रा. सहारा, 17 मार्च 2008 : इस्लामाबाद में अगले सप्ताह नई संसद शपथ लेगी और संयुक्त सरकार बनेगी, यह अच्छी खबर है लेकिन असली सवाल यह है कि जनरल मुशर्रफ का क्या होगा? सरकार और संसद के साथ उनके संबंध कैसे होंगे? मुशर्रफ रहेंगे या जाऍंगे? संसद उन्हें बर्खास्त करेगी या वे संसद को बर्खास्त करेंगे? गठबंधन-सरकार कितने दिन चलेगी? क्या गठबंधन को भंग करने में मुशर्रफ सफल होंगे? यदि सरकार और मुशर्रफ दोनों कायम रहेंगे तो भावी पाकिस्तान का स्वरूप क्या होगा|? यदि पाकिस्तान अस्थिरता के नए दौर में प्रविष्ट हो गया तो भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा? इस तरह के अनेक सवाल हैं, जो पाकिस्तान के विशेषज्ञों के मन को मथ रहे हैं|
यदि 18 फरवरी को हुए चुनाव किसी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत दिला देते तो पाकिस्तान की अनेक वर्तमान गुत्थियॉं अपने आप सुलझ जातीं| प्रचंड बहुमत से जीती हुई पार्टी को 2/3 बहुमत जुटाने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती| वह निचले सदन में तो 2/3 बहुमत आसानी से जुटा ही लेती, सीनेट में भी भगदड़ मच जाती| आज पूर्व सत्तारूढ़ पार्टी के पास 39 सदस्य हैं और उसके नेताओं का दावा है कि उन्हें और उनके गठबंधन को कुल मिलाकर सबसे ज्यादा वोट मिले हैं, चाहे सीटें कम मिली हैं| उनका मानना है कि अगर बेनज़ीर भुट्टो की हत्या नहीं होती और उन्हें मुशर्रफ का भीगा कंबल ढोना नहीं पड़ता तो वे सीटों की दौड़ में भी सबसे आगे निकल जाते| मुस्लिम लीग (क़ायदे आज़म) के नेता चौधरी शुजात हुसैन, परवेज़ इलाही और मुशाहिद हुसैन का आत्मविश्वास देखने लायक था| क्या यह आश्चर्य नहीं कि सीनेट में अब भी इस मुशर्रफ-समर्थक दल का प्रचंड बहुमत बना हुआ है| कोई भगदड़ दिखाई नहीं पड़ती| यह स्थिरता ही मुशर्रफ की आंतरिक शक्ति है| मुशर्रफ जानते हैं कि उनके विरोधी संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में उनके खिलाफ 2/3 बहुमत नहीं जुटा पाएंगें| इसीलिए उन्हें वे हटा नहीं पाऍंगे| याने नई संसद नख-दंतहीन सिद्घ होगी|
इसी मजबूरी को भॉंपते हुए पीपीपी और मुस्लिम लीग (नवाज़) ने निश्चय किया है कि वे अपनी बंदूक अदालत के कंधे पर रखकर चलाऍंगे| संसद का काम वे अदालत से लेंगे| अगर इफ्तिखार चौधरी समेत साठों जजों की बहाली हो गई तो उच्चतम न्यायालय राष्ट्रपति के विगत चुनाव को अवैध घोषित कर देगा| पूर्व मुख्य न्यायाधीश चौधरी के साथ मुशर्रफ ने जो सलूक किया है, उसके आधार पर सभी यह मानकर चल रहे हैं कि जज लोग जैसे ही बहाल होंगे, मुशर्रफ हलाल हो जाऍंगे लेकिन असली सवाल यह है कि मुशर्रफ क्या जजों को किसी भी क़ीमत पर बहाल होने देंगे? जजों की बर्खास्तगी को उच्चतम न्यायालय पहले ही सही ठहरा चुका है| यदि सरकार ने किसी कार्यकारी आदेश के तहत जजों को बहाल कर दिया तो वर्तमान उच्चतम न्यायालय उस आदेश को असंवैधानिक घोषित कर देगा| ऐसी स्थिति में सरकार और संसद एक तरफ होंगे और राष्ट्रपति मुशर्रफ ओर उच्चतम न्यायालय दूसरी तरफ होंगे| इस मुठभेड़ का हल क्या होगा? यदि फौज ने मुशर्रफ का साथ दिया तो संविधान की रक्षा की आड़ लेकर मुशर्रफ सरकार और संसद को भंग कर सकते हैं| ऐसी स्थिति में पाकिस्तान की जनता के पास उग्र आंदोलन के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाएगा| लोग फौज और अदालत के मुख्यालयों को घेर लेंगे| प्रशासन को ठप कर देंगे| पाकिस्तान में अपूर्व लहर उठेगी| यह लहर पार्टी मतभेदों को डुबो देगी|
