Nai Dunia, 8 July 2003 : इस बार अमेरिका में भारतीयों का जलवा देखने का विशेष अवसर मिला| ‘राजस्थान एसोसिएशन ऑफ नार्थ अमेरिका’ (राना) न्यूयॉर्क के पास लॉंग आइलैंड में राजस्थान-उत्सव आयोजित कर रहा है| इस उत्सव में करोड़ों रूपए खर्च हो रहे हैं| खर्च की ज्यादा चिंता नहीं है, क्योंकि उत्सव की कमान हीरा-व्यापारियों के हाथ में है| शुरू में होटल हिल्टन के कुछ कमरे और एक हाल बुक किए गए थे| अब ढाई सौ कमरों का पूरा होटल ही बुक हो गया है| अमेरिका के लगभग हर कोने से सैकड़ों राजस्थानी न्यूयॉर्क में इकठेृ हो गए हैं| कलकत्ता, मुंबई, जयपुर, जोधपुर और इंदौर के भी बहुत-से राजस्थानियों से भेंट हुई| जयपुर से मुख्यमंत्री अशोक गहलौत दल-बल सहित पधारे हैं| मालदार मारवाड़ी लोग शानदार दावतें कर रहे हैं| अमेरिका के पॉश इलाकों के अपने महलनुमा मकानों में उन्होंने हवेलियों का माहौल खड़ा कर दिया है| इसी प्रकार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री सुशीलकुमार शिंदे भी किसी सम्मेलन के सिलसिले में न्यूयॉर्क आाए हुए हैं| दोनों मुख्यमंत्रियों ने बताया कि वे अपने-अपने राज्यों के लिए पूंजीपतियों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं| सॉफ्टवेयर के बाद बायो-टेक की बारी है| बायो-टेक याने सजीव संसार संबंधी तकनीक| इसका दायरा सॉफ्टवेयर से कहीं बड़ा है| अमेरिका में अब तक 40 खरब डॉलर से अधिक पैसा बायो-टेक में लग चुका है| यदि भारत इस क्षेत्र में आगे बढ जाए तो उसके वारे-न्यारे हो सकते हैं|
अब से चौंतीस साल पहले जब मैं कोलंबिया युनिवर्सिटी में आया था तो न्यूयॉर्क शहर में दिन भर में कभी-कभी एक भी भारतीय के दर्शन नहीं होते थे| अब मेनहेटृन ही नहीं, न्यूयॉर्क के आस-पास आप किसी भी क्षेत्र में चले जाइए, आपको हर मोड़ पर कोई न कोई भारतीय दिख जाएगा| इस समय अमेरिका में भारतीयों की संख्या लगभग 20 लाख है| अगले 10 साल में वह 50 लाख हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं| ट्रेड टॉवर गिरने के कारण दुनिया के दर्जनों मुस्लिम देशों के नागरिकों का अमेरिका-प्रवेश अब कठिन हो गया है| इसका फायदा भारत को अवश्य मिलेगा| यों भी भारत के डॉक्टरों, इंजीनियरों, व्यापारियां, प्रोफेसरों आदि ने अपने बुद्घिबल का सिक्का यहॉं जमा दिया है| उनकी आय इस समय अमेरिका के किसी भी समुदाय से अधिक है| भारतीय लोगों के पास बड़े-बड़े मकान हैं, सबसे महॅंगी कारें हैं, उनका रहन-सहन अच्छा है| वे शिक्षा और सम्पन्नता के प्रतीक हैं| भारत के सबसे उन्नत लोग ही यहॉं आ पाते हैं| यहॉं आकर वे मालदार हो जाते हैं| वे समझते हैं कि अमेरिका उन पर कृपा कर रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि वे अमेरिका पर कृपा कर रहे हैं| भारत से आनेवाले सुशिक्षित नौजवान यदि यहीं शिक्षित होते तो उनकी शिक्षा पर लाखें रूपए खर्च होते| यहॉं शिक्षा का प्रतिमास का खर्च लगभग डेढ़ लाख रू. है| भारत अपने नौजवानों को पहले पाल-पोसकर बड़ा करता है और फिर पढ़ा-लिखाकर उन्हें अमेरिका को सौंप देता है| अरबों डॉलर की यह धरोहर अमेरिका को सेंत-मेंत में मिल रही है| भारतीयों ने अपने बुद्घिबल से अमेरिका को सूचना की महत्तम शक्ति बना दिया है| यदि ये ही भारतीय वापस भारत आ जाऍं तो पता नहीं, क्या चमत्कार कर दें|
