R Sahara, 5 Oct 2003 : मोरिशस भारत से 3600 मील दूर है| हवाई जहाज से वहॉं पहुंचने में साढ़े सात घंटे लगते हैं| यह हिन्द महासागर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है| इस द्वीप का नाम ‘मोरिशस’ कैसे पड़ा ? फ्रांसीसी भाषा में इस द्वीप को ‘इल मौरिस’ कहा जाता है याने मौरिस का द्वीप| फ्रांसीसी राजकुमार मौरिस के नाम पर इस द्वीप का नाम रखा गया| भोजपुरी में इसे मोरिशस कोई नहीं बोलता| इसे ‘मोरिस’ ही बुलाया जाता है| अब से 60-70 साल पहले अंग्रेज के राज में इस देश से जो चीनी भारत आती थी, उसे शक्कर या चीनी कोई नहीं बोलता था| उसे मोरिस या मोरिसी कहा जाता था| अब भी मोरिशस की अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ चीनी उद्योग ही है| यदि 750 वर्गमील में फैले इस देश में आप चक्कर लगाऍं तो ऐसा लगता है कि आप गन्ने के विराट्र खेत में घूम रहे हैं| कहीं-कहीं तो मीलों-मील गन्ने के खेतों के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता| दोनों ओर गन्ने ही गन्ने और बीच में सिर्फ 10-12 फुट चौड़ी सड़क| सड़कें सपाट और चिकनी हैं लेकिन इतनी संकरी हैं कि लगता है कि आपकी कार बस अब सामने वाली कार से टकरानेवाली ही है| गन्ने की खेती इतनी घनी है कि सड़कों के मोड़ पर गाड़ी रोककर दाऍं या बाऍं मोड़नी पड़ती है| भारतवंशियों के खेत गॉंवों में हैं और छोटे-छोटे हैं लेकिन गोरे फ्रांसवंशियों के खेत सैकड़ों एकड़ों में फैले हुए हैं| दर्जन भर फ्रांसीसी मूल के गोरे परिवारों के हाथ में मोरिशस के 40 प्रतिशत से भी अधिक खेत हैं| इन्हीं खेतों में हजारों भारतवंशी अब भी मजदूरी करते हैं| इन्हीं खेतों में गन्ना बोने और काटने के लिए लगभग 170 साल भारत और अफ्रीका से मजदूरों को मोरिशस ले जाया गया था| मोरिशस की गन्ना-मिलों पर भी गोरों का ही एकाधिकार है| हाल में ही कुछ मिलें गोरों ने बंद कर दी हैं| उसके कारण आठ-दस हजार मजदूर बेकार हो गए हैं| उत्पादन के साधनों के आधुनिकीकरण के कारण चीनी की मात्रा में कमी नहीं हुई है लेकिन मजदूरों के पेट पर लात पड़ रही है| मोरिशस में पैदा होनेवाली चीनी को फ्रांस के व्यापारी अगि्रम तौर पर खरीद लेते हैं लेकिन अब 2005 से यह कोटा खत्म होनेवाला है| फ्रांसीसी लोग सिर्फ सौ साल मोरिशस में रहे और अंग्रेज डेढ़ सौ साल रहे लेकिन इस देश की अर्थव्यवस्था और संस्कृति पर आज भी फ्रांस की जबर्दस्त पकड़ है|
आजकल हमारे पूर्व प्रधानमंत्री श्री ह.डो. देवेगौडा किसी कार्यक्रम में मोरिशस आए हुए हैं| वे किसान हैं| इसीलिए बार-बार खेतों और किसानों के बारे में पूछते रहते हैं| पूर्व प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम ने बताया कि 1997 में जब आपके प्रधानमंत्री देवेगौडा मेरे साथ कार में घूमते थे तो बार-बार पूछते थे कि आपके पिता सर शिवसागर रामगुलाम (प्रथम प्रधानमंत्री) ने इन गन्ना-खेतों और गन्ना मिलों का राष्ट्रीयकरण क्यों नहीं किया? वर्तमान प्रधानमंत्री पॉल बेरांजे स्वयं गोरे हैं लेकिन समाजवादी रहे हैं| अब से 25 साल पहले वे चीनी-उद्योग के राष्ट्रीयकरण की बात करते थे लेकिन अब प्रधानमंत्री बनने पर वे क्या-क्या कर पाऍंगे, यह अभी देखना है|
