दैनिक भास्कर, 8 अक्टूबर 2008 : अगर यह हिंदुत्व है तो इससे अधिक शर्मनाक क्या हो सकता है ? कौनसे हिंदू धर्मग्रंथ में लिखा है कि निहत्थों की हत्या करो, भिक्षुणी से बलात्कार करोद्व गर्भवती स्त्रियों के पेट चीरो, अनाथ बच्चों के गले काट दो और बूढ़ों की हडि्रडयों तोड़ दो ? हिंदुत्व के नाम पर ये सब कुकर्म पहले गुजरात में हुए और उड़ीसा में हो रहे हैं| यह बहादुरी नहीं, घनघोर कायरता है| आप गोधरों के हत्यारों को आज तक छू नहीं पाए और अपने बेकसूर मुसलमानों के खून से होली खेलोे| आप लक्ष्मणानंद सरस्वती के हत्यारों पर अभी तक हाथ नहीं डाल सके और बेचारे दलिते ईसाइयों को पकड़-पकड़कर मार रहे हैं| इसमें शक नहीं कि गोधरा और लक्ष्मणानंद हत्याकांड की प्रतिकि्रया अत्यंत तीव्र होनी ही थी लेकिन यह कैसी तीव्रता है कि अपराधी तो खुले-आम घूम रहे हैं और बेकसूर लोग मारे जा रहे हैं ? माओवादी नेता सव्यसायी पांडा ने लक्ष्मणानंद की हत्या का ‘श्रेय’ खुले-आम लिया है और उसने यह भी कहा है कि उनके संगठन का जनाधार ईसाइयों के बीच है और उनके अनुयायियों के दबाव के कारण ही उन्होंने लक्ष्मणानंद की हत्या की है| पांडा ने धमकी दी है कि वे ला.कृ. आडवाणीद्व अशोक सिंघल और प्रवीण तोगडि़या की भी हत्या करेंगे| इन माओवादियों के खिलाफ हिंदुत्ववादियों ने अब तक क्या किया है ? उनका रवैया सरकार से भी ज्यादा निकम्मा है| सरकारें अक्षम हैं, भ्रष्ट हैं, वोट बैंक की गुलाम हैं लेकिन हिंदुत्ववादी तो शुद्व देशभक्त हैं? राष्ट्रवादी हैं, बहादुर हैं तो वे अपनी जान पर क्यों नहीं खेलते ? क्यों नहीं वे जंगलों में जाते ? क्यों नहीं वे हथियारों का मुकाबला हथियारों से करते ? क्यों नहीं वे हत्यारों को मार गिराते ?
यदि वे ऐसा करते तो हिंदुत्व के माथे पर लगे कायरता के कलंक को वे धो डालते लेकिन वे गुजरात दोहरा रहे हैं| उन्होंने उड़ीसा और कर्नाटक में जो कुछ किया है, उसने हिंदुत्व के चेहरे को पहले से अधिक काला कर दिया है| उनके कारनामों ने लक्ष्मणानंदजी सरस्वती के खून को पानी में बदल दिया है| लक्ष्मणानंदजी की विलक्षण तपस्या और अप्रतिम बलिदान के बहाने वे भारत में चल रहे अनैतिक धर्मांतरण को सदा के लिए रूकवा सकते थे लेकिन उन्होंने जो मार्ग चुना है, उसके कारण एक वयोवृद्घ हिंदू सन्यासी की जघन्य हत्या हाशिए में चली गई है और सारे संसाद में दंगा-पीडि़त ईसाइयों के प्रति सहानुभूति की लहर उठ रही है| बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद इस दंगे से खुद को अलग दिखा रहे हैं और भाजपा उसकी आलोचना भी कर रही है लेकिन कोई बताए कि ये ईसाई-विरोधी दंगे भाजपा-शासित राज्यों में ही क्यों हो रहे हैं ? अगर यह मान भी लें कि राज्य-सरकारों ने खुद ये दंगे नहीं भड़काए हैं तो भी ये वहां ही क्यों भड़के ? इन दंगों को दबाने में राज्य-सरकारों की अक्षमता का रहस्य क्या है ? उससे भी बड़ा रहस्य यह है कि केन्द्र सरकार चुप्पी मारे बैठी है| कर्नाटक और उड़ीसा के ईसाई क्या भारत के नागरिक नहीं है ? क्या वे केवल इन राज्यों के ही नागरिक हैं ?
