नया इंडिया, 8 अप्रैल 2014 : भाजपा के घोषणा-पत्र के बारे में यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि देर आयद्, दुरूस्त आयद्। ऐन चुनाव के दिन यह घोषणा-पत्र मैदान में आया है। अगर यह नहीं आता तो क्या फर्क पड़ता? लोग क्या किसी पार्टी का घोषणा पत्र पढ़कर वोट देते हैं? वोटर तो क्या, उम्मीदवारों को ही पता नहीं होता कि उनके घोषणा-पत्रों में क्या लिखा होता है? और इस बार के आम चुनाव तो न दलों के भरोसे पर लड़े जा रहे हैं और न ही घोषणा-पत्रों के भरोसे। जहां तक भाजपा का प्रश्न है, उसकी पार्टी, उसका ध्वज, उसका घोषणा-पत्र-उसका सब कुछ नरेंद्र मोदी है। मोदी का नशा भारत की जनता पर इस कदर हावी हो गया है कि उसके आगे सब बेकार है।
फिर भी घोषणा-पत्र तो घोषणा-पत्र है। मोदी की सरकार बनने के बाद यही घोषणा-पत्र, जो अभी कागजों का पुलिंदा भर दिख रहा है, एक साथ हजार मुखों से चिंघाड़ने लगेगा। सारे विरोधी दल इसे ब्रह्मास्त्र की तरह इस्तेमाल करने लगेंगे। इसमें ये ढूंढ़-ढूंढकर मुद्दे निकाले जाएंगे, जिन्हें लेकर मोदी सरकार पर हमले होंगे। इसलिए हमें देखना चाहिए कि इस घोषणा-पत्र में क्या-क्या वायदे किए जा रहे हैं।
54 पृष्ठ के घोषणा-पत्र में से कुछ ही मुद्दे उठाए जा सकते हैं। सबसे पहला मुद्दा तो यह कि भाजपा ने अपने तीनों प्रमुख मुद्दों पर किन्तु-परंतु और अगर-मगर लगा दिया है। वह राम मंदिर, धारा 370 और समान नागरिक संहिता को अब आंख मींचकर लागू करने की बात नहीं कह रही है। उन पर उसने लचीला रूख अपनाया हैं। उसने अल्पसंख्यकों को रोजगार में समान अवसर देने और मदरसों के आधुनिकीकरण की बात भी कही है। उसने विरोधियों के इस आरोप की हवा निकाल दी है कि मोदी अगर प्रधानमंत्री बन गया तो वह तानाशाह बन जाएगा। यह घोषणा पत्र कहता है कि जो टीम इंडिया भारत का शासन चलाएगी उसमें प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्रियों की भूमिका भी समान होगी।
नौजवानों को रोजगार देने, काला धन घटाने, भ्रष्टाचार मिटाने, अनुसूचितों और ग्रामीणों को विशेष सुविधाएं देने, कर-प्रणाली को सुधारने, प्रभावी लोकपाल स्थापित करने, राज्यों के अधिकारों की रक्षा करने, गुप्तचर एजेंसियों को सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त करने, विदेशी पूंजी को खेरची व्यापार पर कब्जा न करने देने आदि के कई लोक-लुभावन वादे इस घोषणा-पत्र में है। लेकिन आश्चर्य है कि भाजपा ने शिक्षा में बुनियादी सुधार की कोई क्रांतिकारी योजना हमारे सामने नहीं रखी है। जिस देश की शिक्षा चौपट है, उसमें से भ्रष्टाचार, अत्याचार, बलात्कार और दुराचार को दूर नहीं किया जा सकता। भारत की शिक्षा, प्रशासन, न्याय और शासन में अंग्रेंजी के वर्चस्व और एकाधिकार ने भारत में अशिक्षा, अज्ञान, अभाव, असुरक्षा और असमानता को बढ़ाया है। यह घोषणा-पत्र इस मूलभूत मुद्दे पर कुछ बोला क्यों नहीं? एक संस्कारहीन भारत सम्पन्न और सशक्त भी हो गया तो किस काम का होगा?
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