नया इंडिया, 23 अक्टूबर 2013 : लगता है कि मालदीव में लोकतांत्रिक शासन की दुबारा स्थापना अब आसानी से नहीं होगी। 7 फरवरी 2012 को मुहम्मद नशीद का जिस तरह से तख्ता-पलट हुआ, वह साजिश अभी भी जारी है। वरना क्या वजह है कि 7 सितंबर 2013 को विधिवत हुए चुनाव को अमान्य कर दिया गया? चुनाव के अंतिम क्षण तक गड़बड़ी की कोई गंभीर शिकायत नहीं थी। अनेक अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने भी चुनाव-प्रक्रिया को निरापद पाया था लेकिन अपदस्थ राष्ट्रपति नशीद को पहले दौर में 45 प्रतिशत याने सबसे ज्यादा वोट मिले, यह बात साजिशकर्ताओं के गले नहीं उतरी। नशीद के विश्वासघाती उप-राष्ट्रपति मुहम्मद वहीद, जो अब राष्ट्रपति बन गए हैं, इस चुनाव में बुरी तरह पराजित हुए। उन्हें सिर्फ पांच प्रतिशत वोट मिले।
यदि पहले दौर का चुनाव अवैध घोषित नहीं होता तो अब तक दूसरे दौर का चुनाव भी हो जाता और नशीद निश्चित रुप से 50 प्रतिशत से अधिक वोट पाते। उन्हें फिर राष्ट्रपति बनने से कैसा रोका जाता? लेकिन दूसरे दौर को ही पहला दौर बनवा दिया गया। जब पहले दौर के चुनाव की दुबारा घोषणा हुई तो 19 अक्तूबर को मालदीव की पुलिस ने कमाल कर दिया। उसने चुनाव आयोग के मुख्यालय पर कब्जा कर लिया। मतपत्र बंटने ही नहीं दिए। चुनाव धरा रहा गया। राष्ट्रपति वहीद ने अपनी करारी हार का बदला ले लिया। लेकिन यह सब कैसे हो रहा है? कहते हैं कि यह सब नाटक अब्दुल गय्यूम के इशारे पर हो रहा है। गय्यूम 30 साल तक मालदीव के एकछत्र शासक रहे हैं। उनका तख्ता-पलट 1988 में होने ही वाला था कि भारत ने उन्हें बचा लिया लेकिन उन्हें नशीद फूटी आंखों नहीं सुहाते। नशीद भारतप्रेमी हैं और लोकप्रिय जन-नेता हैं। गय्यूम का छोटा भाई अब्दुल्ला यामीन गय्यूम भी राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहा है। गय्यूम चाहते हैं कि उनका भाई येन-केन-प्रकारेण राष्ट्रपति बन जाए। वे वहीद के जरिए कभी फौज, कभी पुलिस और कभी जजों का इस्तेमाल करके लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पटरी से उतारते रहते हैं। इन सब निकायों के शीर्ष पदों पर उनके बिठाए हुए लोग ही अभी तक जमे हुए हैं। वे स्वामिभक्ति का परिचय देते रहते हैं। यह स्थिति बहुत चिंताजनक है। यदि 9 नवंबर को होनेवाला प्रथम दौर का चुनाव फिर टल गया तो कोई आश्चर्य नहीं कि मालदीव के समुद्रतट का पानी लाल होने लगे। मालदीव जैसा शांत और सुंदर टापू, जहां इब्न-बतूता जैसे विश्व-यात्री सदियों पहले आनंदित हुए हैं, अब अशांति और अस्थिरता का द्वीप बन सकता है और आतंकवाद का अड्डा भी! अफसोस है कि 15-16 अक्तूबर को भारत की विदेश सचिव सुजाता सिंह की यात्रा के बावजूद मालदीव के दादाओं ने फिर इतना बड़ा दुस्साहस कर दिखाया। अब सारा अंतरराष्ट्रीय समाज चिंतित हो रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि भारत को अब सीधा हस्तक्षेप करना पड़े? वहीद को हटाकर किसी निष्पक्ष व्यक्ति को तदर्थ राष्ट्रपति घोषित करना पड़े? क्या हमारी दब्बू सरकार किसी सख्त कदम की बात सोच सकती है?
Leave a Reply