नया इंडिया, 30 सितंबर 2014: न्यूयार्क में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो भाषण दिए, एक तो संयुक्तराष्ट्र महासभा में और दूसरा मेडिसन चौराहे पर, इसमें उन्होंने भारत के राष्ट्रहितों को काफी बल प्रदान किया है। दोनों भाषण हिंदी में देकर मोदी ने यह सिद्ध किया कि वे परदेस के मुकाबले देश को ही प्राथमिकता देते हैं। जो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री विदेश जाकर अंग्रेजी में बोलते हैं, देश का हित उनके दिमाग में भी सर्वोपरि होता है लेकिन वे विदेशों की चकाचौंध में फंस जाते हैं और अल्प समय के लिए विदेश ही उनकी नजरों में बचा रह जाता है। भारत की जनता, भारत की पहचान और भारतीयता हाशिए में चली जाती हैं।
नरेंद्र मोदी ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने कूटनीतिक और आम जनता, दोनों स्तरों पर हिंदी का प्रयोग किया। हिंदी उनकी मातृभाषा नहीं है। गुजराती है। लेकिन हिंदी पर जोर देकर उन्होंने सिद्ध किया कि वे सच्चे राष्ट्रवादी हैं। वे महर्षि दयानंद और महात्मा गांधी, इन दो महान गुजरातियों के चरण चिन्हों पर चले हैं।
मोदी ने महासभा के भाषण में पाकिस्तान का चलते चलते जिक्र कर लिया। नवाज शरीफ से चोचें नही लड़ाई. यह अच्छा किया। परिपक्वता का परिचय दिया। वास्तव में उन्होंने पाकिस्तान से बातचीत की खिड़की खोल दी। पाकिस्तान के (लगभग) विदेश मंत्री सरताज अजीज अपनी बात पर अड़े रहे लेकिन उन्होंने उस खिड़की में से ताजा हवा का एक झोंका जरूर बहाया है। उन्होंने कहा है कि अगर भारत सरकार पहले से बता देती तो उनके राजदूत शायद हुर्रियत के नेताओं से नहीं मिलते। अब दोनों देश चाहें तो बातचीत का दरवाजा खोल सकते हैं।
मोदी ने महासभा में आतंकवाद, गरीबी निवारण, पर्यावरण रक्षा तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय समस्याओं पर सर्वसम्मति की बात कही, जो संपूर्ण संयुक्त राष्ट्र की खेमेबाजी का सुंदर समाधान है। इसी प्रकार मोदी ने मेडिसन चौराहे पर एक अपूर्व जनसभा को संबोधित करते हुए अमेरिका के 30 लाख प्रवासी भारतीयों में जोश भर दिया है। हर हाल में उनका साथ देने की बात कह कर मोदी ने भारत के साथ उनके नाभि-नाल संबंधों को सुदृढ़ कर दिया है। उन्हें स्थाई वीजा आदि का उपहार देकर उनका दिल जीत लिया है। उन्होंने प्रवासी भारतीयों में जिस आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास का संचार किया है, उसी की सराहना अमेरिकी सरकार भी करेगी, क्योंकि यह उत्साह अमेरिका की शक्ति, संपन्नता और संस्कृति को समृद्ध बनाएगा। इन दोनों भाषणों का अमेरिका के ओबामा प्रशासन, सांसदों और मीडिया पर जबर्दस्त प्रभाव पड़ेगा।
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