नया इंडिया, 12 फरवरी 2014: मोदी-विरोधियों के लिए अब एक धक्का और! आजकल मोदी-विरोध कुछ नेताओं के लिए इतना फेशनेबल बन गया है कि वे अपने इस शौक के खातिर दक्षिणपंथ-वाम जैसे भेद-भाव की भी परवाह नहीं करते। अमेरिका- जैसे धुर दक्षिणपंथी, पूंजीवादी राष्ट्र के साथ हमारे अनेक प्रगतिशील और वामपंथी नेता और समाजसेवी भी एकजुट दिखाई पड़ते थे। उनकी एकजुटता का एक मात्र कारण नरेंद्र मोदी रहे हैं। इन्हीं लोगों ने कुछ तथाकथित समाजसेवी संस्थाओं को पटाकर अमेरिकी सरकार पर दबाव डाला था कि वह मोदी को अपमानित करें। अमेरिकी सरकार यह काम कैसे करे सकती थी? मोदी को वीजा मना करके।
अमेरिकी को यह गलतफहमी है कि दुनिया का हर प्रमुख नागरिक अमेरिका जाना चाहता है। उसने अपने आप को आधुनिक दुनिया का मक्का-मदीना बना लिया है। यदि संयुक्तराष्ट्र संघ का मुख्यालय न्यूयार्क में नहीं होता तो अमेरिका को पता चल जाता कि उसकी हैसियत क्या है? बिना बुलाए कौन बड़ा आदमी वाशिंगटन डी.सी. जाता?
खैर, मोदी को 2005 में वीजा देने से मना कर दिया गया। लेकिन अब क्या बात है कि भारत में अमेरिका की राजदूत नैन्सी पॉवेल मोदी से मिलने अहमदाबाद जा रही है? उनके पहले भी अमेरिका के कई सीनेटर और कांग्रेंसमेन गुजरात जाकर मोदी से मिलते रहे हैं। उन्हें पता है कि अमेरिका में रहने वाले गुजरातियों के दिल में मोदी के लिए कितना सम्मान है। इन गुजरातियों ने मोदी की अवहेलना को लेकर अमेरिकी नेताओं की नाक में दम कर दिया था। अमेरिकी प्रशासन यह समझ रहा था कि मोदी के प्रति उसके रवैए का करोड़ों भारतीयों पर बुरा असर पड़ रहा है लेकिन अब देर आयद् दुरूस्त आयद!
देर से ही सही, ओबामा प्रशासन पर सद्बुद्वि का उदय हो गया है। उसने यूरोपीय राष्ट्रों के रवैए से भी सबक लिया होगा। यूरोपीय देशों के राजदूत एक के बाद एक मोदी से मिल चुके हैं। ये सब राजदूत एक प्रांतीय नेता से क्यों मिल रहे हैं? उनका काम-काज तो प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री से होता है। वे मुख्यमंत्री के दरबार में दस्तक क्यों दे रहे हैं? इसलिए कि दीवार पर लिखी जा रही इबारत को वे साफ-साफ पढ़ रहे हैं। वे देख रहे हैं कि चार-छह माह बाद इसी प्रांतीय नेता से उनके राष्ट्रों को सीधा व्यवहार करना पड़ेगा। अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्रों के मुकाबले क्या चीन की विदेश नीति अधिक परिपक्व दिखाई नहीं पड़ती? उसने मोदी को पिछले साल न केवल चीन आमंत्रित किया बल्कि उनको वह सम्मान दिया, जो किसी प्रधानमंत्री को दिया जाता है।
यद्यपि अमेरिका ने वीजा देने की बात अभी तक नहीं कही है लेकिन नैन्सी पॉवेल का मोदी से मिलना वीजा से कहीं ज्यादा बड़ी बात है। वास्तव में यह घटना मोदी की पगड़ी में एक नया मोरपंख खोंसेगी। बेचारे देश के मोदी-विरोधी अब क्या करेंगे? क्या उन्हें पता है कि मुस्लिम देशों के कई राजदूत भी मोदी से मिलने के लिए बेताब हो रहे हैं?
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