नया इंडिया, 02 जून 2014 : राजस्थान के कांग्रेसी विधायक और केरल के एक कांग्रेसी नेता ने राहुल गांधी को जोकरों का कप्तान या प्रबंध निदेशक कहा है, यह जरा ज्यादती है। किसी कांग्रेसी के मुंह से अपने नेता के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग तो कल्पना के परे है। हिंदी में इसी बात को कहा जाता तो शायद यह इतनी बुरी नहीं लगती। हिंदी में मसखरों का मुखिया या विदूषक-सम्राट कह दिया जाता। संस्कृत नाटकों में विदूषक नामक पात्र पर्याप्त आदरणीय होता है। वह सम्राट का मनोरंजन करता है और उसे रानियों के अंतःपुर में जाने की अनुमति होती है लेकिन आप जब किसी को जोकर कहते हैं तो सर्कस की याद आ जाती है। सर्कस या तो ताश की गड्डी में जो जोकर का स्थान होता है, वह आप यदि पार्टी के नेता को दें तो आप पर अनुशासन की कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए? केरल के नेता टीएस मुस्तफा निलंबित हो चुके हैं। अब भंवरलाल शर्मा की बारी है। वे भी निलंबित हो गए है।
इन दोनों नेताओं की गलती यह है कि ये लोग अपने दिल की बात अपनी जुबान पर ले आए। उन्हें दिल की बात दिल में रखने की कला सीखना चाहिए। कांग्रेसी लोग इस कला के सबसे बड़े पंडित हैं। इन दोनों मुंहजोर नेताओं को क्या पता कि सभी कांग्रेसियों के दिल में वही बात है, जो उनके दिल में है लेकिन उस बात को मुंह पर लाना तो दूर, वे अपनी दूसरी कला का परिचय देते हैं। वह है चाटुकारिता। वे राहुल और सोनिया का नाम लेने की बजाय खुद की छाती कूटते हैं, बाल नोंचते हैं और खुद को कोसते हैं।
वे कांग्रेस में जान फूंकने का कोई मंत्र ढूंढने की बजाय वे जो कर रहे हैं, उस पर वे एक उर्दू शायर के कथन को दोहरा रहे हैं-‘जिसके चलते हुए बीमार, उसी अत्तार के लौंडे से दवा लेते हैं।‘ कांग्रेसी लोग अपना इलाज खुद करना भूल गए। जिन दरबारियों ने राहुल को डुबोया, वे ही अब दुबारा चाबी भर रहे है। वरना क्या वजह थी, राहुल के बदायूं जाने की।
जब निर्भया पर दिल्ली में बलात्कार हुआ तो आपका पता ही नहीं चला कि कहां छुपे बैठे हैं और अब जबकि बलात्कारी पकड़े गए हैं और पुलिस वाले निकाल दिए गए हैं तो आपका बदायूं जाना मसखरी नहीं तो क्या है? लेकिन इस मसखरी के लिए भी राहुल को कोई जिम्मेदार कैसे ठहराए? जिम्मेदार तो वे हैं, जिन्होंने गुड्डे में चाबी भरी है। चाबी भरने वालों को क्या पता नहीं कि बदायूं जाने पर निर्भया की धूल जमकर उड़ेगी और वह उनके गुड्डे को पूरी तरह ढक लेगी।
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