NavBharat Times, 8 Oct 2003 : मोरिशस 1968 में आज़ाद हुआ लेकिन पिछले 35 वर्षों में वहॉं जो भी प्रधानमंत्री बना, वह कोई न कोई भारतवंशी ही रहा| भारतवंशी ही नहीं, वह हिन्दू ही रहा और सिर्फ हिन्दू ही नहीं, वैश जाति;यादव-कुर्मी आदि का रहा और मोरिशस में जो वैश है, वह हिन्दीभाषी तो होता ही है| यह पहला मौका है कि पॉल रेमों बेरांजे नामक एक गोरा व्यक्ति 30 सितंबर को मोरिशस का प्रधानमंत्री बना है| मोरिशस में बसे लगभग आठ लाख भारतवंशियों को विश्वास नहीं हो रहा था कि उनकी 70-75 प्रतिशत की बहुसंख्या का प्रतिनिधि नहीं बल्कि मुश्किल से 10-12 हजार याने एक प्रतिशत गोरों की जाति का व्यक्ति उनके देश का प्रधानमंत्री बन रहा है|
सबसे पहले तो यह समझा जाए कि यह चमत्कार कैसे हुआ? हुआ यह कि तीन साल पहले आम-चुनाव की वेला में बेरांजे की पार्टी ‘मूअमॉं मिलितॉं मोरिस्यें’ और पूर्व प्रधानमंत्री अनिरुद्घ जगन्नाथ की पार्टी ‘मूअमॉं सोस्यालिस्त मोरिस्यें’ में गठबंधन हुआ, जिसकी शर्त यह थी कि अगर यह गठबंधन जीता तो पहले तीन साल जगन्नाथ प्रधानमंत्री होंगे और शेष दो साल बेरांजे| प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम की लेबर पार्टी हार गई और जगन्नाथ-बेरांजे गठबंधन जीत गया| बेरांजे की पार्टी को जगन्नाथ की पार्टी से ज्यादा सीटें मिलीं, फिर भी तीन सालवाला पहला प्रधानमंत्री पद जगन्नाथ को दिया गया| 30 सितंबर 2003 को ये तीन साल पूरे हुए| इसीलिए अब बेरांजे ने अगले दो साल के लिए प्रधानमंत्री पद सम्हाल लिया है|
जब तीन साल पहले यह समझौता हुआ तो माना जा रहा था कि जगन्नाथ की पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें मिलेंगी, क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम-विरोधी हवा पूरे मोरिशस में बह रही थी और लोग यह भी महसूस कर रहे थे कि कई बार प्रधानमंत्री रहे जगन्नाथ को 1995 में हराकर लोगों ने ज्यादती की थी| इसके अलावा यह भी प्रचार किया गया था कि तीन साल किसने देखे हैं| बेरांजे को पिछले प्रधानमंत्रियों ने अपनी सरकारों से निकाला है तो इस बार भी जगन्नाथ उन्हें तीन साल के पहले ही निकाल बाहर करेंगे याने पूरे पॉंच साल जगन्नाथ का राज चलता रहेगा| इधर बेरांजे के समर्थकों ने सोचा कि जिस नेता के पीछे वे 35 साल से लगे हुए हैं, पहली बार उसके प्रधानमंत्री बनने का अवसर आया है तो पूरा जोर क्यों नहीं लगाया जाए? इसलिए मोरिशस के गोरे, अफ्रीकी मूल के काले, चीनी, वर्णसंकर, मुसलमानों तथा अहिन्दीभाषी भारतवंशियों ने बेरांजे की पार्टी को सर्वाधिक सीटें दिलवाईं| रोमन केथोलिक चर्च प्राय: सीधी राजनीति नहीं करता लेकिन उसने भी बेरांजे के पक्ष में खुली अपील की| यों बेरांजे पिछली कई सरकारों में उप-प्रधानमंत्री के पद पर रहे हैं लेकिन इस बार वित्तमंत्री और उप-प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी स्थिति इतनी मजबूत थी कि पिछले तीन वर्षों में उन्हें ही वास्तविक प्रधानमंत्री माना जा रहा था| इसीलिए तीन साल बाद जब सत्ता-परिवर्तन हुआ तो मोरिशस में कोई राजनीतिक भूकम्प नहीं आया|
यदि बेरांजे को विधिवत प्रधानमंत्री नहीं बनाया जाता तो निश्चय ही मोरिशस राजनीतिक भूकम्प का शिकार हो जाता| पिछले 35 वर्षों में बेरांजे ने मोरिशस में जमीन से जुड़कर राजनीति की है| हर जाति में उनके हजारों अंध-भक्त खड़े हो गए हैं| उन्हें गोरों और अल्पसंख्यकों का नेता कहा जाता है लेकिन उनकी पार्टी में भारतवंशी सांसदों की संख्या सबसे ज्यादा है| यह ठीक है कि बेरांजे के प्रधानमंत्री बनने पर मोरिशस का हिन्दू समाज सहमा-सहमा है लेकिन वह यह भी मानता है कि इसके लिए हिन्दू नेता खुद जिम्मेदार हैं| यदि नवीन रामगुलाम और अनिरुद्घ जगन्नाथ में समझौता हो जाता तो हिन्दू वोट आपस में बंटते नहीं और बेरांजे किसी हालत में जीतता नहीं| अनेक लोग अनिरुद्घ जगन्नाथ के सिर ठीकरा फोड़ रहे हैं| उनका कहना है कि जगन्नाथ मोरिशस के हिन्दुओं का जयचंद है| उसने दुबारा प्रधानमंत्री बनने के लिए बेरांजे को प्रधानमंत्री पद तश्तरी में रखकर भेंट कर दिया | बेरांजे को प्रधानमंत्री बनाकर अब वे 7 अक्तूबर को मोरिशस के राष्ट्रपति बन जाऍंगे| उनका बेटा प्रदीप जगन्नाथ बेरांजे का उप-प्रधानमंत्री बन गया है और उनका एक चचेरा भाई मंत्री !
