नया इंडिया, 19 फरवरी 2014:मुसलमानों को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण दिलवाने के लिए केंद्र ने फिर एक नया मोर्चा खोल दिया है। उसने सर्वोच्च न्यायालय से अर्ज की है कि वह पिछड़ों के 27 प्रतिशत कोटे में से 4.5 प्रतिशत सीटें उन मुसलमानों को दे, जो पिछड़े हुए हैं। इसमें शक नहीं कि यदि पिछड़ों को आरक्षण दिया जा रहा है तो हर पिछड़े आदमी को आरक्षण मिलना चाहिए, चाहे उसका मज़हब कोई भी हो। किसी भी गरीब और पिछड़े व्यक्ति को इसलिए आरक्षण से वंचित कर दिया जाए कि वह हिंदू नहीं है, यह तो सरासर अन्याय है। पिछड़े किस मजहब में नहीं हैं? हिंदू, मुसलमान, बौद्ध, ईसाई, सिख- सभी मजहबों में आपको ऐसे लाखों-करोड़ों लोग मिल जाएंगे, जो आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक दृष्टि से बहुत ही दयनीय अवस्था में हैं। लेकिन हमारी सरकार काणी है। बस, वह एक आंख से देखती है और एक आंख से भी एक ही चीज़ देखती है। वह हैं – मुसलमान लोग!
सरकार की नज़र सिर्फ मुसलमानों पर ही क्यों पड़ती है? क्योंकि उनके वोट थोक में मिलते हैं। उन्हें आसानी से फुसलाया जा सकता है। उनमें शिक्षितों और संपन्न लोगों की संख्या बहुत कम है। वे भावुक होते हैं। उन्हें अपनी तोप का भूसा बनाना सबसे ज्यादा आसान है। वे लोग थोक वोट के हिसाब से संख्या में सबसे ज्यादा हैं। आंध्र सरकार ने अपने पिछड़ों में मुसलमानों को जोड़ लिया था और उन्हें 4 प्रतिशत स्थान दे दिया था। आंध्र के उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी थी और कहा था कि हमारे संविधान में धार्मिक आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है।
अदालत की बात सही थी, क्योंकि पाकिस्तान का निर्माण इसी आरक्षण के कारण हुआ था। अब केंद्र सरकार ने आंध्र सरकार की तर्ज पर 4.5 प्रतिशत मुस्लिम कोटे का फरमान जारी कर दिया, पांच राज्यों के चुनावों के पहले। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उसे अभी भी अधर में लटका रखा है।
अब लोकसभा और कुछ राज्यों के चुनाव शीघ्र ही होने वाले हैं। कांग्रेस अपनी डूबती नाव को इसी मुस्लिम आरक्षण के चप्पू से तिरवाना चाहती है लेकिन मुसलमान लोग इतने भोले नहीं हैं कि वे अपने नफे-नुकसान को न समझ पाएं। वे जानते हैं कि इस आरक्षण का लाभ सिर्फ मुट्ठी भर खाए-धाए मुसलमानों को मिलेगा जबकि करोड़ों गरीब और ग्रामीण मुसलमान शेष भारतीय समाज में ईर्ष्या और निंदा के केंद्र बन जाएंगे। यह अल्पसंख्यक आरक्षण बहुसंख्यक मुसलमानों का दुश्मन सिद्ध होगा।
यदि आरक्षण हर जरुरतमंद को मजहब, जाति और भाषा के भेद-भाव के बिना मिलने लगे तो सबका कल्याण होगा। सभी मज़हबों, सभी जातियों, सभी क्षेत्रों में जो भी गरीब और पिछड़ा है, उसे आगे आने का अवसर मिलेगा। सारा राष्ट्र एक साथ आगे बढ़ेगा। लेकिन हमारे नेतागण इस राष्ट्र को सामाजिक टुकड़ों में तोड़-तोड़कर आगे बढ़ाना चाहते हैं ताकि राष्ट्र का कल्याण हो या न हो, उनका कल्याण जरुर हो जाए।
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