भास्कर, 31 अक्टूबर 2008 : मालदीव में हुआ सत्ता-परिवर्तन अपने आप में असाधरण घटना है| यों तो मालदीव दक्षिण एशिया का सबसे छोटा देश है| उसकी आबादी सिर्फ तीन लाख है, दिल्ली के एक मोहल्ले के बराबर ! वह बसा हुआ भी एक कोने में है| श्रीलंका से भी नीचे| समुद्र के बीचोबीच | दक्षिण एशिया का यह अकेला ऐसा देश है, जिसकी सीमा भारत को नहीं छूती है| टापुओं के इस छोटे-से देश में सत्ता परिवर्तन इतना महत्वपूर्ण क्यों है कि उस पर ध्यान दिया जाए ?
इसके कई कारण हैं| पहला तो यही कि नेपाल और पाकिस्तान की तरह मालदीव में भी चुनाव हुए और सत्ता-परिवर्तन हो गया लेकिन उनकी तरह मालदीव गहरी हिसा और अस्थिरता के दौर से नहीं गुजरा | पिछले माह तक लग रहा था कि राष्ट्रपति मौमून अब्दुल ग़यूम की पकड़ इतनी मजबूत है कि वे अपने 30 साल पुराने शासन को अभी कम से कम एक दशक तक और बनाए रखेंगे| भारत सरकार के साथ गयूम के संबंध इतने घनिष्ट रहे हैं कि उन्हें हमारे गणतंत्र् दिवस का एक बार मुख्य अतिथि भी बनाया गया था| जितनी शांति से इतने तगड़े शासक को मालदीव की जनता ने उलट दिया, उसे ‘लोकतांत्रिक तख्ता-पलट’ नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे ?
दूसरा, चुनाव के दौरान और चुनाव पूरे होने पर मालदीव के अन्य दलों और नेताओं ने जिस परिपक्वता का परिचय दिया है, वह दक्षिण एशिया के कई देशों के लिए अनुकरणीय है| राष्ट्रपति का चुनाव जीतनेवाले मुहम्मद ‘अन्नी’ नाशीद ने कहा है कि वे पराजित राष्ट्रपति के विरूद्घ कोई प्रतिशोधात्मक कार्रवाई नहीं करेंगे, हालांकि अली को गयूम ने लगभग छह साल तक जेल में डाले रखा और बरसों बरस देश-निकाला दिए रखा| यह कम महत्वपूर्ण नहीं कि गयूम ने अन्नी को बधाई दी है| जैसे 1977 में इंदिरा गांधी के हारने पर उन्होंने बड़ी गरिमा से सत्ता छोड़ दी थी वैसे ही गयूम ने भी छोड़ दी है| मालदीव भारत के चरण-चिन्हों पर चल रहा है|
तीसरा, मालदीव के राजनीतिक दल अगर ‘अन्नी’ के लिए कुर्बानी नहीं करते तो उनका जीतना असंभव था क्योंकि चुनाव वके पहले दौर में गयूम को 40 प्रतिशत वोट मिले थे और अभी अन्नी को सिर्फ 25 प्रतिशत वोट ! दूसरे दौर में अन्नी की पार्टी को 54.25 प्रतिशत और गयूम की पार्टी को 45.75 वोट मिले| 8-9 प्रतिशत की जीत और वोटों की संख्या का दुगुना होना अपने आप में अजूबा है| यह कैसे हुआ ? यह अदालत पार्टी के समर्थन के बिना संभव ही नहीं था| यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि मालदीव के दलों ने परिस्थिति के अनुसार अपना अघोषित गठबंधन बना लिया| दूसरे शब्दों में अन्नी अब गठबंधन राष्ट्रपति होंगे| नेपाल और पाकिस्तान बल्कि भारत में भी गठबंधन राजनीति को कितने कठिन समय से गुजरना पड़ रहा है| इन देशों के मुकाबले मालदीव बेहतर सिद्घ हो रहा है|
चौथा, लेकिन चिंता की बात यह है कि जिस अदालत पार्टी ने अन्नी को समर्थन दिया है, वह घोर दक्षिणपंथी और कठमुल्ला पार्टी है| उसने गयूम को काफिर घोषित कर दिया था और उन पर मुकदमा चला दिया था ताकि वे चुनाव न लड़ सकें| उन्होंने गयूम को ईसाई मिश्नरियों का संरक्षक और इस्लाम का दुश्मन कहकर संबोधित किया था| गयूम ने बुर्के का विरोध और गाने-बजाने का समर्थन किया तो अदालत पार्टी ने उनके विरोध में कई प्रदर्शन भी किए थे| माना जाता है कि मालदीव के कुछ आतंकवादी तत्वों को भी इस पार्टी का समर्थन प्राप्त है| अब पता नहीं अन्नी क्या करेंगे ? यो अन्नी विदेशों में पढ़े हैं और वहां लंबे समय तक रहे हैं| वे मुल्लों की तरह कूप-मंडूक नहीं हैं| फिर भी जिनके कंधों पर बैठकर वे राष्ट्रपति भवन तक पहुंचे हैं, क्या उनके प्रति वे बिल्कुल उदासीन हो जाएंगे ?