मोरिशस की राष्ट्रभाषा क्या है, यह कहना कठिन है| सरकार की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है लेकिन सारा सार्वजनिक काम-काज फ्रांसीसी में होता है| प्रत्येक व्यक्ति धाराप्रवाह फ्रांसीसी बोलता है| जो लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं, वे ‘क्रेओल’ बोलते हैं| यह ‘क्रेओल’ क्या बला है? यह अपभं्रश फ्रांसीसी है| फ्रांसीसी, अंग्रेजी, स्वाहिली, भोजपुरी और चीनी भाषा की खिचड़ी है| यही यहॉं की राष्ट्रभाषा मालूम पड़ती है| सभी लोग एक-दूसरे से इसी भाषा में बात करते हैं| घर और बाजार में भी यही बोली जाती है| स्कूलों में हिन्दी जरूर पढ़ाई जाती है लेकिन मैंने आर्यसमाजियों के अलावा किसी को भी आपस में हिन्दी में बात करते नहीं सुना| भारत से जानेवाले कथावाचक, पंडित, प्रचारक आदि हिन्दी में भाषण जरूर देते हैं लेकिन उनको समझनेवालों की संख्या घटती जा रही है| वाक्वा के आर्यसमाज में मुझे अपना भाषण अंगे्रजी में दोहराना पड़ा| ‘हिन्दी स्पीकिंग यूनियन’ ने मेरे सम्मान में एक बड़ा प्रीति-भोज आयोजित किया| आयोजकों ने तो हिन्दी में बोला लेकिन सभा के अध्यक्ष संस्कृति मंत्री मोती रामदास चाहकर भी हिन्दी नहीं बोल सके| हिन्दी या अंग्रेजी का इस देश में एक भी अखबार नहीं है| ‘ल मोरिस्यें’ और ‘ल एक्सप्रेस’ दोनों दैनिक अखबार फ्रांसीसी भाषा के हैं| ‘ल मोरिस्यें’ के संपादक जिल्बे एहनी फ्रांसीसी भाषी हैं लेकिन उनके कुछ पूर्वज भारतवंशी भी रहे हैं| उनकी पत्नी फ्रांसीसी है| उन्हें भारत से बहुत प्यार है लेकिन भारतवंशी उन्हें अपना नहीं समझते| भारतवंशियों का कहना है कि वे गोरों की तरफदारी करते हैं| अंग्रेजी और हिन्दी में कुछ साप्ताहिक और मासिक पत्र निकलते हैं| अंग्रेजी पत्रों का कुछ असर जरूर है लेकिन हिन्दी पत्रों का प्रसार और प्रभाव यथोचित नहीं है| महात्मा गॉंधी संस्थान में हिन्दी और अंग्रेजी में कुछ उत्तम पुस्तकें अवश्य तैयार हुई हैं लेकिन भारत या बि्रटेन जैसी पांडित्य की परम्परा अभी यहॉं कायम नहीं हुई है| संस्थान की निदेशिका श्रीमती सूर्यकांति गयान स्वयं विदुषी हैं और विदेश मंत्री अनिल गयान की पत्नी हैं| वे चाहती हैं कि यह संस्थान राजनीति और इतिहास के क्षेत्र में भी उत्तम शोधकार्य सम्पन्न करे|
महात्मा गॉंधी संस्थान को प्रसिद्घ करनेवाले मोरिशस के स्वनामधन्य लेखक श्री अभिमन्यु अनत आजकल रवीन्द्रनाथ ठाकुर संस्थान के निर्माण में लगे हुए हैं| भारत ने डेढ़ करोड़ की राशि दी है| वे श्रेष्ठ उपन्यासकार हैं| उनकी लगभग 75 कृतियॉं प्रकाशित हो चुकी हैं| दो काव्य-संग्रहों की रचयिता राज हीरामन से भी भेंट हुई| श्रीमती शकुंतला हवलदार भारत में जन्मी और पली हैं लेकिन अब मोरिशस की नागरिक हैं| वे अंग्रेजी की विख्यात कवियित्री हैं
