नया इंडिया, 26 दिसंबर 2014 : अटलजी को भारत—रत्न दिया गया। किसी ने भी उसका विरोध नहीं किया, क्योंकि जो विरोध कर सकते थे, उन्हें पता है कि अटलजी के जो लोग पासंग भर भी नहीं थे, उन्हें भी भारत रत्न मिल चुका है। ऐसे लोगों का यहां नाम लेना ठीक नहीं, क्योंकि आखिरकार वे अब भारत रत्न हो चुके हैं। वैसे भी वे सम्मानीय तो हैं ही लेकिन मैं सोचता हूं कि अटलजी को भारत रत्न नहीं मिलता तो क्या वे अन्य भारत रत्नों से छोटे हो जाते? वे अपने आप में इतने बड़े और इतने अच्छे हैं कि भारत रत्न उन तक पहुंचकर खुद बड़ा हो गया है। जिन्हें अभी तक भारत—रत्न नहीं मिला, ऐसे कई महापुरुष हैं, जिनकी बराबरी कई भारत रत्न मिलकर भी नहीं कर सकते।
मदनमोहन मालवीय को भारत रत्न मिलना कुछ लोगों को पसंद नहीं आया। उनका कहना है कि मालवीयजी हिंदू सभा के अध्यक्ष रहे,उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय बनाया, वे पक्के हिंदू भी थे—इसीलिए संघियों के दबाव में मोदी सरकार ने उन्हें भारत रत्न बना दिया। इस तर्क के तथ्य तो ठीक हैं लेकिन निष्कर्ष नहीं। मालवीयजी भी अब तक के सभी भारत रत्नों में से किसी से कम नहीं हैं लेकिन एक प्रश्न यह भी है कि क्या किसी व्यक्ति को मरणोपरांत भारत रत्न दिया जाना चाहिए? क्यों नहीं दिया जाना चाहिए? दर्जनों को दिया गया है। इतिहास की भूलों को सुधारने का यही तरीका है। वि.दा. सावरकर, डॉ. राममनोहर लोहिया, आचार्य विनोबा भावे, पांडुरंगशास्त्री आठवले, आचार्य रजनीश, पीवी नरसिंहराव जैसे कई हमारे समकालीन विलक्षण व्यक्तिव हुए हैं, जिन्होंने अपने—अपने क्षेत्र में अप्रतिम प्रतिभा और राष्ट्र—सेवा का परिचय दिया है। इसका अर्थ यह नहीं कि आप महर्षि दयानंद,महात्मा गांधी और विवेकानंद को भी इसी 46 व्यक्तियों की कतार में ला बिठाएं। हमारे इतिहास, वर्तमान और भविष्य में भी कुछ लोग तो ऐसे जरुर होने चाहिए, जो इन पुरस्कारों और सम्मानों से भी ऊपर हों। मालवीयजी को भारत रत्न मिल गया और बाल गंगाधर तिलक,फिरोजशाह मेहता, दादाभाई नौरोजी, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद आदि को नहीं मिला तो क्या वे छोटे हो गए? जो लोग पुरस्कार मिलने से बड़े बनते हैं, वे वास्तव में छोटे ही होते हैं। वे अपनी मजाक भी उड़वाते हैं और उस पुरस्कार की भी! अटलजी और मालवीयजी से तो’भारत रत्न’ स्वयं सम्मानित हुआ है।
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