यह लहर पाकिस्तान को जोड़ भी सकती है और तोड़ भी सकती है| यह संभव है कि मुशर्रफ के इस दूसरे तख्ता-पलट को उनकी अपनी पार्टी का पंजाबी नेतृत्व अस्वीकार कर दे| यदि ऐसा हुआ तो पाकिस्तान के सभी प्रांत एकजुट होकर फौज का विरोध करेंगे| पिछले चुनाव में हर प्रांत में लगभग प्रांतीय नेतृत्व की विजय हुई है| चुनाव से जन्मी इस प्रांतीयता को आंदोलन की लहर राष्ट्रीयता का बाना पहना देगी| फौज और जनता के बीच सीधी टक्कर होगी| खून की नदियॉं बह सकती हैं| इसका उलट भी हो सकता है| यदि पंजाब का एक तबका, मुहाजिरों की पार्टियॉं, फौज के पंजाबी जनरल और अदालत के निहित स्वार्थ वाले जज मुशर्रफ के साथ हो लिये तो पाकिस्तान के टूटने की नौबत भी आ सकती है| बलूचिस्तान की प्रमुख स्थानीय पार्टियॉं मुशर्रफ से इतनी नाराज़ हैं कि उन्होंने चुनाव का बहिष्कार किया था| वहॉं 3-4 प्रतिशत ही मतदान हुआ| बलूच नेता अकबर बुगती की हत्या ने मुशर्रफ को हर बलूच का दुश्मन बना दिया है| यदि फौज ने बलूचों पर ज्यादा जुल्म ढाया तो वे आज़ादी की मांग कर बैठेंगे| इसी तरह सिंध में मुशर्रफ-विरोधी लहर इतनी तेज है कि बेनज़ीर की अंत्येष्टि के बाद ज़रदारी के घर में ंसिंध की आजादी के नारे लगने लगे थे| यदि आज ज़रदारी मुशर्रफ से हाथ मिलाते हुए पाए जाऍं तो सिंधी जनता उनके खिलाफ बगावत कर देगी| सरहदी सूबे में मुशर्रफ को पाकिस्तान का राष्ट्रपति नहीं, अमेरिका का नौकर माना जाता है| यदि मुशर्रफ-विरोधी आंदोलन को फौज ने डंडे से दबाने की कोशिश की तो सरहदी सूबा पख्तूनिस्तान की अपनी पुरानी मांग दोहराने लगेगा| यह परिदृश्य भयंकर होगा| अमेरिका और फौज, दोनों मिलकर भी मुशर्रफ को नहीं बचा पाऍंगे| लाखों पाकिस्तानी शरणार्थी भारत, अफगानिस्तान और ईरान की तरफ भागेंगे| पूरे दक्षिण एशिया में अस्थिरता का माहौल खड़ा हो जाएगा| क्षेत्र्ीय महाशक्ति होने के कारण भारत की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाएगी|
अगर पाकिस्तान की नई संसद और अदालत मुशर्रफ को हटा नहीं पाई तो क्या होगा? राष्ट्रपति और सरकार की बीच निरंतर मुठभेड़ होती रहेगी| दोनों प्रतिदिन एक-दूसरे की काट करते रहेंगे| प्रशासन ठप हो जाएगा| पाकिस्तान जड़ता के युग में प्रवेश कर जाएगा| यदि मुशर्रफ और सभी दल इस बात के लिए राजी हो जाएं कि वे 1973 के संविधान की वापसी करवा लें, राष्ट्रपति को नाम मात्र् का शासक बनवा लें और बदले में संसद उन्हें हटाने की हठ छोड़ दे तो पाकिस्तानी राजनीति में सहजता और स्थिरता आ सकती है लेकिन क्या मियॉं नवाज़ शरीफ मुशर्रफ को माफ़ कर देंगे? जिस फौजी जनरल ने 1999 में उनका तख्ता-पलट किया था, क्या उसे मियॉं नवाज़ पॉंच साल तक अपनी छाती पर सवार रहने देंगे? यदि मियॉं नवाज़ ने मुशर्रफ के विरूद्घ जन-आंदोलन का बिगुल बजाया तो पूरा पाकिस्तान उनके साथ होगा| यदि मुशर्रफ राष्ट्रपति की कुर्सी से चिपके रहे तो उन्हें रोज़ मरना पड़ेगा| क्या कमांडो मुशर्रफ तिल-तिलकर मरना स्वीकार करेंगे? उनके लिए ससम्मान बिदाई यही है कि वे नई संसद के समवेत होने के दिन ही अपने पद से इस्तीफा दे दें|
(लेखक दो सप्ताह की पाकिस्तान यात्र से अभी लौटे है)
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