R Sahara, 24 Aug 2003 : प्रसिद्घ नृत्यांगना उमा शर्मा ने जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में कृष्ण-लीला पर नृत्य-नाटिका आयोजित की | इंडिया इंटरनेशनल सेंटर का हाल खचाखच भरा हुआ था | हम ठीक समय पर पहॅुचे लेकिन कुर्सी खाली नहीं थी | कोई बात नहीं | आगे जाकर मैं और मेरी पत्नी ज़मीन पर ही बैठ गए | उमाजी हम लोगों की निजी मित्र हैं तो क्या उनकी खातिर इतनी असुविधा भी नहीं उठा सकते? थोड़ी देर बाद प्रसिद्घ उद्योगपति विनय भरतराम भी आकर हमारे साथ बैठ गए | समारोह के मुख्य अतिथि थे – श्री रा. वेंकटरामन जी | उनके पास की दो सीटें खाली हुईं तो डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी ने इशारा किया कि आप दोनों इधर आ जाऍं | लेकिन हम नहीं गए | थोड़ी देर बाद पिछली पंक्ति में दो सीटें खाली हुईं तो हम दोनों उन पर बैठ गए | वेंकटरामनजी ने मंच पर जाकर कलाकारों का सम्मान किया | हमारे पास बैठी एक महिला ने उसके आगे बैठी दूसरी महिला से पूछा, ‘हू इज़ दिस वेंकटरामन?’ पहली महिला, जो एक विख्यात सैन्य अफसर की पत्नी हैं, बोलीं, ”आपको पता नहीं, ये हमारे राष्ट्र्रपति थे|” दूसरी महिला ने फिर पूछा, ”कब थे?” पहली महिला असमंजस में पड़ गईं और बोलीं, ”यह तो मुझे भी याद नहीं|”
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भारत का कोई भी संगीतप्रेमी यह नहीं पूछ सकता कि कुमार गंधर्व कौन थे? उनका संगीत तो जिन्दा जादू था | यह शब्द, ‘जिन्दा जादू’ उन्हीं का है | कुमारजी ने इस शब्द का प्रयोग कई दशक पहले अपने लिए नहीं, उस ‘म्युजि़क सिस्टम’ के लिए किया था, जिस पर मैंने उन्हें उनका ही कैसेट सुनवाया था | कुमारजी का जादू आज भी जिन्दा है | मेरा सौभाग्य है कि नई दुनिया के स्वनामधन्य संपादक स्व. राहुल बारपुते के सौजन्य से कुमारजी से सम्पर्क हुआ | बचपन से ही हम लोग उन्हें सुनते चले आ रहे थे | मैं 1965 में दिल्ली आया और सप्रू हाउस के छात्रावास में रहने लगा | कुमारजी आते तो गॉंधी शांति प्रतिष्ठान की अतिथि-शाला में ठहरते | वे रेल्वे लाइन पार करते हुए बंगाली मार्केट के रास्ते पैदल ही सप्रू हाउस पहुंच जाते | वहीं भोजन होता, दिन भर घूमते, गप लगाते और रात को उनका गाना सुनते | वे इतने बड़े आदमी थे कि उनका किसी से परिचय कराने में भी संकोच होता | वे इंदौरियों को इतना चाहते थे कि हम लोगों को श्रोताओं के साथ नीचे नहीं बैठने देते | अक्सर उनका गाना सुनने के लिए उनके पास मंच पर ही बैठना पड़ता | उनके श्रोताओं में प्रधानमंत्री इंदिरा गॉंधी भी हुआ करती थीं | एक बार टाइम्स ऑफ इंडिया के सम्पादक गिरिलाल जैन भी आग्रहपूर्वक मेरे साथ कुमारजी को सुनने कमानी हॉल गए लेकिन हम दोनों सबसे पिछली सीटों पर दुबके रहे | इस बार उज्जैन जाना हुआ तो समय निकालकर मैं प्रयत्नपूर्वक कुमारजी के घर देवास पहॅुंचा | भाभी वसुंधराजी और बिटिया कलापिनी से मिलकर आनंद हुआ और उनसे मुझे पूछना पड़ा कि ‘यह सुंदर-सा नौजवान कौन है?’ उन्होंने बताया, ‘यह मुकुल का बेटा भुवनेश है |’ स्वयं मुकुल नेमावर के किसी आश्रम में रहते हैं और संगीत साधना करते हैं | मुकुल कुमारजी के पुत्र और कलापिनी के बड़े भाई हैं | वसुंधराजी और मुकुल को तो कई बार सुना था लेकिन कलापिनी को सुनने का कभी अवसर नहीं बन पाया | कलापिनी ने अपने दो कैसेट दिए | इस हफ्रते, पता नहीं मैंने उन्हें कितनी बार सुना | कुमारजी की याद ताज़ा हुई | कलापिनी को जब लोग प्रत्यक्ष सुनते होंगे तो कितने आनंद की सृष्टि होती होगी | वह अपने पिता और माता, दोनों के संयुक्त सौंदर्य से भी अधिक सुन्दर है | कलापिनी और भुवनेश ने मिलकर ‘कुमार गंधर्व संगीत अकादमी’ की स्थापना की है | उन्होंने कुमारजी के गायन की 300 घंटे की सी डी और 150 घंटे की डी वी डी तैयार कर ली है | यदि कुछ मित्रों के पास कुमारजी के कुछ निजी रेकार्डिंग्स हों तो वे भी देवास पहॅुंचाई जानी चाहिए, क्योंकि यह निजी नहीं, राष्ट्र्रीय धरोहर है |
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श्री शमशेर बहादुर टंडन पिछले 40-45 साल से फिलाडेल्फिया में रहते हैं | वे आजकल हर माह दिल्ली आते हैं और अरविंद आश्रम में ठहरते हैं | वे ऐसी संस्था बनाना चाहते हैं, जिसके सदस्य सिर्फ एक ईश्वर में विश्वास करें और दुनिया के सारे मनुष्यों को अपना भाई समझें | लोग अपनी-अपनी संकीर्ण धार्मिक और सांप्रदायिक परिधियों से उपर उठें और विश्ववृत्त में विलीन हो जाऍं | कौनसा मज़हब है, जो इसी तरह की प्रतिज्ञाओं के आधार पर शुरू नहीं हुआ और कौन-सा मज़हब है, जिसने अपने अनुयायियों के चारों तरफ कुए से भी ज्यादा गहरी दीवारें खड़ी नहीं कर दीं ? टंडनजी ने कुछ देशों में कुछ लोग तो जुटा लिये हैं | लेकिन जाहिर है कि वे कोई नए कुए खोदने की फिराक़ में नहीं हैं |
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इस बीच लंदन से अपने पुराने क्वेकर मित्र एंड्र्रयू क्लार्क ने एक पर्चा और पुस्तक भिजवाई है | एंड्र्रयू ‘अन्तरराष्ट्र्रीय धार्मिक स्वतंत्रता संघ’ के महासचिव हैं | इस संघ का मुख्यालय ऑक्सफोर्ड में है और शाखाऍं कई देशों में हैं | इसके तीन प्रमुख उद्देश्य हैं | प्रथम, यह धर्म के आधार पर किसी भी भेदभाव के विरुद्घ है | द्वितीय, विभिन्न धर्मों में सहिष्णुता का पक्षधर है और तीसरा, हर धर्म से यह अपेक्षा करता है कि वह अपने अनुयायियों के मानव अधिकर और गरिमा का उल्लंघन नहीं करेगा | इस संस्था के विश्व-सम्मेलनों में अक्सर चार-पॉंच सौ लोग सारी दुनिया से आते हैं | इसे संयुक्तराष्ट्र्र की मान्यता भी प्राप्त है लेकिन ऐसी संस्थाऍं नक्कारखाने में तूती की तरह हैं | संगठित धर्म या धार्मिक संगठन राज्यों से भी अधिक शक्तिशाली हैं | उनके अपने निहित स्वार्थ हैं | उन्हें चुनौती देना आसान नहीं |
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