यदि अली कठमुल्लावाद में फंस गए तो मालदीव की दुर्गति हुए बिना नहीं रहेगी| मालदीव की 70 प्रतिशत अर्थ-व्यवस्था पर्यटन व्यवसाय पर टिकी हुई है| यदि संपूर्ण देश पर इस्लामी प्रतिबंध थोप दिए गए तो गुलाब की तरह खिला हुआ मालदीव बंद गोभी बन जाएगा| कोई टूरिस्ट वहां क्यों जाएगा ? यों भी मालदीव के 98 प्रतिशत लोग साक्षर हैं| वे मध्ययुगीन दड़बे में बंद क्यों होना चाहेंगे ? अन्नी को यदि सफल होना है तो उन्हें गयूम द्वारा की गई इस्लाम की व्याख्या को बहुत हद तक स्वीकार करना होगा| स्वयं गयूम जब 1978 में चुनाव जीतेथे तो उन्होंने इस्लामी कट्टरवाद का झंडा फहराया था| तत्कालीन प्रधानमंत्र्ी को परास्त करने के लिए उन्होंने वहीं पैंतरे अपनाए थे जो अन्नी की मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी और अदालत पार्टी ने अभी आजमाए हैं|
पाँचवा, यों तो मालदीव में सत्ता-परिवर्तन आसानी से हो गया है लेकिन इस छोटे-से देश में दो बड़े खतरे हैं, जिनका सीधा असर भारत पर पड़ सकता है| एक तो तख्ता-पलट का खतरा ! हमें भूलना नहीं चाहिए कि 1988 में गयूम का तख्ता-पलट हो गया था| सिंगापुर स्थित कुछ मालदीवी दादा लोगों ने गयूम को गिरफ्तार कर लिया था| उस दिन हमारे रक्षा-मंत्री कृष्णचंद्र पंत चीन में थे लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री राजीव गांधी से सहमति लेकर माले में बिजली-सी फुर्ती दिखाई| भारतीय फौज ने गुंडो को मार भगाया और गयूम को बचा लिया| इस तरह के संकट अब दुबारा आ सकते हैं| भारत को काफी सतर्क रहना होगा| दूसरा खतरा आतंकवाद का है| पड़ौसी देशों देशों में सकि्रय आतंकवादियों के लिए मालदीव शानदार शरण-स्थल बन सकता है, क्योंकि उसके 200 से ज्यादा द्वीप आरक्षित हैं| ‘खुले समुद्र’ में हथियारों का अंतरराष्ट्रीय बाज़ार भी बड़े मजे से काम करता है| भारत को देखना होगा कि मालदीव की नई सरकार कहीं उन अवैध गतिविधियों की अनदेखी न करने लगे|
छठा, मालदीव की नई सरकार से भारत के संबध अत्यंत सहज हो, यह इसलिए भी जरूरी है कि हिंद महासागर में मालदीव की भौगोलिक स्थिति का सामरिक महत्व असाधारण है| छागोस द्वीप-समूह में अब भी बि्रटिश फौज तैनात है| नया मालदीव कहीं अमेरिका और चीन की रस्साकशी में न फंस जाए| भारत ने जैसे घनिष्ट संबंध गयूम से बना रखे थे, वैसे ही अब अन्नी से बनाकर रखने होंगे| यह सही मौका है, जब प्रधानमंत्री अपना विशेष दूत माले भेजें और संबंधो का नया अध्याय शुरू करें| गयूम हारे जरूर हैं लेकिन वे अब भी मालदीव में काफी समय के लिए ताकतवर बने रहेंगे| अगले साल होनेवाले लोकसभा के चुनाव में उनकी ताकत बढ़ सकती है| भारत को हर कदम फूंक-फूंककर रखना होगा| अली के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है कि जिसे घूमाकर वे मालदीव के लोगों की गरीबी को समाप्त कर दें| मालदीव में मालदार लोगों का छोटा-सा टापू है और उसके चारों तरफ गरीबी का बड़ा-सा समुद्र फैला हुआ है| भारत को यह भी देखना होगा कि मालदीव में आर्थिक विषमता घटे, कट्टरवाद नहीं पनपे और भारत के हिंत हिंद महासागर में सुरक्षित रहें| मालदीव का यह लोकतांत्र्िक तख्ता-पलट भारत मालदीव संबंधों को मजबूत बनाएगा, ऐसी आशा है|
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