नया इंडिया, 11 अक्टूबर 2013 : जम्मू-कश्मीर के नेताओं को हुआ क्या है? वे अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी चलाने के लिए कमर कसे हुए हैं। नेशनल कांफ्रेंस और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं ने विधानसभा को यह कहकर सिर पर उठा लिया कि जनरल वी के सिंह को सदन में पेश किया जाए। जनरल का दोष यह बताया जा रहा है कि उन्होंने सभी कश्मीरी नेताओं को कलंकित कर दिया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि आजादी के बाद से ही मंत्रियों और नेताओं को भारत सरकार पैसा खिलाती रही है। अब जनरल वी के सिंह सदन में आकर खुद बताएं कि किस-किस नेता को पैसा बांटा गया है। 16 विधानसभा सदस्यों ने विशेषाधिकार हनन का नोटिस दे रखा है। विधानसभा के दोनों सदनों ने सारे मामले की जांच करने का प्रस्ताव तो पारित कर ही दिया है लेकिन अब वे जनरल सिंह को सदन में बुलाकर अपनी ‘मान-रक्षा’ भी करना चाहते हैं।
जनरल सिंह को बुलाने के बारे में कोई प्रस्ताव पास नहीं हुआ है लेकिन विधानसभा अध्यक्ष मुबारक गुल ने कहा है कि वे उन्हें सदन में अवश्य पेश करवाएंगे। गुल ने यह आश्वासन इसलिए दिया है कि नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के सदस्य सदन चलने ही नहीं दे रहे थे। गुल ने कहा था कि वे पत्र लिखकर जनरल से सफाई मांगेंगे। अगर वे संतुष्ट नहीं हुए तो उन्हें बुलवाएंगे। जाहिर है कि अध्यक्ष गुल सारे मामले की नज़ाकत को समझ रहे थे लेकिन जो विधायक इसे तूल देने पर आमादा हैं, उनका रवैया बहुत ही बचकाना और गैर-जिम्मेदाराना है! वे एक-दूसरे की पोल खोलने को अपना सबसे बड़ा कर्तव्य समझ बैठे हैं। क्या वे नहीं जानते कि उनकी हठधर्मी से कश्मीर की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है? सिर्फ कुछ नाम ही चौपट नहीं होंगे, उनके बहाने ऐसे अनेक रहस्यों का पिटारा खुल पड़ेगा कि जिस पर ढक्कन लगाना भारत सरकार के बस की बात नहीं रह जाएगी। इसका सबसे ज्यादा लाभ पाकिस्तान उठाएगा। सारे संसार में भारत की बदनामी होगी।
सबसे पहली गलती तो भारत सरकार की है, जिसने अपनी गोपनीय रपट को रिसने दिया। यह लगभग देशद्रोहपूर्ण कार्य है। जनरल वी के सिंह को बदनाम करने का यह पैंतरा घटिया और खतरनाक है। क्या हमारी राजनीति इतनी नीचे गिर गई है? जनरल सिंह ने यह कहकर सरकार की मदद ही की है कि वह पैसा रिश्वत नहीं, सदभावना-राशि होती थी। अपने सीमांत क्षेत्रों में दुनिया की हर सरकार को कई पैंतरे अपनाने पड़ते हैं। भारत अपवाद नहीं है। यदि जनरल सिंह को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पेश होना पड़ा तो यह और भी शर्म की बात होगी। यह भारतीय सेना का अपमान होगा। यदि जनरल सिंह जैसे निर्भीक और ईमानदार व्यक्ति को गुस्सा दिला दिया गया तो पता नहीं कौन-कौन से कंकाल मुर्दाघर में उठकर तांडव करने लगेंगे। नेताओं को भागने का भी होश नहीं रहेगा। इस मामले में कांग्रेस, भाजपा और पेंथर्स पार्टी के नेताओं ने जिस संयम का परिचय दिया है, वह प्रशंसनीय है। अब केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस सारे मामले का पटाक्षेप करे। रक्षा मंत्रालय आगे बढ़कर स्थिति को संभाले। यदि कहीं कोई अनियमितता हुई है तो उसकी आंतरिक और गोपनीय जांच हो। दोषियों को दंडित किया जाए लेकिन सरकार भारत की भद्द पिटवाने से बाज़ आए।
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