स्वामी कृष्णानंद आश्रम का सराहनीय विकास हुआ है| ‘ह्रयूमन सर्विस ट्रस्ट’ नामक संस्था द्वारा संचालित इस आश्रम का विकास श्री धनदेव बहादुर की देख-रेख में हो रहा है| कृष्णानंदजी ने लगभग 25 साल तक मोरिशस की सेवा की| उनके शिष्यों में अनेक मंत्री, सांसद, संपादक, प्रोफेसर, राजदूत आदि बने हैं| कालबाश स्थित यह आश्रम कभी केथोलिक मठ था | इसमें अनाथों, विकलांगों, वृद्घों और मानसिक रोगियों को आश्रय मिलता था| किसी समय प्रधानमंत्री जगन्नाथ के साथ केथोलिक मठाधीशों का झगड़ा ऐसा बढ़ा कि उन्होंने मठ रातोंरात खाली कर दिया| इस संकट के समय स्वामी कृष्णानंद ने जिम्मेदारी संभाली और उनके शिष्यों ने तत्काल संचालन अपने हाथ में ले लिया| इस आश्रम में चर्च अब भी चालू है लेकिन आर्यसमाजी हवन भी रोज होता है| एक आयुर्वेदिक केंद्र भी चल रहा है| सुंदर-सा अतिथि-गृह भी बन गया है| ‘गोपियो’ (ग्लोबल आर्गेनाइजेशन ऑफ पीपल्स ऑफ इंडियन ओरिजिन) का यह मुख्यालय है| धनदेवजी ‘गोपियो’ के अध्यक्ष हैं| लगभग दस साल पहले मोरिशस की सरकार ने स्वामीजी के मोरिशस आगमन की रजत जयंती मनाई| डाक-टिकिट निकाला लेकिन जिस दिन रजत जयंती उत्सव की पूर्णाहुति हुई, रात को वहीं स्वामीजी ने महाप्रयाण कर दिया| वे 92 वर्ष के थे| 30 साल पहले जब वे दिल्ली आते थे, मेरे साथ ही रहते थे और कहते थे कि मेरा अफ्रीका का कार्य आप और वेदवती ही संभालें| वे सच्चे संन्यासी थे| मैं मोरिशस में प्रधानमंत्री का मेहमान रहॅूं या भारत सरकार का, मैं रहता हॅंू, अपने आश्रम में ही|
मोरिशस में प्राय: सभी लोग मॉंस खाते हैं लेकिन यह आश्रम शुद्घ शाकाहारी है| स्वामीजी के कारण इस आश्रम में भारतीय ढंग का सादा भोजन मिल जाता है| जो लोग यहॉं शाकाहारी हैं, उनकी भोजन बनाने की शैली काफी अलग है| उस पर फ्रांसीसी प्रभाव जबर्दस्त है| यहॉं फल बहुत होते हैं और बड़े मीठे हैं| लीची और आम नवंबर-दिसंबर में पकते हैं| आजकल पेड़ों पर कच्चा आम (केरियॉं) लदा हुआ है| गद्रदर इमली बड़ी स्वादिष्ट है| मौसम ठंडा है| कब बरसात हो जाए, पता नहीं चलता| अब गर्मी की शुरूआत होने वाली है| सड़कों पर खड़े होकर लोग दाल-पूरी खाते हैं| यह बड़ी सस्ती और कमाल की चीज़ है| दाल भरकर भाप से बनाई हुई यह रोटी बहुत लोकपि्रय है| दूध की लस्सी में कुछ फ्रांसीसी और चीनी चीजें डालकर अद्रभुत पेय तैयार किया जाता है|
इस बार मोरिशस के समुद्र-तटों पर विहार का समय कम ही मिला लेकिन पनडुब्बी में सैर जरूर हुई| रतलाम के अपने मित्र चेतन काश्यपजी का आग्रह टालना असंभव था| यों भी मोरिशस सामुदि्रक सौन्दर्य का स्वर्ग तो है ही|
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