R Sahara 11 May 2003: लोकसभा में पाकिस्तान पर बोलते हुए प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने अचानक एक रहस्योद्रघाटन कर दिया| वह यह िक् उनकी लाहौर-यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ से उनका यह गुप्त समझौता हुआ था कि कश्मीर के मुद्दे को दरी के नीचे सरका दिया जाए और शेष महत्वपूर्ण मुद्दों पर काम किया जाए| यद्यपि लाहौर-घोषणा में कश्मीर का जिक्र जरूर है लेकिन उसे मुख्य मुद्दा नहीं बनाया गया था| उस समय कश्मीर के बजाय फोकस परमाणु-मुद्दे पर था| भारत-पाक संबंधों की यह महत्वपूर्ण उपलब्धि सिर्फ नेताओं के बयानों से नहीं हुई थी| इसके लिए कई लोगों ने चुपचाप बरसों काम किया था| 1997 में नवाज शरीफ ने अपूर्व बहुमत से चुनाव जीता था| उनके चुनाव-अभियान के दौरान लगभग दो हफ्ते तक मैं लाहौर में ही था| उनसे लगभग रोज भेंट या फोन पर बात होती थी| मतदान के एक दिन पहले उन्होंने अपने रायविंड के फार्म हाउस पर इफ्तार की बड़ी दावत की| मुशाहित हुसैन (बाद में सूचना मंत्री) मुझे घंटा भर पहले ही वहॉं ले गए| मियां नवाज, उनके छोटे भाई शाहबाज़ और अब्बाजान और मैं एक कमरे में घंटे भर अलग से बात करते रहे| दावत के दौरान मियां साहब ने मुझसे पूछा कि लगे हाथ एक प्रेस-कॉंफ्रेस क्यो न कर लें? और उन्होने सारे पत्रकारों के सामने कह दिया कि ‘अगर अल्लाहताला ने मुझे दुबारा प्रधानमंत्री बना दिया तो मैं पाकिस्तान की अफगान और कश्मीर दोनों नीतियों को बदल दूंगा|’ चुनाव के दिन सुबह सभी अखबारों में यह सबसे बड़ी खबर बनी| कई पाकिस्तानी पत्रकार-मित्रों ने मुझे फोन पर कहा कि ‘आपने मियॉं को मरवा दिया|’ लेकिन हुआ उल्टा| उन्हें जैसा बहुमत मिला, वैसा आज तक किसी भी प्रधानमंत्री को नहीं मिला| अटलजी के प्रधानमंत्री बनने के सवा साल पहले इस नई पाकिस्तानी नीति की नींव रखी जा चुकी थी|
फरवरी 1999 में अटलजी की लाहौर यात्रा के पहले भारत के लगभग 40 सांसद 10 दिन के लिए पाकिस्तान गए थे| उस समय प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ से मेरी तीन मुलाकातें हुईं| उनसे सी टी बी टी और कश्मीर के सवाल पर खास-तौर से बात हुई| कश्मीर के सवाल पर बेनज़ीर भुट्टो (प्रतिपक्ष की नेता) से भी तीन अलग मुलाकातें हुईं| कुछ सांसदों को इन मुलाकातों का आभास भी हो गया| वे आश्चर्य और ईर्ष्या से भर गए लेकिन विदेश मंत्री सरताज अजीज ने जब विदेश मंत्रालय की दावत के वक्त अचानक एक भाषण झाड़ दिया तो हमारे सांसद हक्के-बक्के रह गए| सांप-सा सूंघ गया| अजीज ने कश्मीर पर हेडमास्टरी शैली में हमें जबर्दस्त झाड़ पिलाई| सांसद लिहाज़दारी में फॅंस गए| मेहमान की मर्यादा ! सांसद न होते हुए भी मुझे खड़े होकर अजीज के हर तर्क का विनम्र किन्तु कठोर जवाब देना पड़ा| मैंने कश्मीर के मुकाबले परमाणु-खतरे और आतंकवाद को प्रमुख मुद्दों के तौर पर खड़ा कर दिया| आज भी यही करना जरूरी है|
