R Sahara, 22 June 2003 : जिन्दा जादू क्या होता है, यह मैंने इस बार अमेरिका में अपनी ऑंख से देखा| संदीप पटेल नामक नौजवान को देखने हम पिट्सबर्ग के एक अस्पताल में गए| संदीप का पूरा घड़ लकवाग्रस्त है| केवल सिर काम करता है| उसे पूर्ण चेतना है लेकिन वह अपने किसी भी अंग को हिला-डुला नहीं सकता| संदीप इंदौर का निवासी है और तीन साल पहले वह पिट्रसबर्ग आया था| वह अपनी किराने की दुकान पर बैठा था और अचानक उस पर बन्दूक से हमला हो गया| बंदूकधारी सिरफिरे ने पहले ही कई लोगों की हत्या कर दी थी लेकिन संदीप को लगी गोली ने उसकी रीढ़ की हड्री को तोड़ दिया| संदीप बच गया लेकिन उसकी हालत मरे हुओं से भी बदतर हो गई| ये सब बात उसके पिता ने हमें अपनी दुकान पर बताई और उनकी ऑंखें भर आईं| मेरे मामा डॉ रामकृष्ण अग्रवाल ने अस्पताल का पता पूछा और दूसरे दिन हम वहॉं पहुंच गए|
लगभग घंटे भर के रास्ते में हम यही बात करते रहे कि परदेस में लाकर भगवान ने इस लड़के को किस बुरी तरह पटका है| बूढ़े मॉं-बाप दुकान चलाऍंगे या इस लड़के की सेवा करेंगे| उसकी अपनी जिन्दगी तो बर्बाद ही हो गई| पता नहीं कितनी गंदगी और परेशानी में वह रहता होगा| यह सोचते हुए जैसे ही हम संदीप के कमरे में पहुंचे तो उसे देखकर सहम गए| वह अकेला था| वह एक बड़ी यांत्र्िाक कुर्सी पर बैठा हुआ था| उसने मुस्कराकर हमारा स्वागत किया| बातचीत हुई तो तनाव कम हुआ| एकाध मिनिट में हमने क्या देखा कि उसकी वह भीमकाय कुर्सी आगे-पीछे होने लगी| यह कैसे हुआ? वह तो उंगली भी नहीं हिला सकता| हम चक्कर में पड़ गए| न तो उसने कोई बटन दबाया, न वह इधर-उधर झुका और न उसने कोई जोर लगाया| हमें उससे पूछना पड़ा कि यह कुर्सी कैसे चल रही है? संदीप ने अपने मुंह के सामने लगे एक मुड़े हुए तार-जैसे यंत्र की तरफ इशारा किया और कहा देखिए ! उस तार पर उसने जैसे ही फूंक मारी, कुर्सी आगे खिसकने लगी और जब दूसरी फूंक मारी तो पीछे खिसकने लगी| पीछे खिसकते वक्त कुर्सी किसी चीज़ से टकरा न जाए, इसलिए एक दर्पण भी लगा हुआ है| संदीप गर्दन घुमाकर पीछे नहीं देख सकता| इसलिए यह दर्पण ही ऑंख का काम करता है|
फूंक से सिर्फ-संचालन ही नहीं होता है, टेलिफोन भी चलता है| कुर्सी पर बैठे-बैठे फॅूक मारकर वह किसी भी नंबर पर फोन कर सकता है| फोन-सेट पर लाउड स्पीकर लगा हुआ है ताकि हिले-डुले बिना वह बात कर सके| इसी प्रकार मुंह के सामने लगे उस तार पर फूंक मारने से टी वी चालू हो जाता है| संदीप ने टी वी चालू करके दिखाया| चेनल भी बदले| एक कोने की मेज़ पर म्यूजि़क सिस्टम भी पड़ा हुआ था| हमने पूछा, इसे कैसे चलाते हो? संदीप ने अपना सिर दॉंयी तरफ झुकाते हुए बोला ‘प्ले’| उसका यह आदेश हथेली के आकार के एक यंत्र की तरफ मुखतिब था| यंत्र में तुरंत प्रतिध्वनि हुई | यंत्र ने आदेश दोहराया लेकिन कुछ नहीं हुआ, क्योंकि उच्चारण शुद्द नहीं था| संदीप ने कहा, यह यंत्र कभी-कभी गड़बड़ करता है| मैंने कहा, आप ‘प्ले’ शब्द ज़रा साफ बोलिए| जैसे ही संदीप ने साफ़-साफ़ बोला, उस ‘रिमोट कंट्रोल’ यंत्र ने उस आदेश को दोहराया| म्युजि़क सिस्टम चलने लगा| केवल फूंूक और ध्वनि से कुर्सी, फोन, टी.वी. और म्यूजिक सिस्टम चल पड़ते हैं| याने समस्त कर्मेन्दि्रयों के नििष्कि्रय होने के बावजूद केवल ज्ञानंदि्रय से संदीप का संसार चल रहा है| यह जिन्दा जादू नहीं तो क्या है?
