R Sahara, 17 Aug 2003 : मुसलमानों की संस्कृत-सेवा और हिन्दी-सेवा को लेकर दिल्ली में पिछले हफ्रते दो महत्वपूर्ण कार्यक्रम हुए ! जवाहरलाल नेहरू वि वि के विशिष्ट संस्कृत अध्ययन केंद्र ने मुसलमानों की संस्कृत-सेवा पर डॉ मोहम्मद इस्माइल खान और मुझे बोलने के लिए कहा और डॉ म्लिक मुहम्मद की पुस्तक हिन्दी की संस्कृति का विमोचन हुआ ! दोनों कार्यक्रमों में ऐसे दुर्लभ तथ्य प्रकाश में आए, जिन्हें आम जनता को भी बताया जाना चाहिए ! संस्कृत के प्राचीन ग्रथों के अरबी और फारसी अनुवाद इस्लाम के पहले से ही शुरू हो गए थे ! छठी सदी में शाह खुसरो नौशे खॉं ने पंचतंत्र का पुरानी फारसी में अनुवाद कर दिया था ! आज भी पश्चिम और मध्य एशिया के मुस्लिम देशों में कलीलग औार दमनक के नाम से पंचतंत्र की कहानियॉं घर-घर में कही-सुनी जाती हैं ! आयुर्वेद, ज्योतिष और समरशास्त्र के अनेक गं्रथ आठवीं और नौवीं सदी में अफगान और अरबी विद्वानों ने फारसी और अरबी भाषा में रूपान्तरित किए ! गणित, विज्ञान और ज्योतिष का भारतीय ज्ञान यूरोपीय लोगों को इन्हीं अरबी ग्रंथों से मिला ! अफगान संतों और विद्वानों ने भारतीय गं्रथों का चीनी, मंगोल और तुर्की भाषा में अनुवाद किया और उन्हें उनके देशों तक पहुंचाया ! रहीम खानेखाना स्वयं संस्कृृत के पंडित थे ! उन्होंने मूल संस्कृत में रचना की और ऐसी पंक्तियॉं भी लिखीं एकस्मिन दिवावसानसमय मैं था गया बाग में ! काचित्तत्र कुरंगनयना गुल तोडती थी खडी!! शाहजहॉं के जमाने में पंडितराज जगन्नाथ ने बादशाह के कृपा-पात्र रहते हुए भामिनी-विलास, गंगा लहरी और रस गंगाधर जैसी कृतियॉं तैयार कीं ! औरंगजेब के भाई दारा शिकोह ने तुर्की में मजमुल बहरीश् लिखा और शायद स्वयं ही समुद्र संगम के नाम से उसका संस्कृत अनुवाद किया ! वे संस्कृत के उत्तम ज्ञाता थे ! उनके हाथ के लिखे कुछ संस्कृत पत्र भी उपलब्ध हुए हैं ! वे बाणभट्ट की शैली में हैं ! शाहजहॉं ने मुनीश्वर और नित्यानंद जैसे धुरंधर विद्वानों को प्रश्रय दिया तो गोलकुंडा के कुतुबशाही राजवंश ने कलीमुल्लाह हुसैन जैसे विद्वानों को आगे बढाया, जिन्होंने श्रृंगार मंजरी जैसे गंरथ लिखे ! लक्ष्मीपति ने अब्दुल्ला चरित्र लिखा तो सिराजुद्रदौला ने अपने नाना अली वर्दी खॉं के श्राद्घ पर संस्कृत में श्लोकबद्घ निमंत्रण तैयार करवाया ! बाणेश्वर विद्यालंकार ने यह कार्य किया ! वे संस्कृत और फारसी, दोनों के पंडित थे ! कश्मीर के बडशाह औार जैनुल आबदीन जैसे बादशाह अपने राजकाज में फारसी और संस्कृत दोनों का इस्तेमाल करते थे ! मुझे ईरान और तुर्की में ऐसे कई विद्वान मिले, जिन्होंने कालिदास, हितोपदेश, गीता, योग वाशिष्ट आदि का अपनी-अपनी भाषाओं में अनुवाद किया है ! तेहरान से कुछ दूरी पर स्थित मजहबी शहर कुम के पुस्तकालय भी देखने लायक हैं ! उनमें भारतीय दर्शन और अध्यात्म के अनेक ग्रंथ रखे हुए हैं ! जिस मदरसे में आयतुल्लाह खुमैनी पढे थे, उसमें अब से 25 साल पहले कुछ हुज्जतुल्लाहों से मेरी भेंट हुई, जिन्होंने फारसी में गीता और महाभारत जैसे गं्रथ पढे थे और जो संस्कृत भी जानते थे ! भारत में अब भी कई मुसलमान विद्वान संस्कृत पढते और पढाते हैं ! खुद डॉ मुहम्मद इस्माइल खान दिल्ली वि वि के दक्षिण परिसर के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष रहे हैं ! उन्होंने सरस्वती और भरत मुनि के नाट्रय-शास्त्र पर कार्य किया है ! अलीगढ मुस्लिम वि वि में पं हबीबुर्रहमान शास्त्री काफी प्रसिद्घ हुए ! प्रो गुलाम दस्तगीर तो अब भी पुणे से अपनी संस्कृत पत्र्िाका निकालते हैं ! राष्टीय संस्कृत संस्थान के प्रो एम के दुर्रानी का गीता और कुरान का तुलनात्मक अध्ययन महत्वपूर्ण शोध-कार्य रहा है ! उत्तर प्रदेश के अनेक महाविद्यालयों में कई मुस्लिम विद्वान ;पति-पत्नी भीद्घ संस्कृत पढा रहे हैं ! मुसलमानों की संस्कृत-सेवा इतना महत्वपूर्ण और रोचक विषय है कि जवाहरलाल नेहरू वि वि के संस्कृत केंद्र की अध्यक्षा डॉ शशिप्रभा कुमार ने वचन दिया है कि वे विषय पर पी एचडी क्ा शोध-प्रबंध तैयार करवाएंगी !
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यदि मुसलमानों ने संस्कृत-सेवा के क्षेत्र में झंडे गाडे हैं तो हिन्दी तो उनकी अपनी भाषा रही है, यह बात डॉ मलिक मोहम्मद ने अपनी पुस्तक हिन्दी की संस्कृति में सिद्घ की है ! डॉ मलिक मोहम्मद हिन्दी के जाने-माने विद्वान हैं ! उन्होंने हिन्दी में दर्जनों पुस्तकें लिखी हैं ! उनकी अपनी भाषा तमिल औार मलयालम है ! वे बरसों कालिकट विश्वविद्यालय में हिन्दी पढाते रहे हैं ! दिल्ली के शब्दावली आयोग के वे अध्यक्ष भी रह चुके हैं ! आजकल नागरकोइल में रहते हैं ! हिन्दी की संस्कृति में उनकी मूल प्रस्थापना यह है कि हिन्दी को किसी मजहब से जोडना गलत है ! वह सारे भारत की भाषा है ! वे उसे राजभाषा की बजाय राष्टभाषा के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं ! आज हिन्दी की दशा दुष्यंत के दरबार की शकुंतला की तरह है ! वे हिन्दी को कण्व के आश्रम की शकुंतला के मुक्त और गौरवशाली रूप में देखना चाहते हैं ! उन्होंने अमीर खुसरो, मलिक मोहम्मद जायसी, रहीम खानेखाना, अब्दुल कुद्रदुस गंगोही, इंशा, नजीर बनारसी आदि की हिन्दी परम्परा का बडा सुंदर चित्रण किया है ! भारत के अन्य प्रदेशों की हिन्दी परम्परा के आधार पर भी उन्होंने हिन्दी संस्कृति की बात प्रस्तुत की है ! उनके विचार डॉ रामबिलास शर्मा के हिन्दी जाति की अवधारणा के बहुत निकट है ! यदि फीजी, मोरिशस और केरिबियाई देशों की हिन्दी परम्परा तथा आजकल के लाखों प्रवासी भारतीयों की हिन्दी पर भी ध्यान दिया जाए तो सचमुच हिन्दी संस्कृति जैसी कोई अवधारणा सगुण-साकार रूप धारण कर सकती है !
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