नया इंडिया, 08 फरवरी 2014 : एक अंग्रेजी पत्रिका में छपी भेंट-वार्ता के आधार पर कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवन ने असीमानंद को आतंकवाद फैलाने का आशीर्वाद दिया था। इस पत्रिका का दावा है कि उसके एक संवाददाता ने जेल में स्वामी असीमानंद से कई बार भेंट-वार्ताएं की थीं और उसके पास असीमानंद का टेप है, जिसमें उन्होंने उक्त बात कही थी। पहली बात तो यह कि किसी कैदी से क्या कोई पत्रकार जाकर बार-बार मिल सकता है? पहले तो इस तथ्य को प्रमाणित करना होगा। फिर वह टेप भी प्रामाणिक है या नहीं?
इसके अलावा अगर मान लिया जाए कि टेप प्रामाणिक है तो भी असली सवाल यह है कि जो असीमानंद कह रहे हैं, वह कितना प्रामाणिक है? असीमानंद के इकतरफा दावे को सत्य कैसे माना जाए? कुछ अखबारों ने यह भी छापा है कि असीमानंद को मोहन भागवत ने कहा था कि तुमको जो करना हो सो करो, हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं। इसका मतलब क्या हुआ? क्या इसका मतलब गलत काम को आशीर्वाद देना है? भला, किसी संन्यासी को कोई आशीर्वाद कैसे दे सकता है?
यह असंभव नहीं कि कोई भी अपनी खाल बचाने के लिए कुछ बड़े नामों को हवा में लहरा सकता है। इसके अलावा यह भी ध्यान देने लायक है कि इस तरह की अफवाहें, जब पहले उड़ी थीं तो संघ के प्रवक्ता ने उनका जोरदार खंडन किया था। इसमें शक नहीं कि इस्लाम के नाम पर फैलाए जा रहे आतंकवाद के विरुद्ध जनता में तीव्र रोष था लेकिन उसका प्रकटीकरण जवाबी आतंकवाद में किया जाए, ऐसा राष्ट्रविरोधी निर्णय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कैसे कर सकता हैं? और फिर अकेले मोहन भागवत तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नहीं हैं। सारे महत्वपूर्ण निर्णय संघ की प्रतिनिधि सभा में होते हैं। हम यह भी न भूलें कि तथाकथित भगवा आतंकवादी तो मोहन भागवत को घोर नरमपंथी मानते हैं।
महाराष्ट्र के गृहमंत्री आर आर पाटील ने इन आतंकवादियों के कुछ गुप्त टेप रिकार्डेड संवादों के आधार पर यह बात 2010 में विधानसभा में कही थी। मुंबई की पुलिस का कहना है कि ये भगवा आतंकवादी मोहन भागवत और इंद्रेशकुमार की हत्या करना चाहते थे। इसके लिए उन्हें दस लाख रु. भी दिए गए थे। यदि मोहन भागवत इन आतंकवादियों को आशीर्वाद दे रहे थे और प्रोत्साहित कर रहे थे तो वे उनकी हत्या का षड़यंत्र क्यों कर रहे थे? इन गिरफ्तार आतंकवादियों से ही सरकार ने यह सूचना उगलवाई है। महाराष्ट्र की सरकार कांग्रेस के हाथ में है। भला, कांग्रेस मोहन भागवत से सहानुभूति क्यों रखने लगी? इसके बावजूद इधर-उधर के अपुष्ट बयानों और भेंटवार्ताओं को उछालकर उनका दुरभिप्राय निकालना हास्यास्पद ही है।
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