नया इंडिया, 27 मार्च 2014 : कांग्रेस ने अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया। उसमें बड़े-बड़े सब्ज-बाग दिखाए गए हैं। लोगों को जन चिकित्सा का अधिकार मिलेगा। शिक्षा और भोजन का अधिकार तो वह पहले ही दे चुकी है। गैर-सरकारी कंपनियों में जातीय आरक्षण दिलवाएगी। 14 करोड़ लोगों को वह गरीबी रेखा के ऊपर ला चुकी है। अब आप उसे सत्ता में बिठा दें तो वह अर्थ- व्यवस्था में अपूर्व उठान ले आएगी। इसी प्रकार के अनगिनत वायदे किए गए हैं, इस घोषणा पत्र में।
इस घोषणा-पत्र को जारी करते समय तीनों ‘नेताओं’ की सूरत देखने लायक थी। मनमोहन सिंह, राहुल गांधी और सोनिया गांधी की! ये नेता उस समय ‘उप नेता’ लग रहे थे। ऐसा लग रहा था कि वे घोषणा-पत्र नहीं, अपना मर्सिया पढ़ रहे थे। उनका चेहरा उनके सच्चे रूप को बयान कर रहा था और उनका बयान ऐसी ध्वनि दे रहा था कि सिर्फ मक्खी पर मक्खी बिठाई जा रही है। यह बात उन्हें भी पता है और करोड़ों दर्शकों को भी पता है कि कांग्रेस अब हवा में लठ्ट चला रही है। उसे लौटकर तो आना नहीं है।
पत्रकारों के सवालों के जवाब देने में तीनों नेताओ की जुबान लड़खड़ा रही थी। अरण्यरोदन चल रहा था। कहीं भी ललकार-हुंकार सुनाई नहीं पड़ रही थी। उनकी इस अदा पर भला कौन फिदा न हो जाएगा? वे लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं है। वे दावा करते हैं कि उन्होंने अपने पिछले घोषणा-पत्र के 90 प्रतिशत वायदे पूरे कर दिए हैं। यदि ऐसा है तो उन्हें संसद को 10 प्रतिशत सीटें भी जीतने का भरोसा क्यों नहीं है? क्या वजह है कि बड़े-बड़े दरबारी मैदान छोड़कर भाग रहे हैं? प्रधानमंत्री जी अभी भी मानते हैं कि छलांग लगाती हुई उनकी अर्थव्यव्था में भ्रष्टाचार नहीं टाला जा सकता। लेकिन उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार इतना जमकर हुआ है कि जितना पिछले 200 साल में नहीं हुआ है। क्या हमारी अर्थव्यस्था भी इतनी आगे बढ़ी है? मंहगाई, बेरोजगारी, और गरीबी दूर करने के नाम पर मनगढ़ंत आंकड़े परोस दिए गए। इसका अर्थ यह नहीं कि कांग्रेस सरकार ने देश के लिए कुछ किया ही नहीं। कुछ किया तो है, वह काफी अच्छा भी है लेकिन सब का सब दब गया है – भ्रष्टाचार की चट्टान के नीचे।
भ्रष्टाचार के सवाल पर मौन धारण करने के लिए प्रसिद्ध हुए कांग्रेस के महात्मा गांधी जब जनता को यह उपदेश देते हैं कि हमने यों गरीबी हटाई, हमने यों जनता को अधिकार दिए तो लोग हंसते हैं कि यह कल का लडका कितनी लंतरानिया मार रहा है। जिसे राजनीति का क,ख,ग भी नहीं पता है और जो न हिंदी ठीक से बोल सकता है और न ही अंग्रेजी, वह आज सारे दरबारियों पर भारी पड़ रहा है। उसे पत्रकारों के साधारण सवालों के जवाब देना भी नहीं आता। उसे बेचारे कांग्रेसी बर्दाश्त न करें तो क्या करें? उनकी मजबूरी है लेकिन भारत की जनता की तो कोई मजबूरी नहीं है। भारत की जनता इंदिरा गांधी जैसी परमप्रतापी और अटल जी जैसै सर्वप्रिय प्रधानमंत्री को घर भेज सकती है तो वह राहुल जैसे अ- नेता को कैसे स्वीकार कर सकती है? वह अपने घोषणा-पत्र में यदि स्वर्ग भी उतार लाए तो जनता को जन्नत की हकीकत पहले से पता है।
Leave a Reply