नया इंडिया, 12 अगस्त 2014: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक श्री मोहन भागवत ने कल भुवनेश्वर में जो कहा, वह सच तो है ही लेकिन वह एक चेतावनी भी है। इसका बड़ा महत्व है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी के पीछे असली ताकत संघ के स्वयंसेवकों की ही है। मोहनजी के कहने का सार यह है कि इस बार जो नई सरकार बनी है, उसके कारण कही भाजपा या कोई नेता (याने नरेंद्र मोदी) फूलकर कुप्पा न हो जाएं। कहीं वे यह न समझ बैठें कि यह सरकार उन्हीं की वजह से बनी है और उनके पास कोई ऐसी चमत्कारी शक्ति है या विलक्षण आकर्षण है, जिसकी वजह से जनता उन्हें वोट देने के लिए मजबूर हुई है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि पार्टी और नेता तो पहले भी थे, पिछले दो चुनावों में भी थे लेकिन वे सत्तारुढ़ क्यों नहीं हो पाए? क्योंकि जनता तैयार नहीं थी। उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी और नेताओं को जनता जब चाहेगी, तब हटा देगी।
मोहनजी के इस कथन के कई मतलब लगाए जा सकते हैं। एक तो यह कि उन्होंने किसी वस्तुनिष्ठ राजनीतिशास्त्री की तरह वर्तमान सत्ता-परिवर्तन का अनासक्त विवेचन कर दिया। उसमें कोई लाग-लपेट नहीं है। दूसरा, यह कि उन्होंने भाजपाइयों को नसीहत दी है कि वे कांग्रेसियों की तरह अपनी श्रेष्ठता के भुलावे में न पड़ जाएं और कहीं अपने कर्तव्य-पालन में ढील न दे दें। तीसरा, उन्होंने नरेंद्र मोदी का नाम लिए बिना सारे गुब्बारे की हवा निकाल दी है। भाजपा में व्यक्तिवादी राजनीति नहीं चल सकती, इसका स्पष्ट संकेत उन्होंने दे दिया है। यही बात उन्होंने बेंगलूरु में हुई संघ की प्रतिनिधि सभा की बैठक में भी कही थी और दो-टूक शब्दों में कही थी (नमो-नमो ज़पना मेरा काम नहीं है)।
मोहनजी के उक्त कथन में लोकप्रिय जन-भावना प्रतिबिंबित हो रही है। भाजपा के नेता एक-दूसरे की पीठ ठोक रहे हैं। वे एक-दूसरे के माथे पर विजय का सेहरा बांध रहे हैं। लेकिन उनकी नज़र जनता के उस मोहभंग पर नहीं है, जो भारतीय राजनीति के आकाश पर हल्के-हल्के बादलों की तरह घिरता जा रहा है। जनता के मोहभंग और नेताओं के अहंकार के बादलों में जब टकराहट होगी तो गुस्सा बरसेगा। इस गुस्से की आहट व्यक्त हो रही है, मोहनजी के बयान में! सर संघचालक मोहन भागवत के इस बयान से रुष्ट होने या निराश होने की जरुरत नहीं है, बल्कि उससे सीख लेने की जरुरत है। उन्होंने अपने पद की गरिमा के अनुसार अपना कर्तव्य निभाया है।
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