नया इंडिया, 12 अप्रैल 2014: इन दोनों नेताओं के बयानों को लेकर काफी हंगामा मचा हुआ है। कोई कहता है, ये माफी मांगें। कोई कहता है, इन्हें गिरफ्तार करो। लेकिन दोनों नेता कहते हैं कि हमने गलत क्या कहा है? हम माफी क्यों मांगें?पहले हम यह देखें कि दोनों ने कहा क्या है? अमित शाह ने मुजफ्फरनगर के जाट-समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि आप पर जुल्म करने वालों से बदला लो। उन्हें हराओ। उन्हें वोट मत दो। जो लोग अमित शाह को फंसाना चाहते हैं, उनका कहना है यहां ‘बदला’ का मतलब एक ही है- तुम भी खून बहाओ। इस पर अमित ने दुबारा सफाई दी और कहा कि मैंने ऐसी कोई बात नहीं कही। अमित की इस सफाई को उनके विरोधी स्वीकार क्यों नहीं कर लेते? यदि सचमुच कभी उनकी जुबान फिसल भी गई तो वे अब जो कह रहे हैं उसे ही पक्का क्यों नहीं माना जाए?
चुनाव के माहौल में धृणा का माहौल जितना घटे, उतना ही अच्छा!इस प्रकार मुलायम सिंह यादव पर भी आरोप लगाया जा रहा है कि उन्होंने बलात्कार को मामूली अपराध बताया है और सत्ता में आने पर मृत्युदंड हटाने का वादा किया है। बहुत कम अखबारों ने उनकी मूल बात छापी है। टीवी चैनलों ने भी अर्धसत्य प्रचारित किया है। यदि मुलायम-जैसा नेता बलात्कार को मामूली अपराध बताए तो मैं इसे ही गंभीर अपराध मानूंगा और डॉ राममनोहर लोहिया होते तो वे उनको समाजवादी आंदोलन से ही अलग कर देते लेकिन मुलायमसिंह ने उन नौजवानों को न्याय दिलाने की बात कही है, जिनके साथ पहले तो प्यार-मुहब्बत में शारीरिक संबंध खुशी-खुशी स्थापित किए जाते हैं और बाद में अनबन होने पर उन्हें बलात्कारी बता दिया जाता है। ऐसे दर्जनों मामले इन्हीं दिनों सामने आए हैं। सिर्फ ‘पीडिता’ की शिकायत के आधार पर किसी को मृत्युदंड दे दिया जाए, यह कौन-सा न्याय है? मुलायम ने इसी अन्याय की तरफ इशारा किया है। वैसे मेरी यह पक्की राय है कि बलात्कार की सजा हत्या की सजा से भी ज्यादा कठोर होनी चाहिए, क्योंकि मरने वाला तो एक बार में मर जाता है लेकिन बलात्कृता को तो रोज मरना पड़ता है। जीते-जी मरना पड़ता है।
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