इसमें शक नहीं कि इस समय मोरिशस में जगन्नाथजी के भाव बहुत नीचे आ गए हैं और नवीन के उपर| दो साल बाद चाहे जो हो, फिलहाल श्री जगन्नाथ ने बेरांजे को प्रधानमंत्री बनाकर सही कदम उठाया है| मोरिशस में हुआ शांतिपूर्ण सत्ता-परिवर्तन उसके लोकतंत्र की परिपक्वता का प्रमाण है| मोरिशस के भारतवंशियों की उदारता और धैर्य की सर्वत्र सराहना हो रही है| मोरिशस के लोग यह पूछ रहे थे कि क्या आप इस लोकतंत्र को सच्चा लोकतंत्र मानते हैं, जिसमें एक प्रतिशत गोरों की जाति का आदमी पूरे मोरिशस पर राज कर रहा है? क्या यह फ्रांसीसी और ईसाई उपनिवेशवाद की वापसी नहीं है? क्या मोरिशस दुबारा गुलाम नहीं हो रहा है?
मेरा उत्तर यह है कि सच्चा लोकतंत्र यही है| सच्चे लोकतंत्र में स्थायी बहुसंख्यक और स्थायी अल्पसंख्यक कभी नहीं होते| प्रत्येक चुनाव में हर देश का राजनीतिक नक्शा बदल जाता है| बहुसंख्यक अल्पसंख्यक हो जाते हैं और अल्पसंख्यक बहुसंख्यक| यदि किसी व्यक्ति को आप सिर्फ इसलिए प्रधानमंत्री नहीं बनने देंगे कि वह गोरा है तो क्या यह उलट-रंगभेद नहीं है? यदि मोरिशस लोकतंत्र है तो वह सबका है| उन सबका है, जो वहॉं के नागरिक हैं, जिनके बाप-दादे पिछले तीन-चार सौ साल से वहीं बसे हैं और जिन्हें वहीं जीना और मरना है| पॉल बेरांजे सोनिया गॉंधी की तरह विदेश से नहीं आए हैं और न ही वे अपनी पत्नी या मॉं के हेलिकॉप्टर में बैठकर मोरिशस के राजनीतिक हेलिपेड पर उतर गए हैं| वे अपनी कुमारावस्था से राजनीति में हैं| उन्होंने अनेक चुनाव जीते हैं और हारे भी हैं| उनके प्रधानमंत्री बनने से शायद मोरिशसीय राष्ट्रवाद जैसी किसी नई अवधारणा का भी जन्म हो सकता है| मोरिशस को लघु भारत या लघु अफ्रीका या लघु फ्रांस तब भी कहा जाता रहेगा लेकिन उसका एक स्वतंत्र राष्ट्रीय व्यक्तित्व ढलना भी शुरू हो जाएगा |
यह भय निराधार है कि बेरांजे की वजह से मोरिशस फीजी में परिणित हो जाएगा| बेरांजे ने तो फीजी के भारतवंशी प्रधानमंत्री महेंद्र चौधरी का सदा समर्थन किया है| इसके अलावा फीजी की तरह मोरिशस में मूल निवासियों और बाहरी आगंतुकों का झगड़ा नहीं है|वहॉं तो सभी बाहर से आकर बसे हैं| मोरिशस की अर्थव्यवस्था अब भी मुट्रठीभर गोरों के हाथ में जरूर है, लेकिन नौकरशाही, फौज, पुलिस और बाजार पर भारतवंशियों का ही वर्चस्व है| भारत और भारतवंशियों का विरोध करके बेरांजे अपने पॉंव पर कुल्हाड़ी क्यों मारेंगे? अपने अगले दो साल के राज में अगर बेरांजे लोकमत के विरुद्घ जाऍंगे तो उन्हें सत्ता में कौन रहने देगा? वास्तविकता तो यह है कि उन्हें मोरिशस के भारतवंशियों के प्रति जरूरत से ज्यादा नरमी दिखानी पड़ेगी, क्योंकि उन्हें यह सिद्घ करते रहना पड़ेगा कि वे गोरे तो हैं लेकिन सिर्फ गोरों के लिए नहीं हैं| उन्होंने मुझसे हुई बातचीत में यह साफ़-साफ़ कहा कि उनके कार्यकाल में वे ऐसे कदम उठाऍंगे कि भारत-मोरिशस संबंध ‘अनुपम’ ;यूनीकद्घ बन जाऍं| इसीलिए प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने अपनी पहली विदेश-यात्रा के लिए भारत को ही चुना है| वे नवंबर में आ रहे हैं| उन्होंने वचन दिया है कि वे अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी सचिवालय के काम को जोर-शोर से आगे बढ़ाएंॅगे और दुनिया के समस्त प्रवासी भारतीय लोगों वाले देशों को जोड़ने का काम भी करेंगे| ये प्रतीकात्मक कार्य हैं लेकिन आशा की जाती है कि पॉल बेरांजे पुराने समाजवादी होने के नाते कुछ ऐसे काम भी करेंगे कि मोरिशस के आम आदमी को आर्थिक और सांस्कृतिक आज़ादी भी मिले|
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