दैनिक भास्कर, 27 मार्च 2008 : किसी देश में हुए चमत्कार पर हम क्या इसीलिए ध्यान न दें कि उसकी जनसंख्या सिर्फ 6-7 लाख है? जी हॉं, छह लाख 70 हजार की जनसंख्या वाला यह देश भूटान, भारत का पड़ौसी है| भूटान में लोकतंत्र् का जैसा सूर्योदय हुआ है, वैसा अब तक किसी अन्य शाही देश में नहीं हुआ है| खून की नदियों में डूबे बिना राजतंत्र् से लोकतंत्र् की यात्र नहीं होती| क्या नेपाल, क्या ईरान, क्या अफगानिस्तान और क्या खुद बि्रटेन? इन देशों में लोकतंत्र् को इतने पापड़ बेलने पड़े हैं कि भूटान अपने आप में एक एतिहासिक मिसाल बन गया है| भूटान लोकतंत्र् की मिसाल और मशाल, दोनों है|
उसने वयस्क मताधिकार के आधार पर पहली बार अपनी संसद चुनी है| तीन लाख 20 हजार मतदाताओं में से लगभग 80 प्रतिशत ने मतदान किया| लंबे-चौड़े पहाड़ी देश में फैले 865 मतदान केंद्रों पर लोगों ने पंक्तिबद्घ होकर जिस तरह मतदान किया है, वैसा यूरोपीय देशों में भी नहीं होता| एक 65 वर्षीय महिला ने मतदान के लिए 600 कि.मी. की पदयात्र की| मतदान पर निगरानी रखने के लिए 42 देशों के जो प्रतिनिधि आए थे, उनका कहना है कि चुनाव में कोई धांधली नहीं हुई, हिंसा नहीं हुई, अपि्रयता नहीं हुई| लोगों ने मतदान ऐसे किया, जैसे मंदिर में पूजा करते हैं|
दो पार्टियों ने चुनाव लड़ा| एक द्रुक फूएनसम शोगपा और दूसरी पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी| दोनों पार्टियों के नेता पहले प्रधानमंत्री रह चुके हैं| पहली पार्टी, जिसके नाम का अर्थ है, भूटानी शांति और संपन्नता पार्टी, ने 47 में से 44 सीटें जीती हैं और दूसरी पार्टी ने तीन सीटें| हारनेवाली पार्टी के नेता सांग्ये गेदुप वर्तमान नरेश के सगे मामा हैं| लोगों ने नरेश के संबंधी के बजाय जिग्मे थिनले नामक एक आम आदमी को अपना नेता चुना| 26 वर्षीय नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल तो इस बात से खुश होंगे ही, उनके पिता पूर्व नरेश जिमे सिंग्ये वांगचुक उनसे भी ज्यादा खुश होंगे, क्योंकि उन्होंने ही अब से लगभग 15 साल पहले भूटान में लोकतंत्र् लाने की घोषणा की थी| उन्होंने नरेश के निरंकुश अधिकारों को न केवल धीरे-धीरे घटाना शुरू कर दिया था बल्कि दो साल पहले नरेश का पद भी छोड़ दिया था| अपने 24 वर्षीय बेटे को राज-पाट सौंपकर उन्होंने ऐसी संवैधानिक व्यवस्था कर दी थी कि भूटान का नरेश बि्रटेन के राजा की तरह केवल ध्वजमात्र् रह जाए| उनका स्वास्थ्य अभी काफी अच्छा है, वे मुश्किल से साठ साल के हैं और वे भूटान में देवता की तरह पूजे जाते हैं लेकिन दढ़निश्चयी नरेश ने किसी की नहीं सुनी और भूटान में लोकतंत्र् का झंडा फहरा दिया| भूटान में नेपाल या ईरान की तरह कभी नरेश-विरोधी आंदोलन नहीं छिड़ा| वहां कभी भी राजनैतिक दलों ने या नेताओं ने लोकतंत्र् की मांग नहीं की| लोकतंत्र् की धुन स्वयं नरेश ने ही छेड़ी| भूटान में लोकतंत्र् लाने का शुभारंभ नरेश ने स्वयं से ही किया|
