नया इंडिया, 2 फरवरी 2014 : मध्यप्रदेश के लोकायुक्त को बधाई कि उन्होंने भ्रष्टाचार के अनेक अपराधियों को रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया है। इन अपराधियों में राजस्व विभाग के छोटे-मोटे अफसर और स्थानीय सरकारों के अधिकारी तो हैं ही, कुछ उप-कुलपति और शिक्षा संस्थानों के निदेशक भी हैं, जिन पर केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने छापे डाले हैं। इन अधिकारियों के घर से करोड़ों रु. की चल-अचल संपत्ति बरामद हुई है। जिन लोगों का वेतन मुश्किल से 50-60 हजार रू महिना है, उनके यहां 100-100 करोड़ की सपंत्ति होना किस बात का सूचक है?क्या इसका नहीं कि इन अफसरों ने खुले-आम लूट-खसोट की है? यदि उन्होंने यह पैसा अपनी मेहनत और बुद्धि से कमाया होता तो उन्हें नौकरी करने की क्या जरूरत थी? अरबपति होते हुए भी अपने बड़े अफसरों और मंत्रियों की झिड़कियां बर्दाश्त करने की क्या जरूरत थी? लेकिन फिर भी नौकरी में बने रहने का रहस्य यह है कि जिस कुर्सी पर वह अफसर बैठा है, वही वह दुधारू गाय है, जिसके चलते वह करोड़ो-अरबों दुह रहा है। वह उससे इस्तीफा क्यो दें?
म.प्र. के इतने अफसर आजकल रंगे हाथ पकड़े जा रहे है कि उससे दो निष्कर्ष निकलते है। एक तो यह कि वहां का लोकायुक्त बहुत सतर्क है और चौहान सरकार भ्रष्टाचारियों को पकड़ने पर कमर कसे हुए है और दूसरा यह कि म.प्र. में आज से नहीं, पिछले कई वर्षो से भ्रष्टाचार की परंपरा अक्षुष्ण चली आ रही है। इसलिए जिस किसी बिल में हाथ डालो, वहां अजगर बैठे मिल रहे हैं। छोटे-मोटे अफसरों ने यह करोड़ो-अरबों की संपत्ति कोई दो-चार साल में तो नहीं बनाई है। इन अफसरों के यहां सिर्फ छापे डालना काफी नहीं है। इनकी सारी चल-अचल संपत्ति तुरंत जब्त की जानी चाहिए, उन्हें नौकरी से बर्खास्त किया जाना चाहिए और इतनी कड़ी सजा दी जानी चाहिए कि भ्रष्टाचार का इरादा रखने वालों की हड्डियों में कंपकपी दौड़ जाए। भ्रष्टाचार से अर्जित उस संपत्ति के सभी भागीदारों को भी वही सजा मिलनी चाहिए, जो उस अफसर को दी जाए। मंत्री और अफसर जो भ्रष्टाचार करते हैं, उसकी जानकारी उनके परिवारजनों को होती है लेकिन वे उन्हें कभी हतोत्साहित नहीं करते। वे भ्रष्ट साधनों का सीना फुलाकर इस्तेमाल करते है। तो अब उन्हें भी उतनी ही कठोर सजा क्यों न दी जाए?
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