नया इंडिया, 26 दिसंबर 2013: भारत और पाकिस्तान के सैन्य महानिदेशकों की बैठक से कुछ आशा बंधने लगी है। दोनों पड़ौसी देशों के संबंधों में इधर जो ठंडापन पैदा हो गया था, उसमें गर्माहट आती-सी लग रही है। पाकिस्तान में मियां नवाज शरीफ की नई सरकार ने भारत से संबंध सुधारने की कई घोषणाएं की थीं लेकिन एक तो संयुक्त राष्ट्र में नवाज ने जो भाषण कश्मीर के बारे में दिया और दूसरा कब्जाए हुए कश्मीर की संसद में जो कुछ बोला उससे लग रहा था कि द्विपक्षीय संबंध लकवाग्रस्त हो गए हैं। सरताज़ अजीज की भारत-यात्रा से भी कोई बर्फ नहीं पिघली। ऐसे में फौजी महानिदेशकों ने जो फैसले किए हैं, एक-दूसरे को जो आश्वासन दिए है और जिस सौदार्दपूर्ण वातावरण में उनकी भेंट हुई है, उससे लगता है कि कम से कम अब भारत-पाक सीमांत से वैसी बुरी खबरें नहीं आएंगी, जैसी कि पिछले साल भर से आती रही है। 10 साल पुराना युद्ध-विराम समझौता पिछले दिनों टूटने के कगार पर था। अब उसके पालन के आसार बन रहे हैं। दोनों तरफ के इन महानिदेशकों की ऐसी भेंट लगभग 15 साल बाद हुई है।
दोनों ने तय किया है कि वे ‘हाट लाइन’ पर अब अक्सर संवाद किया करेंगे। कोई भी गड़बड़ी होने पर तुरंत एक-दूसरे को सूचित करेंगे। कोई नागरिक यदि गल्ती से सीमा-रेखा के पार चला गया तो उसकी वापसी का इंतजाम होगा। दोनों देशों के ब्रिगेड कमांडर भी समय-समय पर मिला करेंगे। लेकिन जान-बूझकर नियंत्रण-रेखा का उल्लंघन करनेवालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। पिछले साल पाकिस्तान की तरफ से नियंत्रण-रेखा के उल्लंघन की कोशिश 267 बार हुई। भारत के दो फौजियों के सिर काट दिए गए और पुंछ में पांच जवानों को मार दिया गया। पाकिस्तान ने आश्वासन दिया कि इस तरह की घटनाएं दोहराई नहीं जाएंगी। भारत ने उनका यह सुझाव स्वीकार नहीं किया कि नियंत्रण-रेखा की निगरानी के लिए संयुक्त राष्ट्र का फौजी मिशन बुला लिया जाए। पाकिस्तान की ओर से यह भरसक कोशिश की गई कि इस सारे द्विपक्षीय मामले का अन्तरराष्ट्रीयकरण कर दिया जाए लेकिन भारत ने ऐसे सभी प्रयत्न विफल कर दिए। इसके बावजूद पाकिस्तान बातचीत के लिए तैयार हुआ, यह अच्छी बात है। सितंबर में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की न्यूयार्क में जो भेंट हुई थी, यह बैठक उसी का परिणाम है। मियां नवाज ने जब यह संकेत दिया था कि वे भारत में नई सरकार का इंतजार कर रहे हैं तो ऐसा लग रहा था कि द्विपक्षीय संबंध-सुधार का पहिया चलते-चलते थम गया है लेकिन फौजियों की इस बैठक से यह आशा बंधती है कि इस कामचलाऊ-जैसी सरकार से भी नवाज़-सरकार कुछ सार्थक बातचीत कर सकती है। आशा की जानी चाहिए कि इस सरकार को विदा होने के पहले पाकिस्तान कम से कम ‘सर्वाधिक अनुग्रहीत’ राष्ट्र का दर्जा प्रदान कर देगा ताकि दोनों देशों में व्यापार का रथ तेजी से दौड़ने लगे। यदि सहयोग और सद भावना का रथ इसी तरह आगे बढ़ता रहे तो कोई आश्चर्य नहीं कि अफगानिस्तान के सवाल पर भी भारत और पाक में कोई सहमति बन जाए। ऐसी सहमति अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने में तो सहायक सिद्ध होगी ही, भारत और पाक के लिए भी वरदान सिद्ध होगी।
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