भारतीय नेताओं से मिलने के पहले वह उनके बारे में काफी पूछताछ करती थीं| औपचारिक कार्यक्रमों के बाद जो भी समय बचता, वे चाहती थीं कि हम लोग साथ रहें| मुझे यह कभी भी जरूरी नहीं लगा कि बेनज़ीर के साथ फोटो खींचें जाए लेकिन अभी खोजने पर बहुत-से फोटों मिल गए| मुझे याद है कि वे किसी के भी अनुरोध पर फोटो खिचाने के लिए तैयारी हो जाती थीं| उन्होंने मेरे साथ दर्जनों फोटो खिंचवाए| फोटो के प्रति उनमें बाल-सुलभ ललक थी| ये फोटो अब धरोहर हो गए हैं| मैं और मेरी पत्नी उन्हें छोटे-मोटे तोहफे देते तो वे उन्हें खोलकर उसी समय देखतीं, उनकी तारीफ करती और शुकि्रया अदा करतीं| वे मुझे अक्सर किताब और कलम दिया करतीं | एक-दो किताबों पर उन्होंने मुझे कुछ लिखकर भी दिया| कई बार तोहफा देते समय वे मुझे कहतीं कि क्या करें, यहॉं परदेसी की तरह पड़े हैं| अखबारों में छपता है कि मेरे पास करोड़ों रूपए हैं लेकिन कैसे अपना खर्च चलाती हॅू, यह मैं ही जानती हूं| मेरी बेटी अपर्णा की शादी में वह फरवरी 2001 में भारत आना चाहती थीं लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि अमेरिका में उन्हें एक ‘लेक्चर एसाइनमेंट’ मिल रहा है| सारे साल भर का खर्च निकल जाएगा| आप जैसा कहें, करूं| अपनी दिल्ली-यात्र स्थगित करने के पहले उन्होंने जो ई-मेल मुझे भेजा था, वह अब भी बचा हुआ है| इसी प्रकार पिछले साल मई में जब मैं सिर्फ दो दिन के लिए अबू धाबी गया तो बेनजीर के सचिव ने कहा कि वे दुबई में नहीं हैं लेकिन उन्होंने कहलवाया है कि आप परसों उनके साथ लंच करें| उन्होंने पूरी दोपहर आपके लिए खाली रखी है| इस बार बेनज़ीर का घर जुमैरा में नहीं, ‘एमिरेत्स हिल’ में था| फोन नंबर बदल गए थे| इसीलिए फोन नहीं मिल रहा था| वह लंच नहीं हो सका, क्योंकि मुझे उस दिन दोपहर में अबू धाबी से दिल्ली आना था| इसी प्रकार बेनज़ीर शायद ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के शिखर-सम्मेलन में आईं लेकिन मैं उनसे नहीं मिल सका, क्योंकि मैं उस समय शायद नेपाल में था| उन्होंने दुबई लौटकर इन दोनों अ-मुलाकातों पर एक स्नेहिल ई-मेल भेजा, जिसकी शब्दावली बड़ी रोचक है| इसी प्रकार जुलाई-अगस्त में जब मैं अमेरिका में था तो मैने अखबारों में पढ़ा कि बेनज़ीर वाशिगटन डी.सी. आ रही हैं, बुश प्रशासन से बात करने| मैंने उन्हें ई-मेल भिजवाया| मैंने उनसे अनुरोध किया कि वे मेरी बेटी अपर्णा के घर आऍं और भोजन करें| अपर्णा उन्हीं दिनों वाशिंगटन डीसी की जार्जटाउन युनिवर्सिटी में प्रोफेसर नियुक्त हुई थी| बेनज़ीर और अपर्णा की भेंट कभी नहीं हुई थी लेकिन बेनजीर अपर्णा के बारे में अक्सर बात किया करती थी| अपर्णा को पहले बेनज़ीर की तरह आक्सर्फार्ड युनिवर्सिटी में प्रवेश मिला था लेकिन वजीफे के कारण वह अंततोगत्वा केम्बि्रज युनिवर्सिटी में ही पढ़ी| मैं चाहता था कि बेनजीर अपर्णा से मिले और बेनजीर चाहती थी कि मैं आसिफजी से मिलूं| मेरा शेष परिवार बेनजीर से मिल चुका था और बेनजीर का शेष परिवार मुझसे मिल चुका था| आसिफजी जब जेल से छूटे तो मैंने बेनजीर को सुझाव दिया था कि वे हफ्ते-दो हफ्ते के लिए सपरिवार गोआ आ जाऍं| बेनजीर ने बताया कि उनकी रीढ़ की हड्डी में बड़ा दर्द रहता है और वे ज्यादा यात्र नहीं कर सकते| आसिफजी जब जेल में थे तो बेनजीर उनसे हफ्ते में एक बार शाम को टेलीफोन पर बात जरूर करती थीं| शायद शुक्रवार के दिन ! उस दिन और उस समय वे बाहर कभी नहीं जाती थीं| जुमैरावाले घर में ही टिकी रहती थीं| जब आसिफजी इलाज़ के लिए न्यूयार्क गए तो बेनज़ीर ने मुझसे मेरा मोबाइल नंबर मॉंगा और कहा कि आपका नंबर जरदारी साहब के पास छोड़ दूंगी| आप अगर न्यूयॉर्क जाऍं तो उनसे जरूर मिलें| मुझे दिल्ली के लिए न्यूयार्क से फ्लाइट पकड़नी थी| बेनज़ीर का जवाब उस समय आया, जब मैं हवाई अड्डे पहुंच गया थ| वह वाशिंगटन में थी और मैं न्यूयार्क में ! 18 अक्टूबर को जब कराची में उन पर हमला हुआ तो मैंने ई-मेल भेजा| तुरंत उसका जवाब आया| फिर मैंने 20 दिसंबर को मेल भेजकर उन्हें बताया कि मैं पाकिस्तान आने का मन बना रहा हू लेकिन उनका जवाब नहीं आया| मैंने अंदाज लगाया कि वह चुनाव-प्रचार में व्यस्त हैं| मैं उन दिनों व्याख्यान-यात्रओं पर निकला हुआ था| मैंने सोचा कि दिल्ली लौटकर बेनजीर या बिलावल को फोन करूंगा लेकिन 27 दिसंबर की शाम को भोपाल के राजभवन में वह बहुत बुरी खबर सुनी|
बेनज़ीर भुट्टो : जैसा मैंने उन्हें जाना
