नया इंडिया, 30 जुलाई 2014 : विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की नेपाल-यात्रा ने प्रधानमंत्री की नेपाल यात्रा को सफल बनाने का रास्ता तो साफ कर ही दिया है, उसने सभी पड़ौसी देशों को एक महत्वपूर्ण संदेश भी दे दिया है। उन्होंने नेपाल में कहा कि भारत को आप कोई बड़ा दादा (बिग ब्रदर) नहीं समझें। उसे आप बड़ा भाई (एल्डर ब्रदर) मानें। उसे आप भाई साहब नहीं, भाई जान समझें। यह बात मैंने पिछले माह पाकिस्तान की एक गोष्ठी में कही थी, जिसे वहां के मंत्रियों, फौजी जनरलों और विद्वानों ने खूब पसंद किया था। मुझे खुशी है कि सुषमाजी ने इस मूल मंत्र को ज़रा और बेहतर तरीके से दोहराया।
हमारे सभी पड़ौसी देशों की सबसे बड़ी समस्या यही है। ये सब देश कुल मिलाकर भी भारत के बराबर नहीं हैं। इसीलिए ये सभी देश भारत-भय की ग्रंथि से ग्रस्त रहते हैं। वे भारत से प्रेम करते हैं, उससे मदद भी चाहते हैं लेकिन उनके मन में ईष्र्या भी रहती है। सुषमा स्वराज का बयान इसी दर्द की दवा है। हम सभी दक्षिण एशियाई देशों की चित्तवृत्ति एक जैसी है। सभी जानते हैं कि हमारी संस्कृति में बड़ा भाई हमेशा त्याग, कुर्बानी, तपस्या का प्रतीक होता है। पहले वह सबको खिलाता है, फिर खुद खाता है। इस भाव ने नेपाल के लोगों में सद्भाव की लहर दौड़ा दी है।
अपने मूल मंत्र को अमली जामा पहनाते हुए सुषमा स्वराज ने नेपाल के पक्ष और विपक्ष के सभी नेताओं से भेंट की। उन्होंने अपने-पराए का कोई भेद नहीं रखा। इसी प्रकार उन्होंने नेपाल के लिए सर्वसमावेशी संविधान को उपयुक्त बताया लेकिन यह भी कह दिया कि वह कैसा हो, यह तय करना नेपालियों का काम है। दूसरे शब्दों में उन्होंने कह दिया कि नेपाल के आंतरिक मामलों में भारत की कोई दखलंदाजी नहीं होगी। नेपाली यही चाहते हैं।
सुषमाजी ने 23 साल से सोए पड़े भारत-नेपाल संयुक्त आयोग को फिर से जिंदा किया। दोनों देशों के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, तकनीकी और राजनीतिक सहयोग के नए आयाम खोले। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगले सप्ताह होनेवाली नेपाल-यात्रा के लिए अनुकूल वातावरण तैयार कर दिया। प्रधानमंत्री इंदर गुजराल की 1997 की यात्रा के बाद अब कोई भारतीय प्रधानमंत्री पहली बार राजकीय यात्रा पर काठमांडो जा रहे हैं। पिछली सरकार अपने 10 वर्षों के कार्यकाल में नेपाल की राजनीति को ठीक से समझ ही नहीं पाई। न तो उसके विदेश मंत्री और न ही उसके प्रधानमंत्री ऐसी भूमिका निभा पाए, जिससे सभी पक्षों के नेपालियों को संतोष हो सके। जो नेपाली नेता भारत के पारंपरिक मित्र हैं और जो हमारे विरोधी रहे हैं, वे सब अब यह महसूस करेंगे कि भारत की यह नई सरकार नेपाल के हित को सर्वोपरि समझेगी और उसे संपादित करने के लिए सभी पक्षों के साथ समान सहयोग करेगी।
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