पाकिस्तानी सांसदों का भारत आना अपने आप में एक घटना है| उनके आने का कार्यक्रम पिछले दो माह से बन रहा था लेकिन भारत सरकार को पिछले हफ्ते ही मालूम पड़ा कि वे आ रहे हैं| उन्हें भारत-पाक फोरम लाया गया है| उन्हें पाकिस्तान सरकार ने नहीं भेजा है लेकिन जिस माहौल में वे आए हैं, उसमें अगर भारत सरकार उनका स्वागत करती है तो लगेगा कि पाकिस्तान बाजी मार ले गया और खतरा यह भी है कि इधर वह पाकिस्तानी सांसदों का स्वागत करे और उधर कोई अक्षरधाम-जैसी घटना घट जाए तो लेने के देने पड़ जाएंगे| इसीलिए मार्क्सवादी नेता सोमनाथ चटर्जी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदर गुजराल उनके स्वागत में दावतें कर रहे हैं| ये सांसद सर्वश्री चंद्रशेखर, विश्वनाथप्रताप सिंह और नरसिंहराव से भी मिलना चाहते थे| श्री देवेगौड़ा भी उन्हें नाश्ते पर बुलाना चाहते थे लेकिन समय की कमी के कारण इन सांसदों की राजनीतिक मुलाकातें कम ही हो पा रही है| उनमें से ज्यादातर पहली बार ही भारत आए हैं| उन्हें अजमेर, आगरा, मुंबई और कोलकाता भी देखना है|
भारतीय सांसदों में भी सुगबुगाहट हो रही है कि वे भी एक टीम बनाकर पाकिस्तान घूम आऍं| यह शुभ-संकेत है| इससे सरकार को काफी मदद मिलेगी| पिछले दिनों फारुक अब्दुल्ला और शरद पंवार ने अटलजी को सुझाव दिया था कि डॉ. कर्णसिंह को पाकिस्तान भेजा जाए| स्वयं डॉ. कर्णसिंह किसी प्रतिनिधि मंडल में नहीं जाना चाहते| जम्मू-कश्मीर के पूर्व-महाराजा होने के कारण उन्हें पाकिस्तान में काफी लोग जानते हैं लेकिन हमारी सरकार की दिक्कत यह है कि वह अपने मातहत अफसरों के अलावा किसी पर भरोसा नहीं करती और बदकि़स्मती से भाजपा-परिवार में ऐसे लोग नहीं हैं, जिन्हें इस तरह की नाज़ुक जिम्मेदारियां दी जा सकें|
वसंत साठे का कोई क्या बिगाड़ सकता है? वे 78 साल के हैं| बरसों केद्रीय मंत्री रहे हैं और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद्र के अध्यक्ष भी ! उन्हें अब क्या चाहिए? कुछ नहीं| अगर चाहिए भी हो तो उन्हें कांग्रेस क्या दे सकती है? वह उन्हें न राज्यपाल बना सकती है न राजदूत ! इसीलिएभारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की गुहार लगानेवाले श्री साठे के विरुद्घ कांग्रेस कुछ भी नहीं कर सकती| ‘सावरकर समग्र’ के आखरी पॉंच खंडों के विमोचन-समारोह में साठेजी ने प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और सर संघचालक को खुले-आम सुझाव दिया कि वे लोग संविधान में एक छोटा-सा संशोधन कर दें| वह यह कि “इंडिया याने भारत” के साथ-साथ यह भी जोड़ दें कि “याने ैहिन्दुस्थान” तो भारत अपने आप हिन्दू-राष्ट्र बन जाएगा| हिन्दुस्थान में रहनेवाला हर नागरिक अपने आप हिन्दू कहलावाएगा| साठेजी के यह कहते ही सभा-भवन तालियों से गूंज उठा| लगभग इसी तरह का शब्द-परिवर्तन 25 साल पहले साठेजी ने ‘अध्यक्षात्मक शासन-प्रणाली’ के बारे में इंदिराजी को सुझाया था|
आजकल लंदन से लॉर्ड फ्रांसिस थर्लो भारत आए हुए हैं| उनकी आयु 91 वर्ष है| सौ में सिर्फ नौ कम ! वे गॉंधीजी की तरह दुबले-पतले हैं और नौजवानों की तरह वे सीधे चलते हैं| वे दो-चार मंजिल तक आसानी से सीढि़यॉं चढ़ लेते हैं| अब से 50 साल पहले वे दिल्ली स्थित बि्रटिश उच्चायोग में राजनीतिक सचिव थे| वे पं. ज.ला. नेहरू को व्यक्त्गित तौर से जानते थे| वे कई देशों में बि्रटेन के राजदूत रह चुके हैं| हाउस ऑफ लॉडर्स के सदस्य होने के अलावा वे बहामा के गवर्नर भी रह चुके हैं| मैंने उनसे पूछा कि उनके दीर्घायुष्य और उत्तम स्वास्थ्य का रहस्य क्या है तो उन्होंने बताया कि भारतीय साधना और फालुन गोंग (नई चीनी साधना पद्घति)! उनका कहना है कि वे पिछले जन्म में भारतीय सन्यासी रहे होंगे| उन्हें भारत का शाकाहारी भोजन बहुत पसंद है|
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