जनसत्ता, 16 जनवरी 2008 : 27 दिसंबर की शाम 6 बजे के आस-पास ! भोपाल का राजभवन ! श्री बलराम जाखड़ और मैंने ज्यों ही चाय के प्याले अपने मुह से लगाए, उनके एडीसी ने हड़बड़ाते हुए बताया कि बेनज़ीर भुट्टो की हत्या हो गई ! मैं अवाक रह गया ! मेरी ऑंखें डबडबा गईं| बलरामजी को पता था कि बेनज़ीर से मेरी कितनी गहरी दोस्ती थी | फरवरी 1999 में जब 40 सांसदों का एक प्रतिनिधि मंडल इस्लामाबाद गया था तो श्री बलराम जाखड़ और श्री के. आर. मल्कानी के अनुरोध पर मैं भी उसमें शामिल हो गया था| उस प्रतिनिधि मंडल में शायद मैं ही अकेला गैर-सांसद था और शायद ऐसा व्यक्ति था, जो पाकिस्तानी नेताओं को निजी तौर पर जानता था| ‘जंग’ अखबार और ‘साफमा’ द्वारा आयोजित सम्मेलन में बेनज़ीर ने जैसे ही अपना भाषण खत्म किया, वह मंच से उतरकर सीधे मेरे पास आई और बोलीं, ‘आप कमाल करते हैं, परसों आपका ई-मेल मिला और आपने बताया नहीं कि आप आ रहे हैं| मुझे अभी स्टेज पर जाने के पहले सीनेटर इकबाल ने बताया कि आप भी आए हुए हैं और पीछे बैठे हुए हैं|’ होटल इस्लामाबाद के हॉल में बेनज़ीर और मैं खड़े-खड़े बात कर रहे थे, इतने में ही मल्कानीजी, बलरामजी, सिब्बल, विजय गोयल आदि बेनज़ीर से मिलने आ पहुंचे| बेनज़ीर ने इन लोगों को कोई खास तवज्जोह नहीं दी| मुझे अटपटा-सा लगा| मैंने बात रोककर अपने सांसदों का बेनज़ीर से परिचय करवाया| बेनज़ीर ने अपनी सचिव मिस नाहिद खान से कहा, ‘तुम वैदिक साहब को मेरे स्यूट में ले चलो, मै इन इंडियन एमपीज़ को निपटा के आती हूं’ यह नाहिद वही महिला हैं, जिनके हाथों में बेनजीर ने दम तोड़ा है| चार-पॉंच मिनिट में ही बेनज़ीर स्यूट में आ गई| आते से ही उन्होंने पूछा कि ये लंबे से ‘इम्प्रेसिव’ एम पी कौन हैं? मैंने उन्हें श्री बलराम जाखड़ के बारे में थोड़े विस्तार से बताया और यह भी कहा कि उनके गॉंव से पाकिस्तान की सीमा दिखाई पड़ती है| बेनज़ीर ने कहा कि मैं उनसे शायद भारत में भी मिली हूं| इतने में ही एक भारतीय पत्र्कार अचानक अंदर आ गए| कैमरा उनके हाथ में था | वे मेरे परिचित थे| मैने उनका परिचय करवाया| उन्होंने बेनजीर को कहा कि ‘आप तो बार्बी डॉल लगती हैं| मैं तो सिर्फ आपके दर्शन के लिए पाकिस्तान आया हूं| मुझे और किसी चीज़ से कोई मतलब नहीं है| क्या कुछ फोटो ले सकता हूं?’ बेनज़ीर ने नाहिद और मुझसे तीन बार कहा कि ‘देखो, इंडिया में भी ऐसे लोग हैं, जो सिर्फ मुझसे मिलने पाकिस्तान आते हैं|’ बेनज़ीर की इस सादगी पर मैं हतप्रभ था| बाद में सुनील डांग और मैं इस बात पर काफी हॅंसते रहे| डांग ने बेनज़ीर और मेरे कई चित्र् लिए| श्री सुनील डांग आजकल भाषाई समाचार-पत्र् मालिक संघ के अध्यक्ष हैं|
इस्लामाबाद और लाहौर की यह यात्र प्रधानमंत्र्ी अटल बिहारी वाजपेयी की प्रसिद्घ बस-यात्र के एक-डेढ़ सप्ताह पहले हुई थी| मियॉ नवाज़ शरीफ प्रधानमंत्री थे और बेनज़ीर भुट्टो विपक्ष की नेता थीं| मियॉं नवाज़ लगभग तीन-चौथाई बहुमत से चुनाव जीते थे| उन्होंने न्यायपालिका और खबरपालिका, दोनों से मुठभेड़ का माहौल बना रखा था| वे बेनज़ीर भुट्टो के पीछे हाथ धोकर पड़े थे| प्रधानमंत्री की तौर पर बेनज़ीर ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी| मियॉं नवाज़ के बुजुर्ग वालिद को गिरफ्तार कर लिया था| उनके अस्पताल, कारखानों और जायदादों से उन्हें बेदखल करने का पूरा इंतजाम किया था| प्रधानमंत्र्ी नवाज़ शरीफ बेनज़ीर को गिरफ्तार करना चाहते थे और बेनज़ीर अपनी पीपल्स पार्टी की तरफ से जगह-जगह जुलूस और धरने आयोजित करवा रही थीं| इसी महौल में हम होटल इस्लामाबाद में मिले थे| बेनजीर भुट्टो को पता था कि नवाज़ शरीफ से मेरा काफी अच्छा परिचय है| बेनज़ीर को यह पता कैसे चला? 1997 में जब नवाज़ को प्रचंड विजय मिली तो उस चुनाव अभियान के दौरान में 10 दिन लाहौर में ही था| मैं रोज ही नवाज, बेनज़ीर और इमरान खान की सभाओं में जाता था| जिस दिन चुनाव परिणाम आए, मैं पूरी रात नवाज शरीफ के मॉडल टॉउन वाले घर में ही रहा| लगभग रात भर मियॉ साहब मैं और एक छोटी-सी मेज़ पर बैठे चुनाव-परिणामों की गिनती लिखते रहे| इस बीच अनेक बड़े-बड़े उद्योगपति, फौजी और नेतागण अंदर आते और उन्हें बधाई देते| कुछ चुने हुए लोगों से वे मेरा जोरदार परिचय भी कराते| बाद में मालूम पड़ा कि उनमें से ही एक प्रसिद्घ उद्योगपति ने बेनज़ीर को मेरे बारे में बताया था| इसके अलावा पाकिस्तान के लगभग सभी अखबारों में मुखपृष्ट पर वह फोटो भी छपा था, जिसमें मियॉं नवाज़ जीत की खुशी में मुझे मिठाई खिला रहे थे| दूसरे दिन मियॉं साहब के रायविंड स्थित फार्म हाउस में पाकिस्तानी पत्र्कारों की जो बड़ी पार्टी हुई थी, उसमें बेनज़ीर भुट्टो के कई नजदीकी पत्र्कार भी शामिल थे| उन्होंने भी मुझसे शिकायत की थी कि इस मियॉं से आपकी इतनी दोस्ती क्यों है?
