नया इंडिया, 24 मार्च 2014: आजकल भाजपा में प्रवेश करने वालों की भीड़ लगी हुई है। उसमें तरह-तरह के लोग हैं। एक दम नए लोग भी हैं। ऐसे भी, जो कभी राजनीति में आए ही नहीं। उन्हें न कोई पद पाने की इच्छा है और न ही वे लोकसभा का टिकिट मांग रहे हैं। उनकी हार्दिक इच्छा है कि वे कांग्रेस की विदाई में चल रहे राष्ट्रीय संगीत के स्वर में अपना भी एक स्वर मिला दें। ऐसे लोगों का कौन स्वागत नहीं करेगा? कुछ नए और प्रतिष्ठित लोग भाजपा-प्रवेश इसलिए कर रहे हैं कि यदि उन्हें टिकिट मिल जाए तो इस बहती गंगा में वे भी हाथ धो लें। राजनीति में प्रवेश का उनका यह मार्ग भी अनुचित नहीं है लेकिन आजकल बहुतायत उन लोगों की देखी जा रही है, जो कल तक अन्य पार्टियों के सांसद, विधायक या मंत्री बनकर बरसों से चांदी काट रहे थे लेकिन अब उनको टिकिट नहीं मिला तो उन्हें सारे गुण अकेली भाजपा में दिखाई पड़ रहे हैं।
यदि वे कांग्रेस छोड़ रहे हैं और उप्र में हैं तो वे सपा या बसपा में क्यों नहीं जाते? क्या बात है कि उनके लिए भाजपा रातों रात ‘सेक्युलर’ हो गई? क्या बात है कि कल तक जिसे आप ‘मौत का सौदागर’ कहते थे वह आज राष्ट्र का संकटमोचक बन गई है? बात साफ है। ये लोग तोताचश्म हैं याने इनका अपना स्वार्थ ही सबसे बड़ा पैमाना है। ये जान गए हैं कि भाजपा ही सत्ता में आने वाली है। और कुछ नहीं तो ये राज्यसभा की सीट ही झटक लेंगे या किसी आयोग के अध्यक्ष ही बन जाएंगे या राजदूत या राज्यपाल का पद ही ले मारेंगे।
ऐसे लोगों को पार्टी नेतृत्व इसलिए स्वीकार कर लेता है कि उनके प्रवेश से विरोधियों के हौसले पस्त होंगे और लोगों में जीत का भरोसा बढ़ेगा लेकिन पार्टी के वफादार कार्यकर्ताओं में जो रोष फैलता है, उसकी अनदेखी करना भी उचित नहीं है।
ऐसे लोगों को लोकसभा का टिकिट देने या बाद में तुरंत कोई पद देने की बजाय यह कहीं अच्छा होगा कि उन्हें दो-चार साल तक कंधे घिसने दें। यदि यह नहीं होता है तो इसका अर्थ यही लगाया जाएगा कि भाजपा भी शुद्ध कुर्सीबाज पार्टी है, कांग्रेस की तरह। कुछ सीटें जीतने के खातिर यह अपनी छवि क्यों बिगाड़े।
Leave a Reply