नया इंडिया, 21 जनवरी 2014 : भाजपा और कांग्रेस, दोनों प्रमुख पार्टियों के अधिवेशन दिल्ली में लगभग साथ-साथ हुए। दोनों अधिवेशनों में सबसे अधिक प्रमुखता मिली, राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के भाषणों को। राहुल गांधी का भाषण बहुत जोशीला था। इतना जोशीला भाषण राहुल ने कभी नहीं दिया था। खुद कांग्रेसी चकित थे कि राहुल को इतना जोश कैसे आ गया? सबको आश्चर्य यह हुआ कि अपनी ही पार्टी की सीमित संगोष्ठी में राहुल को इतने चीखने-चिल्लाने की जरुरत क्यों आन पड़ी? कहीं यह हताशा या निराशा का रुदन तो नहीं था? यह भी हो सकता है कि सत्तारुढ़ पार्टी का यह आखरी बिदाई संगीत हो। कुछ लोगों का यह कहना था कि यह चमत्कार उस विदेशी फर्म के कारण हुआ है, जिसकी सेवाएं 500 करोड़ में ली गई है। राहुल की छवि सुधारनेवाली इस फर्म के विशेषज्ञों ने सलाह दी होगी कि आप क्या मेमने की तरह फुसफुसाते रहते हैं। जरा शेर की तरह दहाडि़ए। तो शेर दहाड़ने लगा। उसे यह समझ नहीं पड़ा कि उसे कहां दहाड़ना चाहिए। अपनी मांद को ही वह जंगल समझ बैठा। जब राहुल ने मांद में दहाड़ मारी तो लोग समझ गए कि विशेषज्ञों ने ज़रा चाबी ज्यादा भर दी। इसलिए गुड्डे ने जरा जोर का नाच दिखा दिया। राहुल के भाषण में जोश जरुर था लेकिन जोश से ज्यादा क्रोध की बनावटी मुद्रा थी। लोग पूछ रहे थे कि यह युवा नेता क्रोध किस पर कर रहा था? क्या भारत की जनता पर? जो पहले से ही धोखा खाए बैठी है, जिसने नेताओं की कुर्सी पर अ-नेताओं को 10 साल से बिठा रखा है, जिसने चार राज्यों में कांग्रेस को धूल चटा दी है। यदि जनता पर नहीं तो क्या कांग्रेस के सरताज़ अपने पार्टी कार्यकर्ताओं पर बरस रहे थे। वे फटे पड़ रहे थे। उनका वह फट पड़ना, उनकी वह नवीनतम मुद्रा, उनका वह बनावटी गुस्सा ही इस कांग्रेस अधिवेशन की मुख्य खबर थी। उन्होंने और दूसरे नेताओं ने क्या कहा, इस पर लोगों का ध्यान गया ही नहीं। राहुल के अभिनय का श्रोताओं ने जमकर रस लिया।
और दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी ने पहली बार अपनी रचनात्मक दृष्टि को उजागर किया। मोदी का भाषण ऐसा था, जैसा किसी जिम्मेदार नेता का होता है। उस भाषण में देश के सर्वांगीण विकास का एक मोटा-मोटा नक्शा था। उसने गांव के गरीबों के लिए मकान, रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा की बात थी तो शहरी मुखर मध्यम वर्ग के लिए बड़े-बड़े शहरों, बुलेट ट्रेनों, तकनीकी संस्थानों आदि के प्रस्ताव थे। देश के तीन-चार करोड़ करदाताओं के लिए नवीनतम सुविधाओं का आश्वासन भी था। युवा शक्ति और महिला-महिमा को प्रोत्साहित करने के भी सूत्र थे। सबसे बड़ा पैंतरा था- चायवाला! मणिशंकर अय्यर के मजाक ने मोदी को देश के 60-70 करोड़ पिछड़ों का ‘हीरो’ बना दिया है। अय्यर ने कांग्रेस अधिवेशन में मोदी को न्यौता दिया कि वे आकर यहां चाय बेच सकते हैं। मोदी ने संकल्प कर लिया है कि वे देश के हर चुनाव- केंद्र पर अब कांग्रेस को ‘चाय-पानी’ करवाएंगे। मोदी ने ‘चाय’ के मुहावरे को पकड़कर देश के सारे गरीब, ग्रामीण, पिछड़ों के मर्म को छू लिया। कोई वाक्य, चाहे मजाक में ही बोला जाए, कभी-कभी कितना भारी पड़ सकता है, यह अय्यर को अब पता चलेगा। मोदी ने कांग्रेस को ‘मां-बेटा पार्टी’ नहीं कहा, जो मैं कहता हूं लेकिन उन्होंने यह तो कह ही दिया कि मां अपने बेटे को कुरबान कैसे कर सकती है? उसने अपने बेटे को मज़ाक का विषय नहीं बनने दिया। यदि वह राहुल को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर देती तो चुनाव के दौरान वह सबसे बड़ा मजाक सिद्ध होता और चुनाव के बाद एक दुखांत नाटक! मोदी ने अपने भाषण में यह चुटकी जरुर ली लेकिन भाजपा का यह अधिवेशन अपनी रचनात्मक दृष्टि के लिए याद किया जाएगा। इन दोनों अधिवेशनों ने नेता और अभिनेता के अंतर को उजागर कर दिया।
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