मियॉं नवाज़ के साथ रहनेवाली यह दोस्ती ही बेनज़ीर के साथ मेरी घनिष्टता का मूल कारण बनी| बेनज़ीर और मैं, जब होटल इस्लामाबाद के स्यूट में मिले तो बेनज़ीर ने पहला सवाल तो यह किया कि मेरा भाषण कैसा रहा? भारत के हिसाब से वह अच्छा था लेकिन सीटीबीटी (समग्र परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि) के समर्थन की बात मेरे समझ में नहीं आई| जब मैं बेनज़ीर को सीटीबीटी के प्रावधान विस्तार से समझाने लगा तो उन्होंने अचानक विषयान्तर किया और मुझसे बोलीं कि ‘आप मेरी कुछ मदद करेंगे? नवाज़ से आपका कैसा है? उससे आप मिलेंगे या नहीं? मैंने कहा, ‘जरूर मिलूंगा|’ अभी वे शायद इस्लामाबाद में नहीं हैं| परसों लाहौर में भेंट होगी| यह बात कुछ आगे बढ़ती, उसके पहले ही नाहिद अंदर आ गईं और बोलीं कि ‘प्लेन का टाइम हो गया है| लेट हो गए हैं| लाहौर में प्रोग्राम है|’ बेनज़ीर ने कहा कि ‘अच्छा, कल लाहौर में लंच साथ ही क्यों न करें?’ मैंने बताया कि हम लोग लाहौर बस से जाऍंगे| मैं लंच की जगह कैसे पहुंचूंगा? उन्होंने कहा, आप परवाह नहीं करें| मेरे आदमी बस का ट्रेक रखेंगे और मेरे लाहौर के सीनेटर जहांगीर बदर शहर की सीमा पर आपको खड़े मिलेंगे| वे बस रोक लेंगे| आप उतरकर उनकी बड़ी कार में बैठ जाऍ| भारतीय सांसदों की बस लाहौर पहुंची लेकिन लगभग साढ़े तीन बजे! सीनेटर बदर मुझे खड़े मिले| उन्होंने बताया कि ‘बीबी (बेनज़ीर भुट्टो) ने तीन बजे तक आपका इंतजार किया| अब वे एक मुजाहिरे में चली गई हैं| वे आपसे कल मिलेंगी| सीनेटर ने मुझे लंच कराया और मेरे होटल में मुझे छोड़ दिया|
दूसरे दिन सुबह बेनज़ीर से लाहौर में भेट हुई| यह भेंट लगभग दो घंटे चली| इसके पहले उनसे कई बार व्यक्तिगत मिलना हुआ, फोन पर बातें हुई और ई-मेलिंग भी होती रही लेकिन लाहौर की इस भेंट ने औपचारिकता को मित्र्ता में बदल दिया| दो बार जब वे प्रधानमंत्र्ी रहीं, उनसे फोन पर बात हुई लेकिन वे किसी न किसी बहाने मुझसे नहीं मिलीं| यह वह दौर था, जब वे भारत के विरूद्घ जबर्दस्त अभियान चलाए हुए थी| कश्मीर और तालिबान को उन्होंने ही शिखर पर पहुंचाया था| मेरी और उनकी मुलाकात हो जाए, ऐसी कोशिश एक बार राष्ट्रपति फारूक लघारी ने की थी और एक बार पाकिस्तानी विदेश मंत्रलय में सर्वोच्च पद पर रहे एक अन्य कूटनीतिक मित्र् ने| उस समय राष्ट्रपति लघारी और बेनज़ीर के संबंध काफी अच्छे थे| दोनों बार प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो ने फोन पर मुझसे बात की और मैंने उनसे जो-जो सुविधाऍं मॉंगी, उन्होंने दे दीं| जैसे पेशावर में अफगान मुजाहिद नेताओं से मिलने की अनुमति, उनके गृहमंत्री जनरल नसीरूल्लाह बाबर से भेंट, पाक-अधिकृत कश्मीर में प्रवास आदि| शायद बेनज़ीर के इशारे पर ही मेरे लिए सुरक्षा का विशेष इंतजाम भी किया गया और उनके कई निजी मित्र् भी मुझसे मिलते रहे| जो लोग बेनज़ीर को बचपन से जानते थे, वे मुझे अब कहते हैं कि बेनज़ीर जब सत्ता में रहती है तो कुछ और होती है| इसीलिए प्रधानमंत्री रहते हुए वह आपसे नहीं मिली लेकिन इसका कारण मुझे उस समय उनका घनघोर भारत-विरोधी होना ही लगता है| इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि लाहौर में अक्सर मैं डॉ. मुबशर हसन के घर ही ठहरता हूं | डॉ. मुबशर, भुट्टो साहब के वित्तमंत्री थे और पीपल्स पार्टी की स्थापना उनके गुलबर्ग वाले बंगले में ही हुई थी| डॉं. मुबशर और बेनज़ीर के बीच बराबर तनाव बना रहता था, क्योंकि मुबशर साहब बेनज़ीर की भाभी घिनवा की पार्टी के नेता थे| बाद के वर्षो में बेनज़ीर ने मुबशर साहब के बारे में एक बार जब कुछ कठोर बात कही तो मुझे उसका प्रतिवाद भी करना पड़ा| मुबशर साहब बेनजीर की आलोचना जरूर करते थे लेकिन वैसे ही जैसे कोई चाचा भतीजी की कर सकता है| बेनज़ीर की मौत पर वे अभी एक हफ्ते तक लाड़काना रहकर आये है|
