नया इंडिया, 27 फरवरी 2014 : भाजपा के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कुछ ऐसी बात कह दी है कि जिसे सुनकर भाजपाई और उनके विरोधी, दोनों ही चकित हैं। नरेंद्र मोदी और मुसलमानों के संबंधों को लेकर सारा देश पिछले 12 वर्षों से बहस में उलझा हुआ है। देश के अनेक मोदी-निंदक मांग करते रहे हैँ कि गुजरात में 2002 में हुए रक्तपात के लिए मोदी माफी मांगें। लेकिन मोदी ने उस तरह से माफी नहीं मांगी, जिस तरह से मनमोहन सिंह ने सिखों से माफी मांगी थी।
सच्चाई तो यह है कि मनमोहन सिंह की माफी निरर्थक थी। एक तो स्वयं मनमोहन सिंह 1984 के सिखों के नर-संहार के लिए जिम्मेदार नहीं थे। उस समय वे वित्त मंत्रालय में अफसर रहे होंगे। दूसरा, मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जरूर बैठाए गए लेकिन उन्हें कौन-सा कांग्रेसी अपना नेता मानता है? जब कांग्रेसी ही उन्हें कुछ नहीं मानते तो आम जनता उन्हें क्यों मानेगी? सो उनकी माफी का क्या महत्व है। तीसरा, सिखों के घाव पर मरहम तो तब लगता जबकि राजीव गांधी खुद माफी मांगते या उनके बाद सोनिया गांधी मांगती। चौथा, माफी मांग कर सिर्फ जुबानी जमा-खर्च किया जाता है। सिखों की हत्या करने वालों को यदि यह सरकार दंड देती तो माना जाता कि वह ईमानदार है। उसकी माफी सच्ची है। 1984 के दंगों के बाद कांग्रेस ने लगभग 20 साल राज किया है लेकिन इस बीच किसे दंडित किया गया है?
इसलिए मोदी से माफी मांगने की बात कहने का कोई खास अर्थ नहीं है। इसमें शक नहीं कि गुजरात में जो कुछ घटा, वह शर्मनाक था। लेकिन हम यह न भूलें कि पुलिस कार्रवाई में वहां हिंदू भी मारे गए थे जबकि 1984 में सारा मामला एकतरफा हुआ था। गुजरात में फौज भी तुरंत बुला ली गई थी। क्या फौज ने मुख्यमंत्री के इशारे पर नरसंहार किया होगा? गोधरा-कांड पर जन-आक्रोश का ज्वार इतना भयंकर था कि मोदी तो क्या, वहां कोई भी फेल हो जाता। फिर भी मोदी ने काफी दुख और निराशा व्यक्त की है। यदि वे माफी मांगें तो पेंच यह है कि मोदी-निंदक उन्हें तब अपराधी घोषित कर देंगे, हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने उनको निर्दोष माना है।
लेकिन भाजपा के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने माफी की बात कहकर अपने स्वभाव की विनम्रता और उदारता प्रदर्शित की है। देश के ज्यादातर मुसलमानों पर इसका कुछ असर होगा या नहीं, कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन इससे यह तो पता चलता ही है कि भाजपा अब सर्व समावेशी पार्टी की छवि प्रस्तुत कर रही है। जाहिर है कि भारत जैसे विविध और विशाल राष्ट्र का संचालन उदारता के बिना नहीं किया जा सकता।
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