नया इंडिया, 31 मई 2014:आजकल कांग्रेस क्या करे? बैठी-बैठी बहादुरी दिखाए? अगर कहीं कोई मक्खी उड़ रही है तो पहले उसे शेर बताए और फिर उसे मारने के लिए अपने तोप-तमंचे दागने लगे। आजकल यही हो रहा है। कभी धारा 370 के सवाल पर और कभी स्मृति ईरानी को मंत्री बनाने पर कुछ नेताओं ने आसमान सिर पर उठा लिया है। मोदी-मंत्रिमंडल के एक कनिष्ठ मंत्री ने अगर यह कह दिया तो क्या आसमान फट गया कि धारा 370 पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए? यह पता लगाना चाहिए कि उसमें कश्मीरियों को फायदा हुआ है या नुकसान? यह मंत्री नौजवान है, राजनीति में अभी-अभी आया है और जम्मू-कश्मीर का है। उसके दिमाग पर 370 का सवार होना स्वाभाविक है। उसने वही कहा है, जो मोदी चुनाव-सभाओं में कहते रहे हैं लेकिन उस मंत्री के कथन पर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का इतना बौखला जाना कहां तक ठीक है?
उमर के यह कहने में कोई दम नहीं है कि जब तक धारा 370 है, तभी तक कश्मीर भारत में है। उमर से कोई पूछे कि धारा 370 है कहां? उसका होना और न होना एक बराबर है। धारा 370 रहे या जाए, कश्मीर जहां है, वही रहेगा। कश्मीर के अलावा धारा 370 किसी भी राज्य पर लागू नहीं होती। क्या धारा 370 के कारण उन राज्यों के मुकाबले कश्मीर को ज्यादा आजादी है? कश्मीर में केंद्र की जितनी दखलंदाजी रही है, क्या किसी अन्य राज्य में रही है? इसीलिए उमर अब्दुल्ला का बौखलाना नकली है, निरर्थक है।
जहां तक स्मृति ईरानी का सवाल है, उसे कोई फिल्म या संचार या कला से संबंधित विभाग दिया जाता तो बेहतर होता लेकिन मानव संसाधन मंत्रालय को चलाने के लिए उसके मंत्री का बीए पास होना जरुरी है क्या? अगर स्मृति एकाध साल और पढ़ी होती तो क्या वह बीए की डिग्री उसे बहुत काबिल बना देती? इस देश में मैट्रिक पास या फेल लोग प्रधानमंत्री रह चुके हैं, बादशाह अकबर और सुल्तान हैदरअली दस्तखत करना तक नहीं जानते थे लेकिन उनकी बादशाहत के चर्चे आज तक गूंज रहे हैं। औपचारिक डिग्री धारण करने से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, अनुभव से ज्ञान अर्जित करना। यदि स्मृति ईरानी में योग्यता होगी तो वह मानव संसाधन मंत्रालय चला ले जाएगी और नहीं होगी तो वह खुद ठप्प हो जाएगी।
इन दोनों मुद्दों को कांग्रेस और मीडिया ने जो अनावश्यक तूल दिया है, उससे यही संकेत मिलता है कि गंभीर मसलों की हम उपेक्षा कर रहे हैं और सतही मामलों पर अपना समय नष्ट कर रहे हैं। आखिर, बैठे-ठाले कुछ न कुछ तो करना ही पड़ता है।
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