खैर फरवरी ’99 में हुई लाहौर की इस लंबी भेंट में बेनज़ीर से अनेक मुद्दों पर खुलकर बात हुई| बेनज़ीर ने अपने ऑक्सफोर्ड के दिन याद किए और मैंने कोलंबिया युनिवर्सिटी के ! वातावरण इतना सहज और आत्मीय था कि अनेक आत्मकथात्मक प्रसंग भी छिड़े| बेनज़ीर ने अपनी रोज़मर्रा की निजी जिदंगी की तकलीफों के बारे में तफसील से बताया और एक बार तो उनकी ऑंखों में ऑंसू भी आ गए| मैंने पहली बार देखा कि यह वह बेनज़ीर नहीं है, जो प्रधानमंत्री रही है, जो जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल जगमोहन को ‘जाग मोहन, भाग मोहन’ कहकर दहाड़ती थी, जिसकी अकड़बाजी के कि़स्से सारे पाकिस्तान में मशहूर थे, जिसने नवाज़ शरीफ को खत्म करने के लिए कमर कस रखी थी| उस दिन बेनज़ीर में मुझे एक भावुक, सीधी-सच्ची और सहज युवा-स्त्री के दर्शन हुए| बेनज़ीर ने बताया कि आसिफ जेल में है और तीनों बच्चे छोटे हैं| नवाज़ मुझे गिरफ्तार करने पर आमादा है| मैं गिरफ्तार होने से नहीं डरती लेकिन आसिफ का, बच्चों का, मेरी पार्टी का क्या होगा? बेनज़ीर लगातार बोले जा रही थीं और मैं सुन रहा था| थोड़ी देर में उन्होंने मुझसे कहा कि आपको मैंने इस्लामाबाद में कुछ कहा था| क्या आप नवाज़ से मेरे बारे में बात करेंगे? मैंने कहा, जरूर कर सकता हूं लेकिन उनके मन में आपके बारे में इतनी कड़ुवाहट है कि कहीं मुझसे भी वे नाराज़ न हो जाऍं| इस पर बेनज़ीर ने कहा कि ‘आप मुझे बहन बोलते हैं तो क्या बहन और बहनोई के खातिर इतना खतरा भी मोल नहीं लेंगे?’
हम लोग इन बातों में मशगूल थे और नवाबजादा नसरूल्लाह खान अचानक कमरे में आ गए| उनके आने की सूचना किसी ने नहीं दी थी| वे सर्वदलीय मोर्चे के अध्यक्ष तो थे ही, काफी बुजुर्ग भी थे| ऐसे लग रहे थे, जैसे फोटो में हैदराबाद के निजाम लगते हैं| बहुत ही शाइस्ता| एक-दम दुबले-पुतले ! शेरवानी, पाजामा, टोपी ! बेनज़ीर ने उनकी तरफ ठीक से देखा भी नहीं| मैं उन्हें इसलिए पहचान गया कि पाकिस्तानी अखबारों में उनके फोटो देखा करता था| बेनजीर उठकर खड़ी भी नहीं हुई| मैं उठा तो उन्होंने कहा, नहीं, नहीं, आप बैठे रहिए| एक-दो मिनिट में ही बेनज़ीर ने उन्हें चलता कर दिया| हम लोग दुबारा बातें करने लगे| जुल्फिकार अली भुट्टो और उनके पूर्वजों के बारे में बातें छिड़ गईं| मैंने बताया कि भुट्टो साहब के बाबा और उनके पिता की भी हत्या हुई थी| और भुट्टो साहब की मॉं याने बेनजीर की दादी राजस्थानी थीं और हिंदू थीं| बेनज़ीर को इस पर काफी आश्चर्य हुआ| उनकी दादी के बारे में स्टेनली वोल्पर्ट ने जो लिखा था, वह उन्होंने देखा नहीं था| वे मुझसे उसी तरह के अनेक सवाल पूछती रहीं| अफगानिस्तान, तालिबान और कश्मीर पर भी चर्चा हुई| मुझे लगा कि मैं किसी अहंकारी नेता से नहीं बल्कि एक जिज्ञासु और मेधावी युवती से बात कर रहा हूं| वे भारतीय नेताओं, खास तौर से राजीव गॉंधी और ‘नरसिम्हाराव’ के बारे में बात करती रहीं| आखिरकर उन्होंने सीटीबीटी (कॉम्पि्रहेन्सिव टेस्ट बेन ट्रीटी) का मुद्दा उठाया| वे अपने इस्लामाबाद-भाषण में उसकी जबर्दस्त वकालत कर चुकी थीं | मुझे पता था कि जब हम मिलेंगे तो वे उस पर जरूर बात करेंगी| मैं उस संधि का मूलपाठ अपने साथ ले गया था| मैंने उसके कई प्रावधान उन्हें पढ़कर सुनाए और उन्हें बताया कि वह कितनी भेदभावपूर्ण और अनुचित संघि है| बेनज़ीर ने कहा कि हमारा नवाज्ा और आपके ‘वाजपायी’ इस पर दस्तखत करने ही वाले हैं| मैंने कहा मियॉ साहब का मुझे कुछ पता नहीं लेकिन हमारे प्रधानमंत्री चाहे जो कहें, इस पर वे दस्तखत नहीं करेंगे| उनकी पार्टी, संसद और विपक्ष उन्हें दस्तखत नहीं करने देंगे| यह बात चल ही रही थी कि किसी ने आकर बताया कि कुछ लोग मिलने आ गए हैं| इस पर मैंने बेनज़ीर से इज़ाजत मॉंगी तो वे बोली नहीं, नहीं, आप बैठिए | आप ही के लोग हैं| मैं क्या देखता हू कि मणिशंकर अय्यर, एतजाज अहसन, बलराम जाखड़ और के.