पूर्व-नरेश ने अपना पद तो छोड़ा लेकिन निश्चय नहीं छोड़ा| उन्होंने भूटान के गॉंव-गॉंव की यात्र की| लोगों को समझाया कि राजतंत्र् के मुकाबले लोकतंत्र् बेहतर क्यों है| अपनी अपार लोकपि्रयता के बावजूद उन्होंने लोगों को बताया कि स्वशासन के बिना सुशासन नहीं हो सकता| नेपथ्य में रहते हुए उन्होंने चुनाव-प्रकि्रया का संचालन किया| मतदाताओं को सुशिक्षित करने के लिए मतदाता गाइड बनाई| जगह-जगह पोस्टर लगाए| लाखों पर्चे बॅंटवाए| रेडियो, टीवी और अखबारों के जरिए राजतंत्र् के मुकाबले लोकतंत्र् का महत्व प्रतिपादित किया और लोगों को मतदान के लिए प्रोत्साहित किया| चुनाव लड़ने का अधिकार केवल उन्हें दिया गया, जो स्नातक हैं| भूटान-नरेश ने उसी उत्साह से लोकतंत्र् को आगे बढ़ाया, जिस उत्साह से बि्रटेन के लोकतांत्रिक योद्घाओं ने ‘मेग्ना कार्टा’ बनाया था और फ्रांस के क्रांतिकारियों ने राज्य-क्रांति की थी| हिमालय-क्षेत्र् के अन्य वर्तमान और पूर्व राज्यों-तिब्बत, नेपाल, सिक्किम, जम्मू-कश्मीर आदि से तुलना करें तो लगेगा कि भूटान-नरेश जैसा दूरंदेश, त्यागी और साहसी नरेश कोई दूसरा नहीं हुआ|
भूटान के पूर्व-नरेश असाधारण व्यक्तित्व के धनी हैं| उन्हें कई देशों में इसलिए जाना जाता है कि उनकी चार पत्नियॉं हैं लेकिन लोग प्राय: यह नहीं जानते कि वे सब सगी बहनें हैं| यह ठीक है कि भूटान छोटा-सा देश है और चारों तरफ से घिरा हुआ है| भारत और चीन जैसे विशाल राष्ट्रों के बीच होने के कारण नक्शे पर वह ठीक से दिखाई तक नहीं देता लेकिन इस छोटे देश के नेता का दिमाग बड़े-बड़े देशों के नेताओं से भी बड़ा है| बेनज़ीर भुट्टो, राजीव गांधी, नवाज़ शरीफ, पूर्व नेपाल नरेश वीरेंद्र, हसीना वाजिद, चंदि्रका कुमारतुंग, नजीबुल्लाह आदि जिग्मे सिंग्ये वांगचुक के लगभग समवयस्क रहे हैं| इन सभी नेताओं से मेरा घनिष्ट संपर्क रहा है| इन सब में कोई न कोई विलक्षण गुण मुझे अवश्य दिखाई पड़ा है लेकिन जैसी प्रखर बौद्घिकता, जिज्ञासा और जानकारी मैंने भूटान-नरेश में देखी, वैसी अन्य किसी में नहीं देखी| इसी का परिणाम है कि दुनिया के सबसे ज्यादा 10 सुखी देशों में भूटान की गिनती होती है| भूटान के लगभग हर बच्चे को शिक्षा और चिकित्सा उपलब्ध है| भूटान की प्रति व्यक्ति आय भारत की प्रति व्यक्ति आय की दुगुनी है| भूटान में अपराध नहीं के बराबर होते हैं| भूटान प्रवास के दौरान मैंने गृहमंत्र्ी से कहा कि कृपया मुझे अपनी जेल दिखाइए तो उन्होंने कहा कि हमारे यहॉं जेल है ही नहीं| कुछ थाने वगैरह जरूर हैं| भूटान-नरेश जितने दृष्टिसंपन्न शासक रहे हैं, उतने कठोर भी रहे हैं| भूटान में रहनेवाले नेपाली मूल के लोगों के साथ उन्होंने काफी सख्ती बरती है| लगभग एक लाख लोग भागकर नेपाल या भारतीय सीमांतों में गुजारा कर रहे हैं| उन्होंने चुनावों को ढोंग बताया है| जाहिर है कि इन चुनावों से उन्हें कोई फायदा नहीं होनेवाला है| लोकतांत्रिक सरकार का रवैया भी उनके प्रति कठोर ही रहेगा लेकिन वे भी इस तथ्य से इंकार नहीं कर सकते कि लोकतंत्र् के विश्व-क्षितिज पर भूटान जैसा सूर्योदय पहली बार ही हुआ है|
Leave a Reply