इतना ही नहीं, कमरे में पहुंची संदीप की मॉं ने बताया कि संदीप रोज़ कम्प्यूटर भी चलाता है| संदीप ने बताया कि वह कम्प्यूटर पर रोज़ इंदौर और दिल्ली के अखबार पढ़ता है| मैंने पूछा, यह कैसे होता है? संदीप की मॉं ने तुरंत एक शीशे की डंडी संदीप के मुंह से लगा दी| संदीप ने उसे अपने होठों से दबाया और कम्प्यूटर चालू हो गया| संदीप ने बताया कि वह अपने दोस्तों को रोज़ ई-मेल भी भेजता है| टाइप किए बिना ई-मेल कैसे जा सकता है? संदीप के हाथ और उंगली तो हिल नहीं सकते| संदीप ने बताया कि उसी शीशे की डंडी को वह अपने मुंह से चलाता है और की-बोर्ड अपने आप टाइप करने लगता है| गज़ब है, विज्ञान का चमत्कार! मनुष्य की कैसी अद्रभूत सेवा है, यह!
हम तो आए थे, संदीप के साथ सहानुभूति व्यक्त करने लेकिन डूब गए, इन चमत्कारी कारनामों को देखने में| घंटे भर की इस जिज्ञासा-शांति के बाद जब हमने संदीप से पूछा कि आपको यहॉं कैसा लगता है तो उसने बताया कि वह आम लोगों की तरह प्रतिदिन भोजन करता है, पकवानों का स्वाद लेता है और मल-मूत्र विसर्जन की व्यवस्था भी सुचारू है| अस्पतालवाले उसे उसी कुर्सी में बिठाकर कभी सिनेमा दिखाने और कभी फुटबाल मैच दिखाने भी ले जाते हैं| जिस पलंग पर वह सोता है, वह भी तिलिस्म की तरह है| वह पलंग उसे अपने आप करवट दिलाता रहता है| यदि वह करवट न ले तो उसकी पीठ और सारे पिछले हिस्से में घाव हो सकते हैं| फूंक मारते ही नर्स भी आ जाती है| उसे प्रतिदिन व्यायाम करवाया जाता है और आवश्यक ओषधियॉं भी दी जाती हैं| तात्पर्य यह कि संदीप की जीवन-चर्या ऐसी बना दी गई है कि जैसे किसी स्वस्थ आदमी की होती है| संदीप का हौंसला बढ़ाने के लिए मैंने कह दिया कि, ‘संदीप क्या बादशाहों के भी ऐसे ठाठ होते हैं, जैसे तुम्हारे हैं?’ संदीप खिलखिलाकर हॅंस पड़ा|
जहिर है कि ऐसा इन्तजाम भारत में असंभव है| लाखों रूपए प्रतिमाह का खर्च भी संदीप के परिवार को नहीं उठाना पड़ता और आशा है कि अदालत भी संदीप को करोड़ों का हर्जाना दिलवाएगी|
विज्ञान का कैसा चमत्कार है कि उसने मरीज़ को बादशाह बना दिया है| दूसरी ओर ऐसे यंत्र भी यहॉं दिखाई पड़ रहे हैं कि जिनकी दहशत बादशाह को मरीज़ बना दे| अमेरिका में ऐसे चश्मे बिक रहे हैं, जिन्हें पहनकर आप दुनिया तो देख ही सकते हैं, लोगों के फोटू भी उतार सकते हैं| चश्मा अपने आप फोटू उतार लेता है| इसी तरह से दो-दो तीन-तीन तोले वज़न के केमरे भी चल पड़े हैं,जो आपकी अंगूठी, लॉकेट, घड़ी, फाउन्टेन पेन, ईयरिंग आदि में फिट हो जाते हैं| उन्हें किसी के बाथरूम, बेडरूम,दफ्तर या रसोई में भी फिट किया जा सकता है| इस तरह से फिट किया जा सकता है कि उसका होना मालूम ही न पड़े| मोबाइल फोनों में भी डिजिटल केमरे की सुविधा आम होती जा रही है| अमेरिका की लगभग सभी बड़ी दुकानों में वीडियो केमरे लगे होते हैं| दुकानदार एक जगह बैठा-बैठा हर ग्राहक पर नज़र रख सकता है| नौकरानियॉं बच्चों के साथ कैसा बर्ताव करती हैं, यह जानने के लिए लोग अपने घर में वीडियो केमरा चलाकर उस पर अपने दफ्तर से नज़र रखते हैं| टेप-रेकार्डरों के क्या कहने? वे तो केमरों से भी अधिक सूक्ष्म और शक्तिशाली हैं| कागज़ से भी पतली माइक्रोचिप यदि आप किसी की कार या मेज या फोन या कपड़ों पर चिपका दें तो उस आदमी की आवाज़ या फुसफुसाहट भी आप मीलों दूर बैठकर सुन सकते हैं| पहले कहा जाता था कि राज्य नागरिकों की जासूसी करता है, इसलिए बड़े भाई से सावधान! अब तो कोई भी नागरिक राज्य की जासूसी कर सकता है याने अब छोटे भाई से सावधान!
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