आर. मल्कानी पधारे हुए हैं| उनके अंदर आते ही बेनज़ीर ने गर्मजोशी से सबका स्वागत किया लेकिन एतजाज अहसन पर टूट पड़ी| एतजाज उनके विधि मंत्री रह चुके थे और अब उनके राजनीतिक सलाहकार थे| ये वही एतजाज अहसन हैं, जिन्हें आजकल अन्तरराष्ट्रीय प्रसिद्घि मिली हुई है| एतजाज ने पाकिस्तान के प्रधान न्यायाधीश इफ्तिखार खान चौधरी के संघर्ष का नेतृत्व किया है| बेनज़ीर ने एतजाज अहसन को लगभग आड़े हाथों लेते हुए पूछा कि ‘ये क्या बात है, एतजाज, आप तो कह रहे थे कि यह ‘ट्रीटी’ ठीक-ठाक है| ये देखिए, यह वैदिक साहब क्या कह रहे हैं? मुझसे तो गलती हो गई| अब तो अखबार में भी आ गया है’| बेनज़ीर ने यह बोलकर मणिशंकर अय्रयर की तरफ देखा| अय्यर ने कहा कि सीटीबीटी का मेरी पार्टी समर्थन नहीं करती| हम सारे संसार में एक-जैसा निरस्त्रीकरण चाहते हैं, जैसा कि राजीव गांधी प्लान था| बेनज़ीर ने मेरी तरफ देखते हुए कहा, ‘अब इसमें से बाहर निकलने का रास्ता खोजना पड़ेगा|’ बेनज़ीर का यह रवैया मुझे बहुत ही पसंद आया| मुझे लगा कि कोई नेता अगर इतनी जल्दी अपनी गल्ती सुधारने के लिए तैयार हो सकता है तो वह काफी आगे तक जा सकता है| मुझे एक अन्य जरूरी मुलाकात पर जाना था| सो मैंने रूख्सत ले ली|
दूसरे दिन सुबह गवर्नर हाउस में प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ से मुलाकात हुई| नवाज़ शरीफ ने उस सम्मेलन का बहिष्कार किया था, जिसमें भाग लेने हम सब गए थे| उन्होंने इसीलिए हम भारतीयों को लाहौर के राज्यपाल निवास में बुलाया था| मैं लगभग आधा घंटा देर से पहुंचा, क्योंकि नवा-ए-वक्त के मालिक और प्रधान संपादक अब्दुल मजीद निज़ामी से हुई मुलाकात ज़रा ज्यादा लंबी खिंच गई| सूचना मंत्री मुशाहिद हुसैन (आजकल सत्तारूढ़ दल के महामंत्री) भीड़ चीरते हुए मेरे पास आए और बोले मियॉं साहब आपको खोज रहे हैं| आप कहॉं छिपे थे? खैर, मुशाहिद मुझे मियॉं नवाज़ के पास ले गए| मियॉं साहब से मैंने सुषमा स्वराज, बलरामजी, विजय गोयल आदि का परिचय करवाया| उन्होंने कहा, यहॉं तो बहुत भीड़ है| आप ऐसा करें कि हवाई अड्डे पहुंचे| वहॉं वी.आई.पी. लाउंज में बैठे ओर खाना खाऍं| मैं डेढ़ घंटे में वहॉं पहुंचता हूं| फिर अलग से बात हो जाएगी| प्रधानमंत्री के ए.डी.सी. मेजर खावर मुझे हवाई अड्डे ले गए| खाना हुआ| जैसे ही मियॉं नवाज़ पहुंचे, उन्होंने मुझसे कहा कि उन्होंने केबिनेट की बैठक अभी बुलाई है| हम इस्लामाबाद अभी जा रहे हैं| हमें सीटीबीटी पर फैसला करना है| बीबी ने उसका समर्थन किया है| आपकी सरकार दस्तखत करनेवाली है| आपकी क्या राय है? मैंने कहा, ‘यह आपके लिए काफी नुकसानदेह होगी| आप इसे टाल जाइए|’ उन्होंने लगभग आधा घंटा इसी मुद्दे पर बात की और मुझसे कहा कि मेजर खावर को आपके पास छोड़े जा रहा हूं| उन्हें आप उर्दू में आपकी सारी दलीलें नोट करवा दें| ये अगले जहाज से इस नोट को इस्लामाबाद ले आयेंगे| जब मियॉं साहब और मैं उनके जहाज की तरफ बढ़ने लगे तो मैंने उनको बेनज़ीर की बात कही| वे बोले, अच्छा तो वे अब आपका सहारा ले रही हैं| काफी-कुछ बड़बड़ाते रहे| तब मैंने उनको वह बात याद दिलाई, जो दो-साल पहले उनके फार्म हाउस पर उनके पिताजी, भाई शाहबाज़ और उनके साथ एकांत में हुई थी| मैंने उन्हें इंदिराजी के साथ चौधरी चरणसिंह के बर्ताव की भी याद दिलाई| मियां साहब ने कहा कि अच्छा, मैं उन्हें गिरफ्तार नहीं करूंगा लेकिन मोहतरमा से कहिए कि वे यहॉं से कहीं चली जाऍं| बेनज़ीर ने पाकिस्तान से आत्म-निर्वासन ले लिया| हम लोगों की दोस्ती पक्की हो गई|
अब हम लोगों के बीच ई-मेल और टेलिफोन पर सम्वाद बढ़ गया| इस संवाद को अधिक आत्मीय और विश्वस्त बनाने में बेनज़ीर के लंदन में उच्चायुक्त रहे श्री वाजिद शमसुल हसन ने काफी मदद की| वे कराची में पत्र्कार थे और उनसे 1983 में मेरी गहरी दोस्ती हो गई थी| उन्होंने ही मुझे कराची के मंदिर दिखाए थे और वे ही मुझे कराची में लगभग सभी बड़े नेताओं से मिलाने ले जाते थे| उनके बड़े भाई खालिद हसन नेशनल बैंक के डिप्टी चेयरमैन थे| दोनों हसन बंधुओं के पिता क़ायदे-आजम जिन्ना के लंबे अर्से तक सचिव रहे थे| वाजिद और बेनज़ीर में सरकारी संबंधों के साथ-साथ गहरी दोस्ती भी थी| बेनज़ीर अब लंदन और दुबई में रहने लगी थीं| संयोग की बात है कि मेरे बेटे सुपर्ण को दुबई में नौकरी मिल गई| वह कुछ वर्षो तक वहीं रहा| मैं और मेरी पत्नी जब भी यूरोप और अमेरिका जाते तो दुबई में ही रूकते ही| वहॉं सुपर्ण के अलावा हम किसी को जानते थे तो बस बेनज़ीर को ही जानते थे| उनको भी बहुत अच्छा लगा कि