नया इंडिया, 17 अगस्त 2013 : मिस्र की फौज पाकिस्तान की फौज की तरह नहीं है कि अगर वह एक बार सत्ता पर कब्जा कर ले तो फिर उसे छोड़े ही नहीं| हुस्नी मुबारक की लंबी तानाशाही के बाद फौज ने सत्ता संभाल ली थी लेकिन फिर उसने बाकायदा चुनाव करवाए और इखवानुल मुसलमीन को सत्ता सौंप दी लेकिन इखवान के नेता मुहम्मद मुर्सी ने किससे झगड़ा नहीं किया| संसद, अदालत, मीडिया और आम जनता को भी उन्होंने अपना दुश्मन बना लिया| डेढ़ माह पहले उनके खिलाफ इतने जबर्दस्त प्रदर्शन हुए कि उनकी कुर्सी हिल गई| पहले तो फौज ने काफी धैर्य और संयम से काम लिया लेकिन जब पानी सिर के ऊपर से निकलने लगा तो उसे हस्तक्षेप करना पड़ा| मुर्सी नज़रबंद हैं| और सेनापति जनरल सीसी राष्ट्रपति के नाते शासन चला रहे हैं|
सीसी की सरकार के प्रति दुनिया के ज्यादातर देशों का रवैया ढुलमुल था याने वे मानते थे कि मिस्री फौज को मजबूरी में मैदान में कूदना पढ़ा है और कुछ ही दिनों में मामला ठीक-ठाक हो जाएगा| उन्होंने मिस्र के प्रगतिशील तत्वों, अल्पसंख्यकों, उदारवादियों और नरमपंथियों को साथ लेकर एक साफ-सुथरी छविवाली सरकार बना ली थी लेकिन किसी को भी अंदाज़ नहीं था कि मुर्सी-समर्थकों का जाल इतना लंबा-चौड़ा फैला हुआ है कि मिस्र के लगभग सभी बड़े शहरों का काम-काज पिछले डेढ़-दो माह से ठप्प है| इखवान के हजारों कार्यकर्त्ता दिन-रात धरना दिए बैठे हैं, सरकारी दफ्तर और दुकानें बंद है और सड़कों को सांप सूंघ गया है|
फौज से उम्मीद की जा रही थी कि वह प्रदर्शनकारियों से बातचीत करके कोई बीच का रास्ता निकालेगी लेकिन उसने नशे में चूर इंसान की तरह निहत्थे लोगों पर हमला बोल दिया है| पिछले दो दिन में लगभग 600 लोग मारे गए हैं| आम जनता का क्रोध आसमान पर है| जो राष्ट्र फौजी शासन के प्रति तटस्थ थे, वे भी अब इस नर-संहार की भर्त्सना के लिए मजबूर हो गए हैं| ओबामा ने दोनों राष्ट्रों के संयुक्त सैन्य-अभ्यास को रद्रद कर दिया है| क्या मालूम वह डेढ़ बिलियन डॉलर की वार्षिक सहायता भी बंद कर दे| यूरोप और एशिया के बड़े देशों ने संयम की गुहार लगाई है| यूरोपीय राष्ट्रों को चिंता है कि मिस्र के 10 प्रतिशत ईसाई और गिरजे किसी तरह सुरक्षित रह जाएं| पश्चिम एशिया के देश सारे मामले पर बंटे हुए हैं| जरुरी है कि गुट-निरपेक्ष आंदोलन के देश, खासतौर से भारत-जैसे शांति की अपील करें और मिस्र की गृह-युद्घ की नौबत से बचाएं|
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