सच्चाई आखिर उनकी रक्षा की जिम्मेदारी किस पर है ? क्या राज्य अपना धर्म निभा रहा है तो यह है कि जो राज्यों की मजबूरी है, वहीं केंद्र की भी मजबूरी है| कोई भी पार्टी मुट्रठी भर ईसाइयों के लिए विशाल हिंदू वोट बैंक को क्यों बिदकाए ? बिदकाना ठीक भी नहीं लेकिन यह राजनीतिक कायरता है| नेतृत्वहीनता है| अगर सचमुच देश में आज कोई बड़ा नेता होता तो वह उड़ीसा के दंगाइयों के सामने अपना सीना खोलकर खड़ा हो जाता| वह अपने हिंदू वोट बैंक को बिदकने नहीं देता| वह उसका काया-कल्प कर देता| वह उसका रूपांतरण कर देता| नेताओं के नाम पर आज हमारे पास भीड़ के पिछलग्गू हैं, वोटों के गुलाम हैं, प्रवाह में बहनेवाले तिनके है| हमारे पास वे मर्द कहां हैं, जो ज़माने को बदल देते है ? अब तो अटलबिहारी वाजपेयी जैसे नेता भी नहीं हैं, जिन्होंने कम से कम यह तो कहने की हिम्मत दिखाई थी कि गुजरात में राजधर्म का पालन नहीं हो रहा है| उड़ीसा के ईसाइयों के शिविर में जाकर अब आंसू बहानेवाला भी कोई नहीं है| कायरता और निष्ठुरता के इस समागम का नाम ही हिंदुत्व है क्या ? यह हिंदुत्व का कौनसा चेहरा है ?
भारत के पक्ष और विपक्ष दोनों का दीवाला पिट चुका है| जो उड़ीसा और कर्नाटक में हुआ, उससे बदतर काँग्रेस-शासित असम में हो रहा है| यदि दंगों के कारण उड़ीसा और कर्नाटक की सरकारे बर्खास्त की जाएं तो असम की सरकार भी क्यों नहीं की जाए ? असम में बोदो और मुसलमान, असमी और बंगाली तथा भारतीय और बांग्लादेशी आपस में भिड़ गए हैं| इस तिहरे संघर्ष का सार क्या है ? क्या यह नहीं कि भारत नामक राज्य का वर्चस्व फीका पड़ गया है| मणिपुर में हिंदीभाषियों की हत्या और मुंबई में उन्हें मिलनेवाली धमकियों का अर्थ क्या है ? क्या यह नहीं किर राष्ट्र नामक अवधारणा का ओज मंद पड़ता चला जा रहा है ? आखिल भारतीय राष्ट्र पर क्षेत्रीय राज्य भारी पड़ रहे हैं| प्रतिदिन क्षीण होता हुआ यह भारत परमाणु महाशक्ति बनकर भी क्या कर लेगा ? जिसके निर्दोष नागरिकों को अपने जिंदा रहने का भी भरोसा नहीं, वह भारत किसकी रक्षा के लिए बम बना रहा है, अरबों रूपए खर्च करके फौजें खड़ी कर रहा है और भारत को जगत्गुरू बनाने का सपना देख रहा है| धन्य है, महाशक्ति भारत, जिसके प्रधानमंत्री को पोप और निकोलस सारकोज़ी-जैसे लोग उपदेश पिता रहे हैं| क्या शान है, इस भारत की, कि बि्रटिश सांसद गण दिल्ली आकर गृहमंत्री को झिड़कियां दे रहे हैं| यह इसीलिए हो रहा है कि राज्य अपने कर्तव्य से विमुख हो रहा है| वह चकाचौंध में फंसा हुआ है| उसे परमाणु-सौदे और 9 प्रतिशत की आर्थिक प्रगति के अलावा कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा है| 20 रू. रोज पर गुजारा करनेवाले भारत मॉ के 80 करोड़ बेटे हजारों आत्महत्या करनेवाले कर्जदार किसान, आए दिन आतंकवाद का शिकार होनेवाले निर्दोष नागरिक और सांप्रदायिक हिंसा में मारे जानेवाले लोग उसे दिखाई ही नहीं पड़ते| यदि राज्य अपना काम ठीक से कर रहा होता तो भारत का, हिन्दुत्व का, इस्लाम का, ईसाइयत का चेहरा इतना विद्रूप नहीं होता, जितना आज हो गया है|
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