हम लोग दुबई आते रहेंगे| यों तो बाद में दुबई में सैकड़ों नए परिचित मिल गए और दर्जनों पूर्व परिचित मित्रें से भी संपर्क हो गया लेकिन राजनीतिक दृष्टि से हमारे दो ही मित्र् थे – एक तो शेख नाह्रयान मुबारक (शिक्षा मंत्री और बादशाह के भाई) और दूसरे बेनज़ीर और उनके बच्चे ! शेख नाहयान अपने देश के सर्वाधिक लोकपि्रय नेताओं में से हैं| एक बार फोन पर उन्होंने नवाज़ शरीफ से भी मेरी बात भी करवाई| मियॉं नवाज़ उन दिनों रियाद में निर्वासन भुगत रहे थे और बेनज़ीर दुबई में| दोनों शेख नाह्रयान से संपर्क बनाये रखते थे| जनरल मुशर्रफ का भी उनसे सीधा संपर्क था|
बेनज़ीर अपने तीनों बच्चों के साथ जुमैरा के एक बंगले में रहती थीं| हम लोग जब भी वहॉं जाते तो वे बड़ी गर्मजोशी से हमारा स्वागत करतीं| इस बात का पूरा ध्यान रखती थीं कि खाने में कोई सामिष चीज़ न आ जाए| कई व्यजंन वे खुद बनाती थीं| इसरार करके खिलाती थीं और खुद भी सब चीजें बड़े मजे से खाती थीं| अपना वजन घटाने की बात वे हर बार करती थीं| वे अक्सर कहती थीं कि इस छोटे-से बंगले में आपको ‘रिसीव’ करना मुझे अच्छा नहीं लगता, लेकिन क्या करें, मजबूरी है| उन्हें अपने बच्चों की बहुत चिंता रहती थी| वह कहा करती थीं कि लंदन और दुबई के चक्कर में बच्चों की बड़ी उपेक्षा होती है| वे जब भी हम लोगों से मिलने आतीं, प्राय: बच्चों को साथ लातीं| एक बार लंच के लिए आई तो अपनी मौसेरी बहन लालेह और उनके दो बच्चों को भी साथ लाई| फोन करके मुझसे पहले पूछा कि उन्हें लाऊं कि नहीं लाऊं? यह लंच मैने उज्जैन के अपने अनुजवत गंगाधर जसवानी के घर रखा| गंगाधरजी और सुपर्ण के घर आमने-सामने ही थे| खाना खाने के बाद जब वे बातों में मशगूल हो गईं तो बड़े लड़के बिलावल ने पूछा कि ‘क्या मैं इन सब बच्चों को लेकर पिक्चर चला जाऊं’? बेनज़ीर ने पर्स से कुछ ‘डिरहाम’ गिनकर बिलावल को दिए और कहा कि पिक्चर देखकर सीधे घर पहुचना|’ बिलावल ने नोट गिने और पूछा ‘बस इतने?’ बेनज़ीर ने कहा, ‘हॉं बस इतने ही ! फिजूलखर्ची नहीं करना|’ बेनजीर भूल गईं कि हम लोग पास में ही बैठे थे| हम लोगों के साथ काफी बेफिक्र और अनौपचारिक हो जाती थीं| वे वेदवतीजी से अक्सर कहा करती थीं कि आपके हाथ का खाना बड़ा लजीज़ होता है और खाने के बाद मुझे तो नींद आने लगती है| खाने के बहाने अक्सर चार-पॉंच घंटे हम लोग साथ बिताते| एक बार उन्होंने यह भी कहा कि आपके पास आकर काफी सुकून मिलता हैं|
कभी-कभी बेनज़ीर फोन करतीं और कहतीं कि चलिए कॉफी पीने चलें| मैंने ‘स्टारबक कॉफी’ का नाम पहली बार उनके मुॅह से ही सुना| एक दिन मैंने फोन किया तो बोलीं, आप ‘स्टारबक’ आ जाइए| वहीं कॉफी पिऍंगे और घूमेंगे| मैंने पूछा कि यह ‘स्टारबक’ क्या है और कहॉं है तो थोड़ा हॅंसी और फिर बोलीं, ‘अच्छा, मैं आती हूं| मैं आपको अपने साथ ले चलती हूं|’ दुबई के स्टारबक केफे में बेनज़ीर, उनकी खालाज़ाद बहन लालेह और मैंने पहली बार जब संगत जमाई तो पाया कि बेनज़ीर एक कान से थोड़ा ऊंचा सुनती हैं| उन्होंने मुझ यह नहीं कहा कि आप थोड़ा जोर से बोलें बल्कि वे साइड पलटकर मेरे दूसरी तरफ बैठ गईं| मैं समझ गया| पता नहीं, क्यों, स्वास्थ्य संबंधी बातें चल पड़ीं| मुझसे कहने लगीं, मैं भी आपकी तरह वेजीटेरियन बनना चाहती हूं| कोशिश करती हूॅ लेकिन फिसल जाती हू| वे अक्सर मुझसे कहती थीं, भाई साहब, माशाअल्ला आपकी सेहत बहुत खूब है| आप क्या-क्या करते हैं? वे चाहती थीं कि योगासन करें, प्राणायाम करें, कुछ आयुर्वेदिक औषधियॉं लें| एक-दो बार ऐसा हुआ कि काफी हाउस जाते समय हमने कार रास्ते में छोड़ दी और पैदल चल पड़े| दस-बीस कदम ही चले होंगे कि बेनजीरजी कहतीं कि ‘जरा धीरे ! यू वॉक वेरी फास्ट ! दो-तीन साल पहले उनको ब्लड-प्रेशर की शिकायत भी रहने लगी थी| अनिद्रा भी ! मैंने उन्हें सोते समय मंदिर संगीत सुनने के लिए फालुन गॉंग के चीनी कैसेट भी भिजवाए थे| उस समय वे लंदन में थीं| वे सिनेमा के गाने बड़े शौक से सुनती थीं लेकिन पिछले कुछ वर्षो में उन्होंने भारतीय शास्त्र्ीय संगीत में भी रूचि दिखाई थी| मैंने उन्हें कुमार गंधर्व के कैसेट भी भिजवाए थे| वे कभी-कभी भारतीय फिल्मों के बारे में भी बात करती थीं| एकाध बार उनको बड़ा आश्चर्य हुआ कि भारत के कई बड़े हीरो-हिरोइनों के मैं नाम तक नहीं जानता|