अमेरिका में ज्यों-ज्यों भारतीयों की संख्या बढ़ रही है, उनके संगठन भी बढ़ते जा रहे हैं| लगभग हर बड़े शहर में भारतीय मंदिरों, मस्जिदों, मुरूद्वारों का निर्माण हो रहा है| मंदिर भी संप्रदायों के आधार पर बन रहे हैं| प्रादेशिक भाषाओं के आधार पर भी कुछ संगठन बन गए हैं| भाजपा और कॉंग्रेस की शाखाऍं भी काम कर रही हैं| व्यावसायिक संगठन तो पहले से सकि्रय हैं ही ! अनेक साधु-संतों, महंतों, योगियों और उपदेशकों ने यहॉं अपने मठ कायम कर लिए हैं| उनके पास भारतीयों के अलावा कुछ अमेरिकियों का भी आना-जाना लगा रहा है| आर्यसमाज भी लगभग सारे अमेरिका में सकि्रय है| गयाना, सूरिनाम और टि्रनिडाड से आए आर्यसमाजियों का उत्साह देखने लायक है| उनकी कार्रवाई अंग्रेजी में चलती है| मुझे भी उनकी समाजों में अंग्रेजी में ही भाषण देने पड़े| टोरंटो और न्यूयॉर्क के आर्यसमाजी अगले वर्ष विश्व आर्य सम्मेलन करने का वियार कर रहे हैं| योग-शिक्षा और हिन्दी-प्रचार पर वे विशेष बल दे रहे हैं| इस समय अमेरिका में लगभग दो करोड़ लोग प्रतिदिन योगाभ्यास करते हैं लेकिन योग उनके लिए एक टेकनीक भर बनता जा रहा है| योग के सामध्यम से वे भारत के निकट आऍं, इस तरह का कोइ्र योजनाबद्घ प्रयास दिखाई नहीं पड़ रहा|
भारतीय लोग स्वयं योगाभ्यास नहीं करते लेकिन चीनी लोग कर रहे है| चीनी उसे फालुन दाफा या फालुन गोंग कहते हैं| उसका शाब्दिक अर्थ है-धर्म-चक्र प्रवर्तन| इस संगठन के प्रवर्तक स्वामी ली एक तरह का व्यायाम और ध्यान सिखाते हैं, जो पतंजलि की पद्घति से मिलता-जुलता है| उनके दस करोड़ अनुयायी बन चुके है| अमेरिका में लाखों चीनी उन्हें अपना प्रेरणा-स्रोत मानते हैं|
‘ग्लोबल आर्गेनाइजेशन ऑफ पीपल्स ऑफ इंडियन ओरिजिन'(गोपियो) की कार्यकारिणी की बैठक में जाकर अच्छा लगा| डॉ. थॉमस एब्राहम इसके अध्यक्ष और गयाना के अशोक रामसरन इसके मंत्री हैं| भारत सरकार का प्रवासी सम्मेलन इसी ‘गोपियो’ के चिंतन और गतिविधियों की उपज है लेकिन पहले प्रवासी सम्मेलन से गोपिया के अधिकारी संतुष्ट दिखाई नहीं पड़े| भारत से एक समानांतर ‘गोपियो’ भी चल रहा है| दोनों ‘गोपियो’ मिलकर काम करें, यह अनुरोध डॉ. जगत मोटवानी ने प्रधानमंत्री वाजपेयी से भी किया| डॉ. मोटवानी के घर से मैंने प्रधानमंत्री को दोपहर को फोन किया तो जवाब आया कि सो गए| तीन-चार मिनिट बाद उनका फोन आया तो उन्होंने कहा कि ‘आप बिना घड़ी देखे ही फोन कर देते हैं|’ मैंने पूछा, ‘अभी भारत में रात के कितने बजे हैं?’ वे कुछ नहीं बोले तो मैंने पूछा, ‘क्या आपके पास घड़ी नहीं है?’ तो बोले, ‘मेरे पास घड़ी नहीं, घड़ा है|’ शब्दों के खिलंदर और विनोदपि्रय अटलजी ने बताया कि उनकी चीन-यात्रा बहुत सफल रही लेकिन यहॉं के भारतीय लोग और खास तौर से भाजपा के कार्यकर्ता यह नहीं समझ पा रहे कि हमने तिब्बत तश्तरी में रखकर चीन को क्यों दे दिया? बदले में भारत को क्या मिला?
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