नया इंडिया, 28 अगस्त 2013 : अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति पिछले हफ्ते भारत आए थे और उसके राष्ट्रपति इस हफ्ते इस्लामाबाद पहुंच गए। क्या इन दोनों यात्राओं में कोई संबंध है? शायद कोई नहीं? भारत से अफगानिस्तान हथियार चाहता है और पाकिस्तान से कह रहा है कि वह तालिबान पर लगाम लगाए। ये दो अलग-अलग बाते हैं और इन दोनों के लिए करज़ई सरकार ने दो अलग-अलग रास्ते पकड़ लिए हैं। क्या इन दोनों मुद्दों और दोनों रास्तों को उल्टा जा सकता है? याने क्या पाकिस्तान अफगानिस्तान को हथियार दे सकता है और भारत तालिबान को मेल-जोल की राह दिखा सकता है? यह समाधान असंभव दिखता है लेकिन भारत और पाकिस्तान के नेताओं में दूरदृष्टि और साहस हो तो इस असंभव को भी वे संभव बना सकते हैं। करजई, जिसे स्वाभाविक समाधान समझ रहे हैं, वह भी आसान नहीं है। भारत यदि अफगानिस्तान को हथियार देता है तो पाकिस्तान इसे शत्रुतापूर्ण कार्रवाई मानेगा और फिर वह तालिबान की पीठ क्यों नहीं ठोकेगा? इसके अलावा तालिबान हर तरह से पाकिस्तान पर निर्भर जरुर हैं लेकिन वे उसकी कठपुतली नहीं हैं। उनकी स्वायत्त रणनीति में जैसे ही पाकिस्तान ने टांग अड़ाई, वे उस पर पलटवार करना शुरु कर देंगे। दूसरे शब्दों में ये दोनों मामले आपस में जुड़े हुए हैं।
इनका समाधान यही है कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत, इन तीनों देशों के नेता एक साथ मिलें और एक संयुक्त रणनीति बनाएं ताकि अफगान-फौजों को हथियार और प्रशिक्षण भारत और पाकिस्तान मिलकर दें। भारत के विदेश नीति निर्माता यदि धैर्य और बुद्धिमत्ता से काम लें तो अफगान मामलों में पाकिस्तान को आगे-आगे चलने दें और भारत को पीछे-पीछे! तालिबान का भारत से सीधा संपर्क रहा है, यह रहस्य बहुत कम लोगों को पता है। न्यूयार्क और वाशिंगटन में 1999 में तालिबान का ‘राजदूत’ भारतीय प्रधानमंत्री के एक मित्र से नियमित मिलता रहता था और उसने हमारे अपहत हवाई जहाज को छुड़वाने में भी मदद की थी। तालिबान अपनी सरकार को भारत से मान्यता दिलवाने को बेताब थे। भारत को चाहिए कि वह तालिबान से सीधा संपर्क करे और उन्हें बातचीत की मेज पर बिठाने की कोशिश करे। यदि अमेरिका यह कोशिश कर सकता है तो भारत को तो दुगुना अधिकार है, क्योंकि तालिबानी आतंक से जितना नुकसान अमेरिका को है, उससे कई गुना ज्यादा भारत को है। दक्षिण एशिया के मामलों में भारत को अमेरिका का पिछलग्गू नहीं बनना चाहिए बल्कि उसके मागदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए। अमेरिका तो अगले साल वापस हो जाएगा, भारत कहां जाएगा?
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