जब उन्हें शुद्घ राजनीतिक बात करनी होती थी तो हम लोग अकेले ही मिला करते थे| एक बार बेनजीर ने मेरी पत्नी डॉ. वेदवती और मेरे साथ गए एक मित्र् से प्रार्थना की कि वे कृपया टीवी देखें| अन्यथा न मानें| वे और मैं अलग बैठकर बात करेंगे| ऐसी बैठकों में चर्चा का विषय यही होता था कि पाकिस्तान में लोकतंत्र् आएगा या नहीं? भारत सरकार मुशर्रफ को इतना सिर क्यों चढ़ा रही है? एक बार मेरे सुझाव पर उन्होंने नवाज शरीफ से फोन पर बात भी की| मैंने उन्हें मियॉ साहब का वहीं मोबाइल नंबर दे दिया, जो मुझे शेख नाह्रयान ने दिया था| वे शायद रियाद जाकर नवाज़ शरीफ से मिलीं भी| जब दोनों में कोई ठोस समझौता नहीं हुआ तो साझे दोस्तों के जरिए जनरल मुशर्रफ को भी मैंने संदेश पहुंचवाए| बेनज़ीर ने अपने ई मेलों में मुझे उधर से आए संकेतों की स्वीकृति भी दी| तीन-चार साल पहले बेनज़ीर पाकिस्तान जाने के लिए लगभग तैयार हो गईं| संयोगवश मैं उन्हीं दिनों दुबई पहुंच गया| इस मुद्दे पर जमकर विचार-विमर्श हुआ| बेनज़ीर ने मुझसे पूछा कि ‘मेरी जगह आप होते तो क्या करते?’ मैंने कहा, ‘जैसे मेरा स्वभाव है, मैं तो एक सेकेन्ड भी नहीं सोचता| कूद पड़ता| मुशर्रफ क्या करेंगे? ज्यादा से ज्यादा यही कि गिरफ्तार कर लेंगे|’ लेकिन असली सवाल यह है कि इन बच्चों का क्या होगा? आसिफजी पहले से जेल में है और फिर पाकिस्तान पाकिस्तान है| वह भारत नहीं है, लोकतंत्र् नहीं है| एक बार आप जेल में गए तो गए| कहीं कोई सुनवाई नहीं है| दुबई में बैठकर पार्टी किसी तरह चल तो रही है लेकिन जेल से वह कैसे चलेगी? और फिर जैसे भुट्टो साहब को फौजी हुकूमत ने फॉंसी पर लटका दिया, वह आपके साथ कुछ भी कर सकती है|’ तो क्या करें, बेनज़ीर ने फिर पूछा| ‘क्या यही पड़े रहे? मैंने कहा, नहीं| मुझे तो यही सूझता है कि नवाज शरीफ और दूसरे नेताओं से मिलकर आप संयुक्त मोर्चा बनाऍं और अमेरिका की तरफ से जनरल साहब पर दबाव भी डलवाऍं| उनकी चाबी अमेरिका के हाथों में है| यूरोपीय देशों में भी दौरा किया जाना चाहिए|’ बेनज़ीर से बात करते वक्त मुझे अब यह नहीं लगता था कि मैं किसी विदेशी नेता से बात कर रहा हूं| जैसे भारतीय नेताओं से बात होती है, वैसे ही बेनजीर से भी होती थी| वे सिर्फ सलाह-मशिवरा ही नहीं करती थीं, भरोसा भी करती थीं| जब हमारी संसद पर आतंकवादी हमला हुआ तो मैंने फोन पर पूछा कि आपने निंदा की या नहीं तो बेनजीर ने कहा कि आप कुछ ड्राफ्ट भेजिए| मैंने भेजा| उन्होंने तुरंत उसे अपने ढंग से जारी कर दिया| ई-मेल का जवाब देने में बेनज़ीर लाजवाब थीं| कई बार तो दो-चार मिनिट में ही जवाब आ जाता था| यदि वे यात्र कर रही हों या बीमार हों तो दुबई से उनके सचिव नसीम का या लंदन से बशीर रियाज़ साहब का जवाब आ जाता था| 27 दिसंबर को हादसे के बाद मैंने मेरे सचिव से पूछा कि क्या बेनज़ीरजी के कुछ ई-मेल कंप्यूटर में से निकाले जा सकते हैं? उसने 15-20 ई-मेल निकाल दिए| पिछले आठ-दस वर्षो के सारे ई-मेल अगर हम बचा पाते तो उनके आधार पर काफी रोचक कथा लिखी जा सकती थी| अब बिलावल से पूछूंगा कि अगर बेनजीर जी के कंप्यूटर पर वे ‘सेव’ हों तो उन्हें एक साथ भिजवाऍं|
बेनज़ीर के बचे हुए ई-मेलों को अभी एक साथ देखा तो उनका कुछ अलग ही अर्थ समझ में आया| पाकिस्तान के अनेक नेताओं ने मुझे कई बार कहा कि बेनजीर का बर्ताव बड़ा रूखा होता है लेकिन मेरा अनुभव यह है कि वह अपने संबंधों की काफी परवाह करती थीं| पिछले 6-7 वर्षो में वे जब भी दिल्ली आई, उन्होंने मुझे पहले खबर की| दिल्ली पहुचते ही वह खुद फोन करती थीं| भारतीय नेताओं से मिलने के पहले वह उनके बारे में काफी पूछताछ करती थीं| औपचारिक कार्यक्रमों के बाद जो भी समय बचता, वे चाहती थीं कि हम लोग साथ रहें| मुझे यह कभी भी जरूरी नहीं लगा कि बेनज़ीर के साथ फोटो खींचें जाए लेकिन अभी खोजने पर बहुत-से फोटों मिल गए| मुझे याद है कि वे किसी के भी अनुरोध पर फोटो