नया इंडिया, 25 दिसंबर 2013: दिल्ली में जो नाटक हो रहा है, वह अभूतपूर्व है। ‘आप’ के नेता अरविंद केजरीवाल ऐसी परिस्थितियों में मुख्यमंत्री बनने को तैयार हो गए हैं, जैसी भारत में पहले किसी प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के सामने नहीं थी। प्रयोगों में पहले भी दो-चार दिनवाले मुख्यमंत्री हुए हैं लेकिन उनके बनने और हटने के कारण काफी अलग थे। दिल्ली का मामला सबसे अजूबा है। जिस पार्टी को हम भ्रष्ट कहें और जिसे हटाने के लिए हम एड़ी-चोटी का जोर लगा दें तथा जिसे जनता झाड़ू लगा दे, उसी कचरा पार्टी के दम पर ‘आप’ सरकार बना लें तो इसे क्या कहा जाएगा? अवसरवाद, अनैतिकता, सत्ता-लिप्सा, विवेकहीनता या वादाखिलाफी? चुनाव अभियान के दौरान ‘आप’ के नेताओं ने कई बार साफ़-साफ़ कहा था कि हम न तो कांग्रेस के साथ गठबंधन करेंगे और न भाजपा के साथ! अब गठबंधन से भी बदतर काम याने उनके टेके पर खड़े हो रहे हैं और टेका भी किसका? कांग्रेस का!
अपने इस विचित्र फैसले को सही ठहराने के लिए जनसभा का ढोंग किया गया। दो लाख लोगों का इंटरनेट-समर्थन क्या मायने रखता है? क्या ये जनसभाएं और इंटरनेट अभिमत चुनाव से भी अधिक वैधता रखते हैं? जब चुनाव में जनता ने आप को दूसरे स्थान पर बिठा दिया, आप पहले स्थान पर कूदनेवाले कौन होते हैं? जाहिर है कि अब अगले चुनाव में ‘आप’ को मुंह दिखाना मुश्किल हो जाएगा। वह किस मुंह से कांग्रेस के टेके को उचित ठहराएगी? कांग्रेस ने पहले ग्रास में मक्खी पटक दी है। उसने कह दिया है कि हमारा समर्थन सशर्त है। इसका अर्थ ये शिशु-राजनीतिज्ञ समझे या नहीं? यदि कांग्रेस ने पहले ही दिन अपना समर्थन खींच लिया तो क्या होगा? चैधरी चरणसिंह की तरह सदन में पांव रखते ही आप की सरकार शीर्षासन की मुद्रा में आ जाएगी। क्या उप-राज्यपाल इस सरकार को अगले चुनाव तक ‘कामचलाउ’ कहकर टिकने देगा? शायद नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि कौआ जितना स्याणा होता है, वह उतने ही मैले पर बैठ जाता है। मानो कामचलाउ सरकार की तरह ‘आप’ बनी रहे और राज्यपाल उसे अपना घोषणा-पत्र लागू न करने दें तो कितनी मसखरी होगी। अरविंद केजरीवाल ‘मसखरे मुख्यमंत्री’ की तौर पर जाने गए तो यह दिल्ली के 30 प्रतिशत मतदाताओं का अपमान होगा। आप को याद है न, मुगलकाल में एक भिश्ती, बादशाह हो गया था, जिसने चमड़े के सिक्के चलवा दिए थे। यदि कांग्रेस अपनेवाली पर उतर जाए और अरविंद को भिश्ती बादशाह की तरह बदनाम करने पर उतारु हो जाए तो अरविंद की ऐसी तैयारी पहले से होनी चाहिए कि पहले ही कुछ घंटों में ‘आप’ की सरकार चमत्कारी आदेश जारी कर दें। यदि वे लागू हो गए तो वाह! वाह! और नहीं लागू हुए तो कम से कम ‘आप’ को अपनी नाक बचाने का बहाना तो मिल ही जाएगा। यदि कांग्रेस ‘आप’ की सरकार को छह माह भी चलने दे तो यह दुनिया का आठवां आश्चर्य होगा।
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