खिचाने के लिए तैयारी हो जाती थीं| उन्होंने मेरे साथ दर्जनों फोटो खिंचवाए| फोटो के प्रति उनमें बाल-सुलभ ललक थी| ये फोटो अब धरोहर हो गए हैं| मैं और मेरी पत्नी उन्हें छोटे-मोटे तोहफे देते तो वे उन्हें खोलकर उसी समय देखतीं, उनकी तारीफ करती और शुकि्रया अदा करतीं| वे मुझे अक्सर किताब और कलम दिया करतीं | एक-दो किताबों पर उन्होंने मुझे कुछ लिखकर भी दिया| कई बार तोहफा देते समय वे मुझे कहतीं कि क्या करें, यहॉं परदेसी की तरह पड़े हैं| अखबारों में छपता है कि मेरे पास करोड़ों रूपए हैं लेकिन कैसे अपना खर्च चलाती हॅू, यह मैं ही जानती हूं| मेरी बेटी अपर्णा की शादी में वह फरवरी 2001 में भारत आना चाहती थीं लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि अमेरिका में उन्हें एक ‘लेक्चर एसाइनमेंट’ मिल रहा है| सारे साल भर का खर्च निकल जाएगा| आप जैसा कहें, करूं| अपनी दिल्ली-यात्र स्थगित करने के पहले उन्होंने जो ई-मेल मुझे भेजा था, वह अब भी बचा हुआ है| इसी प्रकार पिछले साल मई में जब मैं सिर्फ दो दिन के लिए अबू धाबी गया तो बेनजीर के सचिव ने कहा कि वे दुबई में नहीं हैं लेकिन उन्होंने कहलवाया है कि आप परसों उनके साथ लंच करें| उन्होंने पूरी दोपहर आपके लिए खाली रखी है| इस बार बेनज़ीर का घर जुमैरा में नहीं, ‘एमिरेत्स हिल’ में था| फोन नंबर बदल गए थे| इसीलिए फोन नहीं मिल रहा था| वह लंच नहीं हो सका, क्योंकि मुझे उस दिन दोपहर में अबू धाबी से दिल्ली आना था| इसी प्रकार बेनज़ीर शायद ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के शिखर-सम्मेलन में आईं लेकिन मैं उनसे नहीं मिल सका, क्योंकि मैं उस समय शायद नेपाल में था| उन्होंने दुबई लौटकर इन दोनों अ-मुलाकातों पर एक स्नेहिल ई-मेल भेजा, जिसकी शब्दावली बड़ी रोचक है| इसी प्रकार जुलाई-अगस्त में जब मैं अमेरिका में था तो मैने अखबारों में पढ़ा कि बेनज़ीर वाशिगटन डी.सी. आ रही हैं, बुश प्रशासन से बात करने| मैंने उन्हें ई-मेल भिजवाया| मैंने उनसे अनुरोध किया कि वे मेरी बेटी अपर्णा के घर आऍं और भोजन करें| अपर्णा उन्हीं दिनों वाशिंगटन डीसी की जार्जटाउन युनिवर्सिटी में प्रोफेसर नियुक्त हुई थी| बेनज़ीर और अपर्णा की भेंट कभी नहीं हुई थी लेकिन बेनजीर अपर्णा के बारे में अक्सर बात किया करती थी| अपर्णा को पहले बेनज़ीर की तरह आक्सर्फार्ड युनिवर्सिटी में प्रवेश मिला था लेकिन वजीफे के कारण वह अंततोगत्वा केम्बि्रज युनिवर्सिटी में ही पढ़ी| मैं चाहता था कि बेनजीर अपर्णा से मिले और बेनजीर चाहती थी कि मैं आसिफजी से मिलूं| मेरा शेष परिवार बेनजीर से मिल चुका था और बेनजीर का शेष परिवार मुझसे मिल चुका था| आसिफजी जब जेल से छूटे तो मैंने बेनजीर को सुझाव दिया था कि वे हफ्ते-दो हफ्ते के लिए सपरिवार गोआ आ जाऍं| बेनजीर ने बताया कि उनकी रीढ़ की हड्डी में बड़ा दर्द रहता है और वे ज्यादा यात्र नहीं कर सकते| आसिफजी जब जेल में थे तो बेनजीर उनसे हफ्ते में एक बार शाम को टेलीफोन पर बात जरूर करती थीं| शायद शुक्रवार के दिन ! उस दिन और उस समय वे बाहर कभी नहीं जाती थीं| जुमैरावाले घर में ही टिकी रहती थीं| जब आसिफजी इलाज़ के लिए न्यूयार्क गए तो बेनज़ीर ने मुझसे मेरा मोबाइल नंबर मॉंगा और कहा कि आपका नंबर जरदारी साहब के पास छोड़
दूंगी| आप अगर न्यूयॉर्क जाऍं तो उनसे जरूर मिलें| मुझे दिल्ली के लिए न्यूयार्क से फ्लाइट पकड़नी थी| बेनज़ीर का जवाब उस समय आया, जब मैं हवाई अड्डे पहुंच गया थ| वह वाशिंगटन में थी और मैं न्यूयार्क में ! 18 अक्टूबर को जब कराची में उन पर हमला हुआ तो मैंने ई-मेल भेजा| तुरंत उसका जवाब आया| फिर मैंने 20 दिसंबर को मेल भेजकर उन्हें बताया कि मैं पाकिस्तान आने का मन बना रहा हू लेकिन उनका जवाब नहीं आया| मैंने अंदाज लगाया कि वह चुनाव-प्रचार में व्यस्त हैं| मैं उन दिनों व्याख्यान-यात्रओं पर निकला हुआ था| मैंने सोचा कि दिल्ली लौटकर बेनजीर या बिलावल को फोन करूंगा लेकिन 27 दिसंबर की शाम को भोपाल के राजभवन में वह बहुत बुरी खबर सुनी|
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